*इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य अपने जीवन भर में अनेकों क्रियाकलाप करता है परंतु जो करना चाहिए वह शायद नहीं कर पाता है | हमारे महापुरुषों ने इस जीवन को क्षणभंगुर कहा है , इस जीवन को क्षणभंगुर मानते हुए हमारे महापुरुषों ने जीवन के प्रारंभिक समय से ही आध्यात्मिक बनने का एवं बनाने का प्रयास किया
*ईश्वर ने सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को बनाकर भेजा , मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि अन्य प्राणियों की अपेक्षा ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि एवं विवेक प्रदान किया है | अपनी विवेक शक्ति को जागृत करके मनुष्य सारे संसार पर शासन कर रहा है | विवेक शक्ति जागृत करने के लिए मनुष्य को
*अपने विगत जन्मों के कर्मानुसार जीव मनुष्य रूप में इस धरती पर विशेषकर भारत देश में जन्म लेता है | आदिकाल से ही हमारे देश के महापुरुषों ने "भगवत्कृपा" "हरिकृपा" प्राप्त करने के लिए अनेकानेक प्रयास किये हैं | कठिन तपस्या , दुष्कर जप एवं और अन्य साधनों के माध्यम से मनुष्य ने "भगवत्कृपा" प्राप्त करने का
*मानव जीवन ही नहीं सृष्टि के सभी अंग - उपांगों मे अनुशासन का विशेष महत्व है | समस्त प्रकृति एक अनुशासन में बंधकर चलती है इसलिए उसके किसी भी क्रियाकलापों में बाधा नहीं आती है | दिन – रात नियमित रूप से आते रहते हैं इससे स्पष्ट है कि अनुशासन के द्वारा ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है | विचार कीजिए कि
*इस धरती पर मनुष्य को अनेक मूल्यवान संपदायें प्राप्त हुई हैं | किसी को पैतृक तो किसी ने अपने बाहुबल से यह अमूल्य संपदायें अपने नाम की हैं | संसार में एक से बढ़कर एक मूल्यवान वस्तुएं विद्यमान हैं परंतु इन सबसे ऊपर यदि देखा जाए तो सबसे मूल्यवान समय ही होता है | समय ही मानव जीवन का पर्याय है , मनुष्य क
*इस सृष्टि में ईश्वर का विधान इतना सुंदर एवं निर्णायक है कि यहां हर चीज का समय निश्चित होता है | इस धरा धाम पर सृष्टि के आदिकाल से लेकर के अब तक अनेकों बलवान , धनवान तथा सम्पत्तिवान हुए परंतु इन सब से भी अधिक बलवान यदि किसी को माना जाता है तो वह है इस समय | समय के आगे किसी की नहीं चलती है | इस सृष्ट
*इस समस्त सृष्टि में जहां अनेकों प्रकार के जीव भ्रमण करते हैं जलचर , थलचर , नभचर मिला करके चौरासी लाख योनियाँ बनती है | इन चौरासी लाख योनियों में मानव योनि को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए हमारे धर्मग्रंथ इस पर अनेकों अध्यात्म वर्णन करते हुए दृष्टिगत होते हैं | प्रायः सभी धर्मग्रंथों में इस मानव शरीर को द
*यह संसार बड़ा ही विचित्र है | इस पृथ्वी पर रहने वाले अनेक जीव है जो कि एक से बढ़कर एक विचित्रताओं से भरे हुए हैं | इन सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य सबसे ज्यादा विचित्र है | मनुष्य की विचित्रता का आंकलन इसी से किया जा सकता है कि यदि मनुष्य से यह प्रश्न कर दिया जाय कि इस संसार में सबसे दुर
*इस सृष्टि में जीव चौरासी लाख योनियों की यात्रा किया करता है | इन चौरासी लाख योनियों के चक्रानुक्रम में समस्त कलुषित कषाय को धोने के उद्देश्य जीव को मानव योनि प्राप्त होती है | इसी योनि में पहुंचकर जीव पूर्व जन्मों के किए गए कर्म - अकर्म को अपने सत्कर्म के द्वारा धोने का प्रयास करता है | मानव योनि म
*इस संसार में राजा - रंक , धनी - निर्धन सब एक साथ रहते हैं | इन सबके बीच दरिद्र व्यक्ति भी जीवन यापन करते हैं | दरिद्र का आशय धनहीन से लगाया जाता है जबकि धन से हीन व्यक्ति को दरिद्र कहा जाना उचित नहीं प्रतीत होता क्योंकि धन से दरिद्र व्यक्ति भी यदि विचारों का धनी होते हुए सकारात्मकता से जीवन यापन कर