अगर तुमने प्रेम नही कियातो कैसे जान पाओगे मुझकोकिसी को जी भरकर नही चाहाकिसी के लिए नही बहायाआँखों से नीर रात भरकिसी के लिए अपना तकिया नहीभिगोया कभीनही रही सीलन तुम्हारे कमरेमे अगर कभीतो कैसे जान पाओगे मुझको ||हृदय के अंतः पटल सेअगर नही उठी कभी तरंगेनही बिताई रात अगरचाँद और तारो के साथनही सुनी कभी न