"ग़ज़ल" आप मेहरबान को मैं भुला सकता नही दर्द है मेरे बदन का जो दिखा सकता नही घाव भीतर से लगा है दाग मरहम दूर है ढूढता हूँ नैन लेकर पर रुला सकता नही।। आप ने इसको जगाया फिर सवाया कर दिया चाह कर इस शूल को फिर से दबा सकता नही।। क्या कहूँ जी आप से यह आप की दरिया दिली धार