अपने पैरों खड़ी।समझ स्कूल,कालेज, शैक्षिक संस्थानों की पढ़ाई।घर, गाँव गली में पढ़-लिखकर शहर में हुई बड़ी।कर विश्वास अपने से, हो गई अपने पैरों खड़ी।भागदौड़ कर भीड़ में, पकड़ती हूँ शहर की रेल। शहर से कमा कर वापस आना, नही है कोई खेल।हँसती मुस्कराती ऑफिसों में, दिनों को गुजारती।आ घर, गिर बिस्तर में, दिन की थकी उ