13 मई 2017
यह एक बंदिश है, शब्ददारी की अल्हड़ रागदारी है, सात-सुरों के तयशुदा श्रुतियों की ख्याल परंपरा से अल्हदा आवारगी का नाद स्वर है, गढ़े हुए बासबब लफ्जों से इतर स्वतः-स्फूर्तता का बेसबब बहाव है, ठुमरिया ठाठ की लयकारी के सहेजपनें से जुदा सहज-सरल-सुग