चर्ख़ अपना की न अपना कोई ,
मर्ज़ ऐसा की न दवा कोई.
आशिकी है मगर कोई माशूक नहीं,
आशियाना तो है पर आबाद नहीं.
कहने को तो है शायरी,
पर कोई सुनाने वाला नहीं. (आलिम)
27 अगस्त 2017
चर्ख़ अपना की न अपना कोई ,
मर्ज़ ऐसा की न दवा कोई.
आशिकी है मगर कोई माशूक नहीं,
आशियाना तो है पर आबाद नहीं.
कहने को तो है शायरी,
पर कोई सुनाने वाला नहीं. (आलिम)