*यह संसार बड़ा ही विचित्र है | इस पृथ्वी पर रहने वाले अनेक जीव है जो कि एक से बढ़कर एक विचित्रताओं से भरे हुए हैं | इन सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य सबसे ज्यादा विचित्र है | मनुष्य की विचित्रता का आंकलन इसी से किया जा सकता है कि यदि मनुष्य से यह प्रश्न कर दिया जाय कि इस संसार में सबसे दुर्लभ एवं कठिनता से प्राप्त होने वाली वस्तु क्या है ?? तो कोई धन को , कोई पुत्र को , कोई ऐश्वर्य को , एवं कोई राज्य संपत्ति को ही सर्वश्रेष्ठ बताता है | जबकि उपरवर्णित कुछ भी सर्वश्रेष्ठ नहीं है | तो आखिर संसार में सर्वश्रेष्ठ है क्या ? दुर्लभ है क्या ?? इस पर यदि विचार करते हुए अपने ग्रंथों का अध्ययन किया जाता है तो उसमें हमें यह देखने को मिलता है कि समस्त सृष्टि में सबसे दुर्लभ है मनुष्य का शरीर प्राप्त करना | क्योंकि कहा गया है कि :- पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्यां पुनर्मही ! एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः !! अर्थात :- धन, संपति, मित्र, स्त्री, राज्य ये सब एक बार नष्ट होने के बाद भी बार बार मिल सकते हैं; लेकिन मनुष्य-शरीर केवल एक ही बार प्राप्त होता है | इस मानव शरीर को दुर्लभ बताते हुए और भी कहा गया है कि :-"दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभंगुरः ! तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठ प्रिय दर्शनम् !! अर्थात :- यह मानव-शरीर अत्यन्त दुर्लभ है | इसकी प्राप्तिके लिये बड़े-बड़े देवता भी ललचाते रहते हैं; क्योंकि इससे बड़ी-से-बड़ी उन्नति हो सकती है | परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है जीवका कल्याण हो सकता है और सदाके लिये उसे परम शान्तिकी प्राप्ति हो सकती है | ऐसे दुर्लभ शरीरको प्राप्त करके जो इसे व्यर्थ ही खो देता है, उसे फिर बड़ा पश्चात्ताप करना पड़ता है; क्योंकि यह सर्वथा अलभ्य, अमूल्य है | इन पौराणिक सन्दर्भों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समस्त सृष्टि में मानव शरीर से दुर्लभ कुछ अन्य न तो है और न ही हो सकता है | परंतु मनुष्य अपने शरीर का मूल्य न समझकर अन्य भौतिक संसाधनों , सांसारिक रिश्तों को मूल्यवान बताता रहता है | यह मनुष्य की बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती | प्रत्येक मनुष्य को इस अनमोल मानव देह के मूल्य को समझकर इसकी सुरक्षा / संरक्षा करते हुए सत्कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि आप पुन: संसार में जन्म तो ले सकते हैं परन्तु वह जन्म मनुष्य का ही होगा यह निश्चित नहीं है ! यह जन्म घोड़े , गदहे , बकरे , बन्दर आदि की योनि में भी हो सकता है | जो कार्य मानव शरीर पाकर किया जा सकता है वह अन्य शरीरों के माध्यम से सम्भव नहीं है | अत: इस दुर्लभ मानव शरीर के महत्त्व को प्रत्येक मनुष्य को समझना ही चाहिए |*
*आज के युग में इस दुर्लभ मानव शरीर का कोई मोल नहीं रह गया है | जिस प्रकार आज चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई है , नित्य नए कत्लेआम सुनने को मिल रहे हैं उससे यही भासित होता है कि आज मनुष्य इस सृष्टि के सबसे दुर्लभ मानव शरीर का मूल्य नहीं समझ रहा है | परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस के माध्यम से कागभुशुण्डि जी के मुखारविंद से यह कहलवाया है कि :- "नर समान नहिं कवनिउ देहीं" अर्थात :- मनुष्य के शरीर के समान दूसरा कोई शरीर हो ही नहीं सकता है , और यह शरीर क्षणभंगुर भी है | एक पल का ठिकाना नहीं है कि कब जीवन रूपी यात्रा समाप्त हो जाय , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को इस दुर्लभ मानव शरीर में आकर के एक - एक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज समाज में मनुष्य धैर्य विहीन हो गया है | छोटी-छोटी बातों पर जिस प्रकार लोग आत्महत्या करके अपने शरीर को नष्ट कर रहे हैं यह चिंतनीय है | ऐसे लोगों को विचार करना चाहिए कि जीवन में जो कष्ट आया है वह थोड़ी देर के बाद सामान्य हो सकता है परंतु यदि शरीर ही नष्ट हो गया तो क्या प्राप्त हो पाएगा | मनुष्य का विचार यही बनता होगा इन कष्टों से मुक्ति पाने का सरल रास्ता है कि जीवन को समाप्त कर दें | परंतु विचार कीजिए अपनी मूर्खता में आकर के मनुष्य आत्महत्या जैसा घोर पाप तो कर देता है परंतु अपने कष्ट को मिटाने के लिए कितने लोगों को कष्ट दे जाता है यह विचार कभी नहीं कर पाता | इस सुंदर शरीर को पा करके जिसने इसका सदुपयोग नहीं किया वह मनुष्य शरीर पाकर के भी पशु के समान ही माना जा सकता है | यह शरीर ऐसा है जिसे पाने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं क्योंकि जो मनुष्य कर सकता है वह तीनों लोगों में कोई भी करने में समर्थ नहीं है | जो आनन्द मानव शरीर में है वह अन्य शरीरों में कदापि नहीं प्राप्त हो सकता | इस तथ्य को समस्त मानव मात्र को समझते हुए इस दुर्लभ शरीर की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए अपने सत्कर्म के द्वारा इसे अमर कर देने का प्रयास करते रहना चाहिए |*
*चौरासी लाख योनि में मानव योनि इसीलिए सर्वश्रेष्ठ कही गई है क्योंकि मनुष्य के समान दूसरा शरीर नहीं हो सकता | इस शरीर को पा करके दीन - हीन अवस्था में जीवन यापन करने वालों को यह समझना चाहिए कि हमको वह प्राप्त हुआ है जो देवताओं के लिए भी अप्राप्त है , तभी इस जीवन की सार्थकता सिद्ध हो सकती है |*