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" मेरे पिता को पकिस्तान ने नहीं मारा !"

3 मार्च 2017

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जी! किसी नन्ही-मुन्नी कली(आयु केवल दो वर्ष) के पिता युद्ध में खेत रहे! उसे कहा गया कि युद्ध पाकिस्तान से था . गुड़िया ज्यों-ज्यों बड़ी होती गई , उसके मन में यह बात बैठती गयी कि पाकिस्तानी उसके पिता के क़ातिल हैं. छह साल तक अपने पिता की बांहों के लिए तरसती रही इस मुलमुली सी बच्ची ने अपने ही आप यहधारणा भी बना ली कि सारे मुसलमान पाकिस्तानी ही होते हैं . वह किसी मुसलमान से अपने पिता की मौत का का बदला लेने के लिए अधीर हो उठी! उसने छह साल की कच्ची उम्र में ही एक बुर्क़े वाली औरत को चाक़ू से निशाना बनाना चाहा कि पकड़ी गई. तब माँ ने समझाया कि बेटा देश तो देश है, इधर हो कि उधर, युद्ध छिड़ा तो मौतें तो दोनों तरफ होंगी ही. इसलिए मौत का ज़िम्मेदार सिर्फ युद्ध और युद्ध ही होता है. न युद्ध होता न उसके पिता की मौत होती. माँ ने बेटी को वही बात समझाई जो गांधी समझाते, बुद्ध समझाते, ईसा समझाते!बच्ची पल भर में बड़ी हो गई. उसकी समझ में माँ की बात आ गई. लगभग बीस की होने पर उसने अपने हाथों से लिख कर प्लेकार्डस बनाये और लिखा मेरे पिता को पकिस्तान ने नहीं 'युद्ध' ने मारा. क्या बुरा किया उसने! बुद्ध ने भी तो कौशाम्बी के बौद्ध भिक्खुओं में वैमनस्य सुलझाते हुए यही कहा था, 'नहि वैरेण, वैराणि...' अर्थात वैर से वैर समाप्त नहीं होता! गाँधी भी होते तो कहते, ' आँख फोड़ने के बदले आँख ही फोड़ते जाएंगे तब तो सारा जग ही अंधा हो जाएगा! माँ-बेटी की आत्मा में यदि गाँधी प्रवेश कर ही गए तो किसी को बुरा क्यों लग गया! और फिर बेटी की समझ से यदि उसके पिता को युद्ध ने मारा तो आप कौन होते हैं उसे झुठलाने वाले! जाने किस दिन और किस सन्दर्भ में यह प्लेकार्ड उसने अपनी फेसबुक पर डाल दिया कि किन्ही शरारती तत्वों ने उसे ऐसे खोज निकाला जैसे गढ़े हुए मुर्दे खोज निकालते हैं और अपने असहिष्णु आंदोलन की आग में पेट्रोल डालने तथा अपने राजनैतिक उद्देश्य को हवा देने के लिए सबसे पहले तो उसे देश-द्रोही क़रार दिया और फिर उसे रेप और मार डालने की धमकियां तो जैसे बच्चों का खेल बन गईं. विकृत मानसिकता वाले नादानों ने उसके साथ बलात्कार के ग्राफिक तक बनाए. शायद उनके घर में बहनें नहीं रही होंगीं. भगवान् न करे जिसे वे ग़लती मान रहे हैं, यदि ऐसी ग़लती उनकी बहन से हो जाती तो भी वे ऐसे ही ग्राफिक बनाकर पोस्ट करते क्या!


चिंगारी क्या लगी कि आग फैल गई! सिर फुटव्वल की नौबत आगई . छात्र तो छात्र ,अध्यापक का गला भी मफलर की मदद से घोट डाला. इतने जूते मारे कि पसलियों में गोपनीय चोटों से बेहोश हो गए अध्यापक महोदय! सरकार के एक सदस्य ने अपना कर्तव्य निबाहां . बोले,' यह तो देश के शहीदों का अपमान है! ऐसे लोगों को क्षमा नहीं किया जा सकता. और फिर इस लड़की का दिमाग़ किसने दूषित कर दिया? ' प्रदूषण पर क्या ही सटीक खोज की है सर! 'दूषित'! शब्द का वाक्य में प्रयोग कोई इनसे सीखे! किन्तु इन्हें यह भी समझना होगा कि पहले ठीक से हिंदी सीखें!


अस्तु आग लग गई, पुलिस खड़ी देखती रही, आग दूसरे खेमों में भी पहुंची , नारों, लताड़ो, किराए के देशभक्तों और संस्कृति के ठेकेदारों के महायुद्ध के बीच उस आग की चिंगारी ने विश्राम ले लिया. ठीक किया तुमने गुड़िया! इस किराये की देशभक्ति और मुफ्त की शहादत से भी परे एक चीज़ है, शिक्षा जो तुम्हें ज्ञान के उस शिखर पर पहुंचाएगी जहां भारत कहता है, ' वसुधैव कुटुम्बकम' ! इसके अतिरिक्त-


मुंडे - मुंडे मतिर्भिन्ना , कुंडे - कुंडे नवं पयः l

जातौ -जातौ नवचाराः , नवा-वाणी मुखे - मुखेl l

( वायु पुराण)

वायु पुराण की इस सीख का हिंदी में भावानुवाद यह है कि,हरेक मनुष्य की सोच एक जैसी नहीं होती, हर कुए के पानी का स्वाद भी एक जैसा नहीं होता, प्रत्येक जाती-समुदाय के आचार-विचार एक जैसे नहीं होते और हर किसी के विचार भी एक जैसे नहीं होते!


ये तथाकथित , अवसरवादी राजनीति से प्रेरित राष्ट्रवादी, प्राचीन भारतवर्ष राष्ट्र की प्राचीन सीखें कैसे भूल गए! और अब अंत में याद आते हैं अपने सही राष्ट्रवादी कवि साहिर लुधियानवी जिन्होंने एक दो देशों से ही ही नहीं अपितु सारी मानवता से ही अपील की है-


टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें, कोख धरती की बाँझ होती है ,

जीत का जश्न हो कि हार सोग़, ज़िन्दगी मैय्यतों पे रोती है;

इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानो, जंग टालती रहे तो बेहतर है ,

आपके और हमारे आँगन में, शम्मा जलती रहे तो बेहतर है. .....

.

रेणु

रेणु

आदरणीय राघव जी , अपने लेख के माध्यम से बहुत बड़ी बात कह दी आपने ! ये बात अक्षरशः सच है कि आज देश में जरा सी बात का बतंगड़ बनाने की प्रवृति हावी हो रही है | एक और सच ये भी है कि जब कोई बचपन असमय ही अपने माता अथवा पिता कि छाया से वंचित हो जाता है - उसके मन में नाना प्रकार कि कुंठाएं घर कर जाती है -- यहाँ भी यही हुआ है | एक शहीद की बेटी को यही लगा कि युद्ध बुरा होता है -- जिसने उसके पिता को मारा है -- | उसकी बात गलत है या सही -- इसका आकलन शरारती तत्व अपने नजरिये से करने लगे - | ये बात बहुत दुर्भग्य पूर्ण है कि एक इंसान किसी विषय पर अपने विचार ही प्रकट ना कर सके --| संविधान ने समस्त देशवासियों को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता दी है | हमें एक दुसरे के विचारों का सम्मान करना चाहिए -- जब तक वे देश विरोधी ना हों - यदि ऐसा है भी तो उसका निर्णय करने के लिए न्याय पालिका है - | क्योंकि सबके विचार सचमुच एक सामान नहीं होते - और माँ - बेटी के सम्मान की परम्परा भारत की संस्कृति का अहम् अंग है -- जिसे आज के कथित पढ़े लिखे युवाओं को नहीं भूलना चाहिए | आपको इस सौहार्द पूर्ण लेख के लिए बहुत धन्यवाद |

4 मार्च 2017

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' बारिश की बूँद टूटे कि तोड़े, सवाल इतना सा है! ' देवेंद्र भाई ने कहा और चुप हो गए.देवेंद्र भाई यानी स्वर्गीय डॉ. देवेंद्र कुमार, प्रसिद्द गांधीवादी अर्थशास्त्री, डॉ कुमारप्पा के शिष्य एवं गुमनाम वैज्ञानिक! वैज्ञानिक , जो केवल गांव वालों के लिए ही सोचते थे और उन्हें निरंतर आत्मनिर्भरता की और अग्रसर

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साझा विरासत का खून: फूल रही सरसों

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16 फरवरी, 2017. पाकिस्तान की एक जगह सहवान में १३वीं सदी के महान मुस्लिम सूफ़ी संत लाल शहबाज़ क़लन्दर का मज़ार और उसमें भक्तों का जमावड़ा, अक़ीदत के फूल और चादरें, सूफ़ी क़व्वालियाँ, दिव्य आनंद की 'धमाल'....कि एक धमाका और 70 मरे, 100 से ज़्यादा घायल!!! यह उस दिन की सबसे बड़ी खबर थी और यह एक आतंकी हमला था.....प

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और वह केला नहीं ख़रीद पाई !

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बहुत दिनों पहले की बात है .तब जनाब ख़्वाजा अहमद अब्बास हयात थे. एक प्रसिद्द टैब्लॉइड 'ब्लिट्ज़' के हिंदी संस्करण में उनका एक स्तम्भ 'आख़िरी पन्ना' छपा करता था. एक बार उन्होंने लिखा कि जब वो छोटे थे तोअपने लिए दूध नहीं ख़रीद पाए क्योंकि जब उनकी जेब में 4 आने होते तो

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माँ ने उसका नाम ही सदाफूली रख दिया था. 'सदाफूली ' महाराष्ट्र में 'सदाबहार' फूल को कहते हैं. गर्मी हो, सर्दी या कि बरसात, यह फूल सदाबहार है , फूलता ही रहता है. कई मर्ज़ों की दवा भी है यह! 'एंटीबायटिक' बनाने मैं भी प्रयोग की जाती है अर्थात स्वयं तो सदा खिली रहती ही है द

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