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बात से पहले की बात

16 फरवरी 2017

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मित्रो, नमस्कार ! मैंने अपना पन्ना (वेब पेज ), 'बात बोलेगी' कल ही बनाया था और आज,' बात से पहले की बात' करना चाहता हूँ.

यह सन 1949 की बात है. मैं तब कक्षा चार में दिल्ली, पहाड़गंज के दयानंद एंग्लो-वैदिक विद्यालय में पढता था. वहाँ एक वाक्-प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. विषय था,' क्या भारत विश्व का प्रतिनिधित्व कर सकता है! ' मुझे तो केवल पढ़ना भर था, आ लेख तो हमारे अध्यापक आचार्य लक्ष्मीनारायण शास्त्री जी ने लिखा था. मेरे पिताश्री जो तब आकाशवाणी में कार्यरत थे, उस दिन काम पर नहीं गए बल्कि प्रतियोगिता में मेरा उत्साह बढ़ाने आए. कई विद्यालयों का जमावड़ा था. में प्रथम आगया. पारितोषक मिलने के साथ ही साथ मेरे पिता ने मुझे गोद में उठा लिया और तुरंत ही मुझे मेरी पसंदीदा चीज़ दिलाने ले चले,'फुटबॉल' ! फुटबॉल खरीद कर , उनहोंने तुरंत ही उस पर मेरा नाम अपने पेन से, हिंदी में लिखा तो मैंने उत्सुकतावश पूछा, '' पिताजी, हिंदी में क्यों!' उन्होंने मानो हुंकार भरी,'बेटा अब देश में यही भाषा चलेगी, अब हम आज़ाद हैं न!'


बात मन में बैठ गई. पिताश्री तो सन '५१ में ही अकाल मृत्यु के शिकार हो गए, मेरे मन में बात बैठ गई. स्नातकोत्तर परीक्षा का विषय हिंदी रहा, लिखने का रोग तो बचपन से ही पाल लिया था किन्तु जब पुणे के फिल्म तथा टी वी संस्थान में प्रवेश लिया और हमारे फिल्म निर्देशन के विभागाद्यक्ष स्वर्गीय डॉक्टर मुशीर अहमद ने यह बताया कि,' अब हिंदुस्तान में मनोरंजन का एक नया माध्यम दूरदर्शन आने वाला है ( तब तक दूरदर्शन प्रायोगिक रूप से 1-2 घंटे के लिए ही केवल दिल्ली से प्रसारित होता था ) उसे ज्वाइन करके आप लोग पॉजिटिव एंटरटेनमेंट की शुरूआत कीजियेगा 1 मीडिया के किसी भी फील्ड में आप जाएं तो पॉजिटिव सोच ही रखियेगा!'


मुशीर साहब की बात मन में घर कर गई. आदरणीय प्रधानाचार्य श्री जगत मुरारी ने, पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद, मुझे अपना मेधावी छात्र कह कर दिल्ली दूरदर्शन ही भेज दिया. वहाँ 1 वर्ष हिंदी के कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के बाद मुम्बई का मोह बढ़ा तो मीडिया में जहां कहीं जो भी किया हिंदी के लिए किया. विज्ञापनों के संसार में जीवन बीमा के लिए,' नारी तुम केवल श्रद्धा हो' जैसे उद्धरण लिए, तब तक परंपरा थी कि अंग्रेजी की हैडलाइन ही अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित की जाती थीं किन्तु हम तीन हिंदी के मतवालों ने एक हिंदी लेखन की संस्था खोली थी जहां हिंदी कॉपी लिखी जाती थी. एक हैडलाइन याद आ ररही है, ' शिक के माथे पे हिंदी की बिंदी' आदि . फिर दूरदर्शन में धारावाहिकों का ज़माना आया तो आदरणीय श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी, शरत बाबु का चरित्रहीन, शेष प्रश्न, टेली-फिल्म विजया, मछलीघर और न जाने कितने साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम किये किन्तु पश्चिम से प्रभावित चैंनलों ने धीरे धीरे हिंदी को केवल बाज़ार की भाषा बना दिया, लगा जैसे अँधेरा छा गया है. किन्तु माचिस की तीली का प्रकाश बन ,'शब्द नगरी' आया , जैसे कुहासे में से सूर्य झाँकने लगा हो, जैसे जाड़े की धुप आ गई हो और मन इससे जुड़ गया. ... हिंदी मेरी जननी है , मेरी मातृभाषा, मराठी में भी बड़ा अच्छा नाम है, 'मायबोली' ! अंत में आज के लिए इतना ही -


" जिसको न निज भाषा तथा निज देश का अभिमान है ,

वह नर नहीं नर- पशु निरा है और मृतक सामान है!"








रेणु

रेणु

राघव जी , बहुत ही बढ़िया संस्मरण लिखा है आपने | आपका साहित्य के क्षेत्र में दूरदर्शन पर किया गया काम अतुलनीय है | वह दूरदर्शन का स्वर्णिम काल था | शरत - साहित्य के चरित्तरहीन , शेषप्रश्न के साथ हिंदी में - व्यंग की गीता - कही जाने वाली श्री लाल शुक्ल जी की रचना राग - दरबारी का नाट्य रूपांतरण हो या नौटंकी की गुलाब जान पर वृतचित्र आदि - आप के काम का सदैव ही ऊँचा मूल्याङ्कन किया जायेगा | आपने कुछ यादें साझा की बहुत अच्छा लगा | आपके पिता जी की के बारे में जानना बहुत ही हृदयस्पर्शी है | है आप भविष्य में भी अपने दुसरे संसमरण लिखेंगे | आपको हार्दिक शुभकामना |

17 फरवरी 2017

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आगाज़

15 फरवरी 2017
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नमस्कार दोस्तों! शब्द नगरी द्वारी सजाई गयी इस महफ़िल में आज से मैंने भी क़दम रख दिए हैं! काफी सामान हैं यहां लुभाने के; सो सोचा क्यों आप सब से मुलाक़ात भी की जाय और मन में जो ए , उकेर भी दिया जाय .. शब्द नगरी का आभार की एक मंच दिया. शब्द नगरी की ओर से, मज़ाहिया अंदाज़ में लिखना चाह

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बात से पहले की बात

16 फरवरी 2017
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मित्रो, नमस्कार ! मैंने अपना पन्ना (वेब पेज ), 'बात बोलेगी' कल ही बनाया था और आज,' बात से पहले की बात' करना चाहता हूँ. यह सन 1949 की बात है. मैं तब कक्षा चार में दिल्ली, पहाड़गंज के दयानंद एंग्लो-वैदिक विद्यालय में पढता था. वहाँ एक वाक्-प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. विषय था,' क्या भारत विश्व का प्रति

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बूँद टूटे कि तोड़े !

17 फरवरी 2017
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' बारिश की बूँद टूटे कि तोड़े, सवाल इतना सा है! ' देवेंद्र भाई ने कहा और चुप हो गए.देवेंद्र भाई यानी स्वर्गीय डॉ. देवेंद्र कुमार, प्रसिद्द गांधीवादी अर्थशास्त्री, डॉ कुमारप्पा के शिष्य एवं गुमनाम वैज्ञानिक! वैज्ञानिक , जो केवल गांव वालों के लिए ही सोचते थे और उन्हें निरंतर आत्मनिर्भरता की और अग्रसर

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साझा विरासत का खून: फूल रही सरसों

18 फरवरी 2017
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16 फरवरी, 2017. पाकिस्तान की एक जगह सहवान में १३वीं सदी के महान मुस्लिम सूफ़ी संत लाल शहबाज़ क़लन्दर का मज़ार और उसमें भक्तों का जमावड़ा, अक़ीदत के फूल और चादरें, सूफ़ी क़व्वालियाँ, दिव्य आनंद की 'धमाल'....कि एक धमाका और 70 मरे, 100 से ज़्यादा घायल!!! यह उस दिन की सबसे बड़ी खबर थी और यह एक आतंकी हमला था.....प

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और वह केला नहीं ख़रीद पाई !

21 फरवरी 2017
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बहुत दिनों पहले की बात है .तब जनाब ख़्वाजा अहमद अब्बास हयात थे. एक प्रसिद्द टैब्लॉइड 'ब्लिट्ज़' के हिंदी संस्करण में उनका एक स्तम्भ 'आख़िरी पन्ना' छपा करता था. एक बार उन्होंने लिखा कि जब वो छोटे थे तोअपने लिए दूध नहीं ख़रीद पाए क्योंकि जब उनकी जेब में 4 आने होते तो

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सदाफूली की साइकिल

24 फरवरी 2017
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माँ ने उसका नाम ही सदाफूली रख दिया था. 'सदाफूली ' महाराष्ट्र में 'सदाबहार' फूल को कहते हैं. गर्मी हो, सर्दी या कि बरसात, यह फूल सदाबहार है , फूलता ही रहता है. कई मर्ज़ों की दवा भी है यह! 'एंटीबायटिक' बनाने मैं भी प्रयोग की जाती है अर्थात स्वयं तो सदा खिली रहती ही है द

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सुपारी वहाँ भी: सुपारी यहां भी

28 फरवरी 2017
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हाल ही में महाराष्ट्र के विदर्भ अंचल के नगर वर्धा के पास बसे सेवाग्राम में स्थित,'गांधीकुटी'केतीर्थाटन को गया था. सेवाग्राम से लेकर वर्धा तक की पुण्यभूमि गाँधी जी की कर्मस्थली रही. सेवाग्राम एक पूरा परिसर है जिसमें गाँधी जी द्वारा खोलेगये विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठन, शिक्षा संस्थान एवं राष्ट्रीय

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" मेरे पिता को पकिस्तान ने नहीं मारा !"

3 मार्च 2017
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जी! किसी नन्ही-मुन्नी कली(आयु केवल दो वर्ष) के पिता युद्ध में खेत रहे! उसे कहा गया कि युद्ध पाकिस्तान से था . गुड़िया ज्यों-ज्यों बड़ी होती गई , उसके मन में यह बात बैठती गयी कि पाकिस्तानी उसके पिता के क़ातिल हैं. छह साल तक अपने पिता की बांहों के लिए तरसती रही इस मुलमुली

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