*ईश्वर ने सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को बनाकर भेजा , मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि अन्य प्राणियों की अपेक्षा ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि एवं विवेक प्रदान किया है | अपनी विवेक शक्ति को जागृत करके मनुष्य सारे संसार पर शासन कर रहा है | विवेक शक्ति जागृत करने के लिए मनुष्य को सांसारिक प्रयास की अपेक्षा आंतरिक प्रयास अधिक करना होता है | विवेकवान मनुष्य अंधेरों में भी मार्ग ढूंढ लेता है | यह सृष्टि का नियम है कि जब सूर्य अस्त हो जाता है तो गहरा अंधकार इस धरा धाम पर छा जाता है तब मनुष्य को कुछ भी सुझाई नहीं पड़ता है | ऐसे समय में चंद्रमा की चांदनी या फिर सितारों का प्रकाश मनुष्य को मार्ग दिखा सकता है परंतु यदि बादल छाए हैं और किसी प्रकाश की व्यवस्था ना हो तो मनुष्य मार्ग कैसे ढूंढेगा ? तब मनुष्य को अपने सूझबूझ के सहारे ही मार्ग ढूंढना पड़ेगा और यह सूझबूझ विवेक शक्ति के माध्यम से ही सम्भव है | विवेक का प्रकाश सबके पास होता है यह कभी नहीं बुझता बस आवश्यकता है इसे प्रकाशित करें | यह शक्ति प्रत्येक मनुष्य के पास होती है और इसे जागृत करने के लिए मनुष्य को सद्गुरुओं का उपदेश एवं स्वयं के आचरण पर विशेष ध्यान देना होता है , क्योंकि विवेक शक्ति तभी जागृत हो सकती है जब मनुष्य अंतर्मुखी होकर आंतरिक प्रयास करेगा | जीवन में कभी कभी ऐसा अवसर भी आ जाता है जब मनुष्य को कोई भी मार्ग नहीं सुझाई देता ऐसे अवसर में अपने उचित मार्ग का निर्धारण करने वाली शक्ति का नाम ही विवेक है | विवेक शक्ति अंतरात्मा की वह ध्वनि है जो हमें सत्य - असत्य , न्याय - अन्याय , अच्छाई - बुराई का निर्णय करने में सक्षम करती है | कैसी भी चिंता हो , उलझन हो या संकट हो ऐसे समय में विवेक हीं मार्ग प्रशस्त करता है | जिसने अपनी विवेक शक्ति को जागृत नहीं किया वह कठिन समय में उचित निर्णय नहीं ले पाता और जिसके कारण उसे पश्चाताप होता रहता है क्योंकि जब मनुष्य की विवेक शक्ति सक्षम नहीं होती है तो नकारात्मक होकर गलत मार्ग पर चल पड़ता है , जिसका कहीं कोई अंत नहीं होता और जब मनुष्य की शक्ति जागृत होती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सद्गुरु के साथ सत्संग करते हुए अपने आचरण में उसे उतारकर अपने विवेक शक्ति को जागृत करने का प्रयास अवश्य करना है |*
*आज मनुष्य ने बहुत विकास कर लिया है ! चंद्रमा की यात्रा करने वाला मनुष्य समुद्र की गहराइयों तक पहुंच गया है यह विवेक का ही प्रभाव है | मनुष्य ने अपनी विवेक शक्ति को इतना जागृत कर लिया है कि वह नित्य नए-नए अनुसंधान कर रहा है परंतु इसी समाज में ऐसे लोग भी रहते है जो स्वयं को बुद्धिमान तो बहुत मानते हैं परंतु उनके कार्य देख कर के उनकी अविवेक पर बरबस ही हंसी आ जाती है | कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि बहुत प्रयास करने पर भी विवेक शक्ति जागृत नहीं हो पाती | ऐसे सभी लोगों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि विवेक शक्ति प्रत्येक मनुष्य में जन्मजात होती है परंतु मनुष्य के संचित एवं क्रियमाण कर्मों की छाया के प्रभाव के कारण यह किसी में कम एवं किसी में अधिक होती है ! यदि इसे इस प्रकार कहा जाय कि मनुष्य अपने संचित एवं क्रियमाण कर्मों से इतना प्रभावित होता है कि उसे अपने विवेक के पुकार सुनाई ही नहीं पड़ती | यही विवेक ही मानवता एवं बुद्धि का परिचायक होता है जिसके अभाव में मनुष्य पशु के समान या उससे भी निम्न हो जाता है | विवेकहीन मनुष्य अपने लिए , अपने परिवार के लिए , समाज एवं राष्ट्र के लिए कुछ भी नहीं कर पाता और वह एक अभिशाप बनकर रह जाता है | मनुष्य का विवेक प्रतिक्षण उसे आवाज देता रहता है परंतु आपाधापी में , सांसारिक हलचल में वह उसे सुन नहीं पाता या फिर सुनने का प्रयास ही नहीं करता | मनुष्य होने के कारण यह प्राथमिक कर्तव्य होता है कि प्रत्येक मनुष्य अपने विवेक की पुकार को सुनें और इसे जागृत करने का प्रयास करें क्योंकि जब तक विवेक शक्ति जागृत नहीं होगी तब तक मनुष्य बहुत कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है |*
*विवेक शक्ति जागृत करने के लिए मनुष्य को अंतर्मुखी होकर अपने हृदय की पुकार को सुनते हुए अपने संकल्पों का विश्लेषण करना चाहिए और यह तभी हो पाएगा जब मनुष्य पवित्रता के साथ धनार्जन करके शुद्ध आहार एवं अहिंसात्मक आचरण करते हुए सद्गुरुओं के उपदेश को जीवन में उतारेगा |*