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शिव महापुराण ;-        ‘शंकर: पुरुषा: सर्वे स्त्रिय: सर्वा महेश्वरी ।’अर्थात्– समस्त पुरुष भगवान सदाशिव के अंश और समस्त स्त्रियां भगवती शिवा की अंशभूता हैं, उन्हीं भगवान अर्धन

  प्रतिपदा को कूष्मांड (कुम्हड़ा, पेठा) न खायें, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। द्विताया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। तृतिया को परवल खाने से शत्रुओं की वृद्

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं….यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्‌॥(गीता 16/23)जो मनुष्य कामनाओं के वश में होकर शास्त्रों की विधियों को त्याग कर अपने ही मन से उ

संस्कृत शब्द एकादशी का शाब्दिक अर्थ ग्यारह होता है। एकादशी पंद्रह दिवसीय पक्ष (चन्द्र मास) के ग्यारहवें दिन आती है। एक चन्द्र मास (शुक्ल पक्ष) में चन्द्रमा अमावस्या से बढ़कर पूर्णिमा तक जाता है, और उस

गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का

महाभारत से सम्बंधित पिछले लेख में हमने आपको बताया था की कैसे श्रीकृष्ण सहित पुरे यदुवंश का नाश हो जाता है तथा साथ ही द्वारका नगरी भी समुद्र में डूब जाती है। आज के लेख में हम आपको उसके आगे की कहानी बता

 प्रतिभा की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती हैं। समस्त वाङ्मय, सम्पूर्ण कला और पूरा ज्ञान-विज्ञान माँ शारदा का ही वरदान है। बुधवार को त्रयोदशी तिथि को एवं शारदीय नवरात्रों में ज्ञानदायिनी भगवती शा

यह बात तब की है जब श्रीकृष्ण अपने बाल्यावस्था में थे यानी यह कहानी श्रीकृष्ण के बचपन की है। उस समय ब्रह्माजी को पता चला कि भगवान विष्णु स्वयं श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं, तो उनके मन

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)अर्थात आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उस

1. पूर्व-दिशायह प्रकाश, ज्ञान, चेतना का स्रोत है। भगवान सूर्य इस दिशा में उदित होकर सभी प्राणियों में स्फूर्ति व उर्जा का संचार करते हैं। इन्द्र इसके देवता हैं और सूर्य ग्रह। पूजा ध्यान, चिंतन तथा अन्

1. पूर्व-दिशायह प्रकाश, ज्ञान, चेतना का स्रोत है। भगवान सूर्य इस दिशा में उदित होकर सभी प्राणियों में स्फूर्ति व उर्जा का संचार करते हैं। इन्द्र इसके देवता हैं और सूर्य ग्रह। पूजा ध्यान, चिंतन तथा अन्

आनन्द रामायण में कुल 9 काण्ड हैं, जिनमें भगवान राम से जन्म से लेकर स्वलोकगमन तक की कथाएं बताई गई हैं। ग्रंथ में खुद भगवान राम ने 7 ऐसी बातें बताई गई हैं, जो की मनुष्य के सबसे बड़े अवगुण होते हैं। ये 7

ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले साधक की दिनचर्या नियमित होनी चाहिए।1. साधक को सुबह ब्रह्म मुहूर्त (3-4) बजे उठ जाना चाहिए| उठने के तुरंत बाद ईश्वर चिन्तन करें|2. उस के बाद 1-2 गिलास पानी पियें| अपनी क्षम

हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण के रहस्य को उजागर किया गया है। इसके अलावा वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं,जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।इसके अनुसार, श्रेष्ठ मनुष्य जैसा आचरण करते हैं, वह जो कुछ प्रमाण देते हैं, दूसरे मनुष्य (प्रजा) उसी के अनुसार आचरण करते हैं।सत्

आदिनाथो गुरुर्यस्य गोरक्षस्य च यो गुरु:।मत्स्येन्द्रं तमहं वन्दे महासिद्धं जगद्गुरुम्।। (योगमौक्तिकविचारसागर)गुरु गोरक्षनाथ (गोरखनाथ) कौन हैं?महायोगी गुरु गोरखनाथ या गोरक्षनाथ ‘शिवावतार’ कहे जाते हैं।

'पत्रं, पुष्पं, फलं, तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:।'अर्थ : जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी का प्र

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि में कई ऐसे पात्रों का वर्णन है जिनका जन्म बिना माँ के गर्भ और पिता के वीर्य के हुआ था। यहां हम आपको 16 ऐसे ही पौराणिक पात्रो क़े ज़न्म की कहानी बत

एक बार द्वारकानाथ श्रीकृष्ण अपने महल में दातुन कर रहे थे । रुक्मिणी जी स्वयं अपने हाथों में जल लिए उनकी सेवा में खड़ी थीं । अचानक द्वारकानाथ हंसने लगे । रुक्मिणी जी ने सोचा कि शायद मेरी सेवा में कोई ग

भगवान श्रीगणेश की पूजा बिना सिंदूर के अधूरी मानी जाती है । उनकी पूजा में तीन वस्तुएं अत्यंत आवश्यक मानी गयी हैं—दूर्वा, सिंदूर और मोदक । जानें, क्या है श्रीगणेश को सिंदूर लगाने का पौराणिक प्रसंग।भगवान

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