13 अगस्त 2017
न है बुतख़ाने में न का'बे में है जो इस दिल में है,
दिल ही के अन्दर कुछ नहीं है तो कुछ भी नहीं है.
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जापान में यदि रात को दो बजे कुछ खाने की इच्छा जाग जाये तो फ़िक्र मत कीजिये चप्पल पहनिए और घर से बाहर निकलिए पांच से दस मिनट चलिए और आपको एक कोनबी स्टोर मिल जाएगा जहाँ खाने के लिए ब्रेड से लेकर लन्च पैक तक मिल
स्कूल ग्रेजुएशन सेरेमनी को यदि हिंदी में कहे तो विद्यालय समापन समाहरो , जापान में स्कूल तीन स्तर में बटें है एलिमेंट्री स्कूल यानि प्राथमिक विद्यालय , जूनियर हाई स्कूल यानि उच्चतर माद्यमिक विद्यालय और हाई स्कूल यानि उच्चतर विद्यालय . प्राथमिक विद्यालय छः वर्ष , उच्चतर माध
बीस मार्च , सोमवार को जापान में छुट्टी है , शायद बहुत से लोगो को नहीं मालूम की यह छुट्टी क्यों है . जापान में छुट्टी है परंतु यह एक प्राकृतिक घटना है जो पुरे विश्व पर असर डालती है , बसंत विषुव का मतलब है की इस दिन दिन और रात बराबर होते है . इस दिन पृथ्वी की भूमध्य रेखा सूर्य के मध्य से गुजरती है इस
जापानी ढाबे सुनकर कुछ अजीब जरूर लगेगा लेकिन यदि ढाबे का मतलब समझे तो जापानी ढाबे कहना कुछ भी अजीब नहीं लगेगा. ढाबे का जो मतलब लिया जाता है की सस्ती खाने पीने की दूकान . दूसरी भाषा में सस्ते भोजनालय . जहाँ भारत में ये काम बेचारे गरीब लोग करत
शीबिया , टोक्यो के तेईस वार्डो में से एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण वार्ड है. जिसे मनोरंजन का स्थान भी माना जाता है. व्यवसायिक संस्थान भी है. सरकारी और गैरसरकारी संस्थान भी है लेकिन फिर भी इसे मनोरंजन के लिए माना जाता है . दिनभर खूब चहल-पहल रहती है , पूरी रात खाने पीने के स्थान खुले रहते है. स्टेशन स
हस्ती अपनी हबाब की सी है, यह नुमाईश इक सरब की सी है.
सामने चश्मे-मस्त के साकी, किसको परवा- ए - जाम होती है. थी जो ख़िदमत जुनू की मजनू को सो वो अब मेरे नाम होती है.
तेरे बिना जिंदगी में कुछ भी नहीं,तुझे पाने को मेरे पास कुछ भी नहीं. (आलिम)
जिंदगी में कुछ नहीं तेरे बिना, मौसिकी में सुर नहीं तेरे बिना, खुशबु नहीं गुंचो में तेरे बिना, शमा रोशन नहीं तेरे बिना,दिल तो है पर धड़कन नहीं,जिंदगी में फ़न्ने - इश्क नहीं, मीरे
ब्राह्मण तो देवी-देवताओ के लिए आये चढ़ावे पर जीते है, राजपूतो और जाटो के पास अपनी जमीने है. अहीरों-गूजरों के पास उनके मवेशी और बनियों के पास उनकी दुकानें है. बेचारे कायस्थ ही है जिन्हे अपने दिमाग़ और नरकट की कलमों पर निर्भर रहना
गयासुद्दीन बलबन का राज था और उलमाओं ने सुल्तान से शिकायत की निजामुद्दीन की , सुल्तान ने बुलाया और पूछा की तुम मुसलमानों और काफिरों में कोई फर्क नहीं करते तो निजामुद्दीन ने कहा " यह सच है , क्योकि मैं उन दोनों को ही अल्लाह की औल
नहीं है दर्द मुझे और कुछ सिवाए फ़िराक ,तवीब तुझसे अगर हो तो कर दवाए - फ़िराक .
तवीब देख मुझे कोई मर्ज़ हो गया ,नींद रातों की चैन दिन का खो गया .आना तो था उन्हें ,पर ये कौन सितमग़र आ गया . (आलिम)
गालियाँ दे चुके अब नाला-ओ-ज़ारी तो सुनो, अपनी सब कह चुके थोड़ी सी हमारी तो सुनो.
करना बुराई मेरी उनकी मज़बूरी बन गई ,पर दे न सके जो सफाई अपने गुनाहों की. (आलिम)
न बुलाने की वज़ह है, न भुलाने की वज़ह है.तुझे चाहना ही सिर्फ मेरी जिन्दगी की वज़ह है. (आलिम)
मेहरबानी- ए -नाख़ुदा की हमें किनारा ना मिला, बिछड़ने का उनसे हमें कोई बहाना ना मिला. (आलिम)
मेरा तो हाल होना आपकी फ़ुर्कत में यूं ही था, मुझे शिकवा नहीं तुमसे मिरी किस्मत में यूं ही था.
कान से सबकी सुनता हूँ और मुहं से कुछ न कहता हूं,होश भी है बेहोश भी हूं कुछ जागता हूं कुछ सोता हूं.
हुए वाक़िफ़ न जो दुनिया के गम से वो ही अच्छे है, जो हस्ती में नहीं आए अदम से वो ही अच्छे हैं.
दीवाना तेरा बनके जो मैं ख़ाक उडाऊं,मजनूं की बिगड़ जाए बियाबान में सूरत.
न है बुतख़ाने में न का'बे में है जो इस दिल में है, दिल ही के अन्दर कुछ नहीं है तो कुछ भी नहीं है.
यार मेरे दिल में है और मैं ढूंढता काबा और बुतखाने में, मौजूद है वो घर में और मैं उसे ढूंढता सारे जहान में.
कौन जीता कौन हारा , मैं ही जीता मैं ही हारा
किसी से सीखकर करता है बाते हमसे तू ऐसी,सुनी थी आज तक हमने न तेरी गुफ़्तगू ऐसी.
मर के तो हो जायेगे सब ख़ाक लेकिन जीते जी, जो रहे उस यार की ख़ाके - क़दम अच्छे रहे.
मैंने दिल दिया, मैंने जान दी, मगर आह तूने न क़द्र की, किसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया.
मुझे दफ़न करना तू जिस घड़ी, तो ये उससे कहना की ए परी,वो जो तेरा आशिक़े - जाऱ था, तहे ख़ाक उसको दबा दिया.
कोई क्यों किसी का लुभाए दिल कोई क्यों किसी से लगाए दिल, जो वो बेचते थे दवाए- दिल वो दूकान अपनी बढ़ा गए.
किसकी हिम्मत थी करता बगावत, तुग़लक़ की तुग़लक़ के ज़माने में,किसने की ख़िलाफ़त हिटलर की, हिटलर के तानाशाही उस ज़माने में,सदियों बाद ही शायद कोई बताएगा, ज़ुल्म आज के इस दौरे तानाशाही के.
यूं तो इंतज़ार करना अच्छा लगता नहीं,फिर भी हम तेरा इंतज़ार करते है.
ख़्याल वैसे तो कभी आता नहीं,न जाने क्यों तेरा ख़्याल आ गया.
मुहोब्बत का गर कोई मज़हब बना होता, तो शायद कोई झगड़ा ही ना हुआ होता. बनाये मज़हब तो बहुत ना सीखे मुहोब्बत,मज़हब के नाम पे बस करते रहे सियासत.गर ख़ुदा ने मज़हब को बनाया होता, उसमे नफ़रत का ज़हर ना घोला होता.
चर्ख़ अपना की न अपना कोई ,मर्ज़ ऐसा की न दवा कोई. आशिकी है मगर कोई माशूक नहीं, आशियाना तो है पर आबाद नहीं. कहने को तो है शायरी,पर कोई सुनाने वाला नहीं. (आलिम)
कद्र ऐ इश्क रहेगी तेरी क्या मेरे बाद, कि तुझे कोई ना पूछेगा ज़रा मेरे बाद.
बहार आई है, भर दे बादा - ए - गुलंगू से पैमाना, रहे लाखो बरस साकी तेरा आबाद मैख़ाना.
ज़ाहिर है क्या ज़हूर के मज़हर नए-नए, जल्वे है उसके पर्दे के अन्दर नए-नए.
मुबारक हो तुझे ईद मिले खुशियाँ जहां की, हो दूर मगर मुझसे खुश रहो हो जहाँ भी.
जानकार बेवफ़ा हमको बेवफ़ाओं ने मार डाला, ना खुद थे बावफ़ा हमको भी बेवफ़ा समझ डाला. (आलिम)
उसी रश्के-परी पर जान देता हूँ मैं दीवाना,अदा जिसकी है बांकी, तिरछी चितवन, चाल मस्ताना
जम चुका है ख़ून अब तेरे दिल- बेसब्र में, दफ़न होना है तुझे हसरतों की कब्र में.
नज़रे बताती है तेरी तू बेवफ़ा नहीं, बाते बताती है तू मुझसे ख़फ़ा नहीं. क्यों दूर मुझसे तू मुझको पता नहीं,ना जाने शबे-वस्ल क्यू आती नहीं . (आलिम)
समझते जो नहीं खुद को, समझाते वो यु हमको, करके बात मन की वो,हमें सपने दिखाते है. (आलिम)
समझते जो नहीं खुद को, समझाते यु हमको है.सुना के मन की बात अपनी,हमें सपने दिखाते है.
डर नहीं मुझको तेरे आने का,डर है तेरे आके चले जाने का.लगाके दिल फिर तोड़ जाने का, चमन - ए - जिंदगी उजड़ जाने का. (आलिम)
इस जहाँ में आके हम क्या कर चले बारे-इस्यां सर पे अपने घर चले.
कुदरत का तमाशा है या तक़दीर-ए-मोहब्बत,होता है इश्क उनसे जिन्हे परवाह भी नहीं है. (आलिम)
शुक्रे-अल्लाह हमसे ये काफ़िर सनम अच्छे रहे, हक़-परस्तो बुत-परस्ती में भी हम अच्छे रहे.
ज़माने ने ज़ुदा न किया लैला को मज़नू से, मिलेगी हूर जन्नत में कह किसी वहशी ने ,मज़नू को इंसा से शैतान बनाया होगा, हाथ में कैस के दे बारूद दहशतग़र्द बनाया होगा. (आलिम)
क्यूँ फ़िक्र करे उनकी जो बेफिक्र है खुद से, क्यूँ फ़िक्र करे उनकी जो बाफ़िक्र है खुद से, परदे में है पर्दानशीं और शाख पे उल्लू है, फ़िक्र नाज़नीन की और ख़ुद से बेफिक्र है. (आलिम)
है चर्क की गहराई दरिया से भी ज्यादा, लिखा है मुक्क़दर और तारीख़-ए-ज़माना,है लिखी होगी वही दास्तान-ए-मोहब्बत ,ना शमा को पता है न जाने परवाना. (आलिम)
सजाया आशियाँ लगा कर तस्वीर यूं तेरी, चले अब छोड़ बसा दिल में तस्वीर ये तेरी. (आलिम)