*मानव जीवन ही नहीं सृष्टि के सभी अंग - उपांगों मे अनुशासन का विशेष महत्व है | समस्त प्रकृति एक अनुशासन में बंधकर चलती है इसलिए उसके किसी भी क्रियाकलापों में बाधा नहीं आती है | दिन – रात नियमित रूप से आते रहते हैं इससे स्पष्ट है कि अनुशासन के द्वारा ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है | विचार कीजिए कि यदि प्रकृति अनुशासनहीनता करने लगे तो धरती पर रह रहे जीवों की क्या दशा - दुर्दशा होगी | मनुष्य में अनुशासन की नींव घर परिवार से ही पड़ती है | किसी भी बच्चे का सबसे पहले संपर्क अपने माता पिता से होता है , परिवार से होता है | अन्य प्रकार की शिक्षा के अतिरिक्त उसे अनुशासन की शिक्षा भी परिवार से ही प्राप्त होती है , उसके बाद विद्यालय फिर वाह्यसमाज से अनुशासन की शिक्षा सीखता है | शिक्षा का पहला पाठ तो अपने घर से ही सीखता है और यह अनुशासन भय से और सही दिशा-निर्देश से ही होता है | अनुशासन में संस्कारों का दायित्व मिला रहता है इन संस्कारों से व्यक्ति में अनुशासन आता है | व्यक्ति में यदि लड़ाई , आतंक आदि की आदत पनपती है तो यह सब घर के बाहर कीे शिक्षा होती है जो उस पर हावी होती है | संस्कार की शिक्षा / अनुशासन आदि समाज की प्रथम ईकाई परिवार से ही प्राप्त होता है | जहाँ अनुशासित व्यक्ति जीवन में सफलतायें अर्जित करते हुए सबका प्रिय बना रहता है वहीं अनुशासन से भटक जाने पर व्यक्ति चरित्रहीन , दुराचारी तथा निंदनीय हो जाता है | समाज में उसका कोई सम्मान नहीं रहता | अनुशासन का अर्थ ही है कि किसी भी कार्य को अनुशासित रहते हुए करना | जब तक जीवन अनुशासित नहीं होगा तब तक सफलता मनुष्य से दूर भागती रहेगी | यदि जीवन में सफलतायें अर्जित करना है तो प्रत्येक मनुष्य को अनुशासन /स्वानुशासन का पालन करना ही होगा |*
*आज परिवार , समाज व देश में भी अनुशासनहीनता स्पष्ट दिखाई पड़ रही है | यह देश का दुर्भाग्य है कि आज अनुशासनहीनता बढ़ती जी रही है | स्कूल , कॉलेज , कार्यालय आदि सभी स्थानों पर अनुशासनहीनता का साम्राज्य फैला हुआ है , जिसके परिणामस्वरूप लड़ाई - झगड़े , काम चोरी , जैसी आदतें पनप रही है | रैंगिग जैसे खतरनाक कार्य अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा है , जिसके कारण ना जाने कितने ही बच्चे अपनी जान दे देते हैं | धर्म और समाज में नियंत्रण समाप्त हो रहे हैं | कुछ लोग अनुशासन को परतंत्रता की संज्ञा देते हैं | ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि अनुशासन ही मानव जीवन के सफलता की पहली सीढ़ी है | जो पहली ही सीढ़ी पर ही अनुत्तीर्ण हो जाता है वह सफलता के शिखर को कभी भी नहीं प्राप्त कर सकता | अनुशासन को परतंत्रता की उपमा कदापि नहीं दी जा सकती है | किसी भी समाज , समूह या इकाई में यदि अनुशासनहीनता है तो वह समाज कभी भी प्रगति नहीं कर सकता है | अतः प्रत्येक मनुष्य को अनुशासन में रहते हुए अपने क्रियाकलाप संपादित करने चाहिए अन्यथा परिणाम बहुत ज्यादा सुखद नहीं होने वाले हैं | जो व्यक्ति अनुशासनहीन है उसके जीवन में असफलता , आलस्य , पराजय आदि प्राप्त होते रहते हैं | अनुशासनहीन व्यक्ति को यदि समय रहते अनुशासित न किया गया या उसको दण्डित न किया गया तो एक दिन अपने कुचक्र से वह समाज को भी नष्ट कर देता है | अत: ऐसे लोगों को सम्भव हो सके तो अनुशासन का पाठ पढ़ाये या फिर इनका परित्याग करना ही श्रेयस्कर होता है क्योंकि जिस प्रकार एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है उसी प्रकार एक अनुशासनहीन व्यक्ति पूरे समाज को भंग कर सकता है |*
*बिना अनुशासन के मानव जीवन में कोई भी कार्य सुचारु रूप से नहीं सम्पन्न हो सकता है | अनुशासन को जिसने अपना लिया उसके लिए यह जीवन बस एक सफलता का सागर है , जिसकी बूंद-बूंद उपयोग किया जाए तो कभी खत्म होने का नाम नहीं लेता |*