देवीभागवत पुराण में कहा गया है–‘सृष्टि के आदि में एक देवी ही थी, उसने ही ब्रह्माण्ड उत्पन्न किया; उससे ही ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र उत्पन्न हुए । अन्य सब कुछ उससे ही उत्पन्न हुआ । वह ऐसी पराशक्ति (महाश
हिन्दू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत बड़ा महत्व है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकली जाती है. भगवान जगन्नाथ विष्णु भगवान के पूर्ण कला अवतार श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं।
भारत के उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है। उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी
श्रीमार्कण्डेय पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगतजननी मां अम्बा के ललाट से हुई थी।कथा के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों के आतंक का प्रकोप इस कदर बढ़ चुका था किउन्होंने अपने
भगवान की लीला बड़ी विचित्र है। वे कब कौन-सा काम किस हेतु करेंगे, इसे कोई नहीं जानता।भगवान की प्रत्येक लीला ऐसे ही रहस्यों से भरी होती है। उनकी लीला और महिमा का कोई पार नहीं पा सकता। उनका मूल उद्देश्य
एक बार भगवान श्री कृष्ण सो रहे थे और निद्रावस्था में उनके मुख से राधा जी का नाम निकला. पटरानियों को लगा कि वह प्रभु की इतनी सेवा करती है परंतु प्रभु सबसे ज्यादा राधा जी का ही स्मरण रहता है।रुक्मिणी जी
साम्ब कृष्ण और उनकी दूसरी पत्नी जांबवंती के ज्येष्ठ पुत्र थे जिसका विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से हुआ था। जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो गांधारी ने कृष्ण को इसका दोषी मानते हुए यदुकुल के नाश
जल के देवता...चंद्रमा...मन के कारक...चंद्रमा... सभी 27 नक्षत्रों के स्वामी चंद्रमा...आदिकाल से ही चांद को लेकर कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं चली आ रही हैं. चांद के वजूद और अहमियत को लेकर कई तरह तक द
साधुसाधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको क
श्रीमद्देवीभागवत पुराण में इस कथा का उल्लेख है। यह संसार माया के तीनों गुणों से व्याप्त है। राजा धर्म करें और तपस्वी तप करें - यह स्वाभाविक कर्म है, परंतु सभी प्राणियों का मन गुणों से आबद्ध रहने के का
धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार यानी 'कल्कि अवतार' प्रकट होगा। कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया
काम, क्रोध , शोक, मोह, विधित्सा ( शास्त्र विरुद्ध काम करने की इच्छा) परासुता ( दुसरो को मारने की इच्छा ) मद, लोभ , मात्सर्य , ईर्ष्या , निंदा, दोषदृष्टि , कंजूसी ।।यह 13 दोष प्राणियों के अत्यंत प्रबल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता लक्ष्मी ने राजा बलि को सबसे पहले राखी बांधी थी। एक बार राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरा करके स्वर्ग पर आधिपत्य का प्रयास किया, इससे इंद्र
भारत देश महाभारतकाल में कई बड़े जनपदों में बंटा हुआ था। हम महाभारत में वर्णित जिन 35 राज्यों और शहरों के बारे में जिक्र करने जा रहे हैं, वे आज भी मौजूद हैं। आप भी देखिए।1. गांधार- आज के कंधार को कभी ग
शिवजी के साथ चलने वाले तीन पैरों वाले शिवगण भृंगी की कथा सुनी है?महादेव के गणों मे एक हैं भृंगी। एक महान शिवभक्त के रुप में भृंगी का नाम अमर है। कहते हैं जहां शिव होंगे वहां गणेश, नंदी, श्रृंगी, भृंगी
1. गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं2. देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं3. शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं4. विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं5. दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें6. मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें7. तुल
1. गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं2. देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं3. शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं4. विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं5. दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें6. मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें7. तुल
1. गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं2. देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं3. शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं4. विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं5. दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें6. मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें7. तुल
1- जब हम पहली बार भगवत गीता पड़ते हैं। तो हम एक अन्धे व्यक्ति के रूप में पड़ते हैं और बस इतना ही समझ में आता है कि कौन किसके पिता, कौन किसकी बहन, कौन किसका भाई। बस इससे ज्यादा कुछ समझ नहीं आता।2- जब ह
अधिकतर हिंदुओं के पास अपने ही धर्मग्रंथ को पढ़ने की फुरसत नहीं है। वेद, उपनिषद पढ़ना तो दूर वे गीता तक को नहीं पढ़ते जबकि गीता को एक घंटे में पढ़ा जा सकता है। हालांकि कई जगह वे भागवत पुराण सुनने या रा