shabd-logo

और वह केला नहीं ख़रीद पाई !

21 फरवरी 2017

175 बार देखा गया 175

बहुत दिनों पहले की बात है .तब जनाब ख़्वाजा अहमद अब्बास हयात थे. एक प्रसिद्द टैब्लॉइड 'ब्लिट्ज़' के हिंदी संस्करण में उनका एक स्तम्भ 'आख़िरी पन्ना' छपा करता था. एक बार उन्होंने लिखा कि जब वो छोटे थे तोअपने लिए दूध नहीं ख़रीद पाए क्योंकि जब उनकी जेब में 4 आने होते तो दूध 8 आने पाव होता और जब उनकी जेब में 8 आने हुए तो दूध 1 रुपए पाव हो गया. ग़रज़ है कि अपनी तंगहाली के दिनों में वो दूध पी ही न पाए! वो तब की बात थी, अब आज की बात!

केला कल तक ग़रीब का फल माना जाता था. मैं एक रेहड़ी से केले ख़रीद रहा था. सड़क के उस पार की एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से एक ग़रीब मजदूरिन अपनी छोटे सी बच्ची का हाथ थामे सड़क पार कर उस रेहड़ी वाले की ओर आ रही थी. बच्ची 4-5 बरस की रही होगी. वो अपनी माँ को लगभग खींच कर रेहड़ी वाले की तरफ ला रही थी. उसकी चाल में अति-उत्साह, आँखों में न जाने कितनी चमक और गोल-मटोल चेहरे पर बड़ी अधीरता थी. उसे केला खाने की जल्दी थी. उसने माँ को को इशारा किया, माँ ने केले वाले की ओर देखा, वो किसी और को केला देने में व्यस्त था. उसकी कानों में वैसे भी माँ के ये बोल पड़ गए थे, ' एक केला देना!' एक केले में वो क्या दिलचस्पी दिखाता! झुँझला कर बोला, अरे दे रहा हूँ भाई, तुम ज़रा पीछे हो जाओ.' केले वाले को डर था, कहीं माँ-बेटी आँख बचाकर उसके केले न मार दें! माँ ने सहम कर स्वयं और बेटी को पीछे हटा लिया और मेरी और एक दृष्टि डाली. उस दृष्टि में क्या था, क्या बताऊँ! मानो उसकी आँखें कह रही हों, ' बाबु जी हम चोर नहीं हैं!'


तब तक मेरी बारी आई. मेरा मन वितृष्णा और ममता से एक साथ भर आया. बड़े उदास स्वर में मैंने कहा, 'पहले इन्हें दे दो!' बड़ी बदतमीज़ी से केलेवाला उस मजदूरिन से बोला, बोल, तूई बोल पैले! उसने अपनी फटी-पुरानी, मैली-कुचैली धोती की गाँठ से एक पचास पैसे का सिक्का निकाला और किसी तरह बोली, 'एक केला'! उसकी आवाज़ में थरथराहट थी, उससे अधिक संकोच और सबसे अधिक लज्जा का भाव. बोलने के साथ ही उसने नज़रें झुका लीं, फिर तिरछी निगाहों से उसे और मुझे देखने भी न पाई थी कि केले वाला गरज उठा, ' पचास पैसे में केला आता है क्या? ' औरत संकोच के मारे गड गई. किसी भी ओर न देख पाई, अपने खूँट से उसने पचास पैसे का सिक्का और निकाला और केले वाले की ऒर बिना नज़र मिलाए बढ़ा दिया. केले वाले ने हाथ झटक कर नफ़रत से कहा,'केला 2 रुपए का आता है अब, कुछ पता भी है ?'


औरत एक क्षण को जड़ हुई, फिर किसी भी ओर न देख , बच्ची को मानो एक झटके से गोद में उठायाऔर ये जा-वो जा, सड़क पार कर गई. उसकी बेटी सहमी हुई उसकी गोद में लगी थी और भयंकर ललचाई हुई आँखों से केलों की ओर देखे जा रही थी.


मैंने उन्हें केले नहीं दिलाये. मुझे लगा, यह माँ-बेटी के लिए ग़लत संस्कारों की शुरुआत होगी. मैं माँ का स्वाभिमान तोडना भी नहीं चाहता था और गलाना भी नहीं चाहता था.


पता नहीं मैंने पूण्य किया या पाप किन्तु एक माँ अपनी बेटी के लिए केला नहीं खरीद पाई!!!




रेणु

रेणु

बहुत मर्मस्पर्शी पसंग लिखा आपने | आपने उन्हें केले ना दिलाकर अच्छा ही किया | एक औरत का स्वाभिमान जो बच गया |

21 फरवरी 2017

1

आगाज़

15 फरवरी 2017
0
3
1

नमस्कार दोस्तों! शब्द नगरी द्वारी सजाई गयी इस महफ़िल में आज से मैंने भी क़दम रख दिए हैं! काफी सामान हैं यहां लुभाने के; सो सोचा क्यों आप सब से मुलाक़ात भी की जाय और मन में जो ए , उकेर भी दिया जाय .. शब्द नगरी का आभार की एक मंच दिया. शब्द नगरी की ओर से, मज़ाहिया अंदाज़ में लिखना चाह

2

बात से पहले की बात

16 फरवरी 2017
0
3
1

मित्रो, नमस्कार ! मैंने अपना पन्ना (वेब पेज ), 'बात बोलेगी' कल ही बनाया था और आज,' बात से पहले की बात' करना चाहता हूँ. यह सन 1949 की बात है. मैं तब कक्षा चार में दिल्ली, पहाड़गंज के दयानंद एंग्लो-वैदिक विद्यालय में पढता था. वहाँ एक वाक्-प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. विषय था,' क्या भारत विश्व का प्रति

3

बूँद टूटे कि तोड़े !

17 फरवरी 2017
0
2
1

' बारिश की बूँद टूटे कि तोड़े, सवाल इतना सा है! ' देवेंद्र भाई ने कहा और चुप हो गए.देवेंद्र भाई यानी स्वर्गीय डॉ. देवेंद्र कुमार, प्रसिद्द गांधीवादी अर्थशास्त्री, डॉ कुमारप्पा के शिष्य एवं गुमनाम वैज्ञानिक! वैज्ञानिक , जो केवल गांव वालों के लिए ही सोचते थे और उन्हें निरंतर आत्मनिर्भरता की और अग्रसर

4

साझा विरासत का खून: फूल रही सरसों

18 फरवरी 2017
0
3
1

16 फरवरी, 2017. पाकिस्तान की एक जगह सहवान में १३वीं सदी के महान मुस्लिम सूफ़ी संत लाल शहबाज़ क़लन्दर का मज़ार और उसमें भक्तों का जमावड़ा, अक़ीदत के फूल और चादरें, सूफ़ी क़व्वालियाँ, दिव्य आनंद की 'धमाल'....कि एक धमाका और 70 मरे, 100 से ज़्यादा घायल!!! यह उस दिन की सबसे बड़ी खबर थी और यह एक आतंकी हमला था.....प

5

और वह केला नहीं ख़रीद पाई !

21 फरवरी 2017
0
2
1

बहुत दिनों पहले की बात है .तब जनाब ख़्वाजा अहमद अब्बास हयात थे. एक प्रसिद्द टैब्लॉइड 'ब्लिट्ज़' के हिंदी संस्करण में उनका एक स्तम्भ 'आख़िरी पन्ना' छपा करता था. एक बार उन्होंने लिखा कि जब वो छोटे थे तोअपने लिए दूध नहीं ख़रीद पाए क्योंकि जब उनकी जेब में 4 आने होते तो

6

सदाफूली की साइकिल

24 फरवरी 2017
0
5
2

माँ ने उसका नाम ही सदाफूली रख दिया था. 'सदाफूली ' महाराष्ट्र में 'सदाबहार' फूल को कहते हैं. गर्मी हो, सर्दी या कि बरसात, यह फूल सदाबहार है , फूलता ही रहता है. कई मर्ज़ों की दवा भी है यह! 'एंटीबायटिक' बनाने मैं भी प्रयोग की जाती है अर्थात स्वयं तो सदा खिली रहती ही है द

7

सुपारी वहाँ भी: सुपारी यहां भी

28 फरवरी 2017
0
2
1

हाल ही में महाराष्ट्र के विदर्भ अंचल के नगर वर्धा के पास बसे सेवाग्राम में स्थित,'गांधीकुटी'केतीर्थाटन को गया था. सेवाग्राम से लेकर वर्धा तक की पुण्यभूमि गाँधी जी की कर्मस्थली रही. सेवाग्राम एक पूरा परिसर है जिसमें गाँधी जी द्वारा खोलेगये विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठन, शिक्षा संस्थान एवं राष्ट्रीय

8

" मेरे पिता को पकिस्तान ने नहीं मारा !"

3 मार्च 2017
0
2
1

जी! किसी नन्ही-मुन्नी कली(आयु केवल दो वर्ष) के पिता युद्ध में खेत रहे! उसे कहा गया कि युद्ध पाकिस्तान से था . गुड़िया ज्यों-ज्यों बड़ी होती गई , उसके मन में यह बात बैठती गयी कि पाकिस्तानी उसके पिता के क़ातिल हैं. छह साल तक अपने पिता की बांहों के लिए तरसती रही इस मुलमुली

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए