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बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सके जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान है

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Hindi Sahitya | Hindi Poems | Hindi Kavitaकल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआइक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान हैबीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सकेजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अनजान हैगर कहोगें दिन को दिन तो लोग जानेगें गुनाहअब आज के इस दौर में दीखते कहा

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