ॐ इस एक शब्द में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाहित है।
इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। अर्थात इसका प्रारंभ तो है किन्तु अंत नहीं है। ॐ अनाहत है अर्थात इसकी उत्पत्ति किसी टकराहट से नहीं हुई है। यह स्वयं उत्पन्न हुआ है अर्थात स्वयंभु है।
ॐ तीन शब्दों 'अ' 'उ' 'म' से मिलकर बना है।
यह त्रिदेव (ब्रह्मा , विष्णु, महेश) तथा कृतक त्रैलोक्य (भूः, भुवः और स्वः ) का भी प्रतीक है।
ॐ का नियमानुसार उच्चारण करके मनुष्य आज्ञा चक्र एवम् सहस्रार चक्र को जाग्रत कर सकता है। इन दोनो चक्र का बीज मंत्र ॐ है।
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से ॐ शब्द की महिमा बताते हुए कहते हैं कि
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥
अर्थात् - जो मनुष्य ॐ इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण कर तथा मेरा स्मरण करता हुआ देह का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है।
"जय श्री कृष्ण"
✍️ प्रवीण भार्गव