मुहोब्बत का गर कोई मज़हब बना होता,
तो शायद कोई झगड़ा ही ना हुआ होता.
बनाये मज़हब तो बहुत ना सीखे मुहोब्बत,
मज़हब के नाम पे बस करते रहे सियासत.
गर ख़ुदा ने मज़हब को बनाया होता,
उसमे नफ़रत का ज़हर ना घोला होता.
22 अगस्त 2017
मुहोब्बत का गर कोई मज़हब बना होता,
तो शायद कोई झगड़ा ही ना हुआ होता.
बनाये मज़हब तो बहुत ना सीखे मुहोब्बत,
मज़हब के नाम पे बस करते रहे सियासत.
गर ख़ुदा ने मज़हब को बनाया होता,
उसमे नफ़रत का ज़हर ना घोला होता.