ब्राह्मण तो देवी-देवताओ के लिए आये चढ़ावे पर जीते है, राजपूतो और जाटो के पास अपनी जमीने है. अहीरों-गूजरों के पास उनके मवेशी और बनियों के पास उनकी दुकानें है. बेचारे कायस्थ ही है जिन्हे अपने दिमाग़ और नरकट की कलमों पर निर्भर रहना पड़ता है. और उनके दिमाग़ों और कलमों की कीमत अदा करनेवाला जो वर्ग हैं वह सिर्फ एक ही है और वह है हुक्मरानों का .( खुशवंत सिंह )