है चर्क की गहराई दरिया से भी ज्यादा,
लिखा है मुक्क़दर और तारीख़-ए-ज़माना,
है लिखी होगी वही दास्तान-ए-मोहब्बत ,
ना शमा को पता है न जाने परवाना. (आलिम)
5 नवम्बर 2017
है चर्क की गहराई दरिया से भी ज्यादा,
लिखा है मुक्क़दर और तारीख़-ए-ज़माना,
है लिखी होगी वही दास्तान-ए-मोहब्बत ,
ना शमा को पता है न जाने परवाना. (आलिम)