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वेद महावाक्य

9 अक्टूबर 2021

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वेद आर्यावर्त एवम् सनातन धर्म के आधारभूत प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। महर्षि कृष्ण द्वैपायन ने वेदों का विस्तार किया है अतः उन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है।

महर्षि व्यास ने प्रभु रुद्र से अपने पुत्र शुकदेव को ज्ञान देने  आग्रह किया। प्रभु रुद्र ने शुकदेव को ब्रह्म ज्ञान के रूप में चार महावाक्यों का उपदेश दिया। 

शुकरहस्योपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। इस उपनिषद में इन चार महावाक्यों की व्याख्या है। ये चार महावाक्य हैं

(१.) ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म - ऋग्वेद
(२.) ॐ अहं ब्रह्मास्मि - यजुर्वेद
(३.) ॐ तत्वमसि - सामवेद
(४.) ॐ अयमात्मा ब्रह्म - अथर्ववेद

प्रथम महावाक्य प्रज्ञानं ब्रह्म का अर्थ है जो ज्ञान प्रकट है वही ब्रह्म है । यह जगन्नाथ धाम का भी महावाक्य है।

द्वितीय महावाक्य अहं ब्रह्मास्मि का अर्थ है मैं ब्रह्म हूं। मेरी आत्मा ब्रह्म  स्वरूप है। यह रामेश्वरम धाम का भी महावाक्य है।

तृतीय महावाक्य तत्वमसि का अर्थ है वह ब्रह्म तुम हो अर्थात ब्रह्म तुम्हारे अंदर है। यह द्वारिका धाम का भी महावाक्य है।

चतुर्थ महावाक्य अयमात्मा ब्रह्म का अर्थ है यह आत्मा ही ब्रह्म है। यह बद्रीनाथ धाम का भी महावाक्य है।



"जय श्री कृष्ण"



✍️ प्रवीण भार्गव


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9 अक्टूबर 2021

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वेद महावाक्य
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