नमस्कार दोस्तों! शब्द नगरी द्वारी सजाई गयी इस महफ़िल में आज से मैंने भी क़दम रख दिए हैं!
काफी सामान हैं यहां लुभाने के; सो सोचा क्यों आप सब से मुलाक़ात भी की जाय और मन में जो ए , उकेर भी दिया जाय .. शब्द नगरी का आभार की एक मंच दिया. शब्द नगरी की ओर से, मज़ाहिया अंदाज़ में लिखना चाहूंगा कि - -
पाए- खूबां कोई ज़िंदां में नया है मजनू , आपकी आवाज़-ए -सिलासिल कभी ऐसी तो न थी!
आज के लिए इतना ही और आइंदा के लिए आपके साथ और भरोसे की उम्मीद के साथ,
आपका-राघव