आलिया और दिया
ईख के खेत में दो लङकियां चुपचाप गन्ने तोङ रहीं थीं। आलिया कुछ बारह साल की और दीया कोई ग्यारह साल की थी। वैसे आलिया, दीया से एक दरजा आगे पढती थी। पर दोनों में बहुत दोस्ती थी। दीया जमीदार की लङकी थी और आलिया एक मजदूर की लङकी। वैसे दोनों की हैसियत में भी बहुत फर्क था। पर बचपन इन अंतरों को कहाॅ जानता है। बाल सुलभ चंचलता ही कहेंगें कि दीया जिस खेत से गन्ने तोङ रही थी, वह उसी का खेत था। ऐसे ही शकरकंद के खेतों से शकरकंद खोदना और उन्हें भूनकर खाना, दोनों के लिये कोई नयी बात नहीं थी। दीया ने घर पर कभी काम नहीं किया। पर आलिया घर सम्हालना भी जानती थी। आलू, शकरकंद भूनना और उसे छीलकर दीया को देना, आलिया की ही जिम्मेदारी थी।
"आलिया। सुना है कि तेरे बापू तेरा व्याह कराने बाले हैं।"
" हाॅ। अम्मा भी बोल रहीं थीं कि अब छोरी के हाथ जल्द पीले करने हैं।"
अभी दोनों आयु में ज्यादा बङी तो नहीं थीं। पर न जाने क्यों दोनों में बहस होने लगी। दीया को लगता कि अभी आलिया की आयु शादी लायक नहीं हुई है। अभी तो सुधा बूआ का भी व्याह नहीं हुआ है। बूआ तो बहुत बङी है। बहुत ऊंची क्लास में पढ रहीं हैं। बताती हैं कि लङकियों का व्याह भी पढा लिखा कर होना चाहिये। दूसरी तरफ आलिया इन सब बातों से बेपरवाह थी। उसकी बूआ तो अब तक दो बच्चों की माॅ भी बन गयी है। अम्मा बोलती हैं कि ये तो रईसों के चोचले हैं। छोरियों का तो समय रहते ही व्याह होना चाहिये।
अब जैसा रहन सहन, वैसे ही दोनों के विचार थे। आखिर जाङों में आलिया का व्याह हो गया। दीया भी व्याह में पहुंची। सचमुच सुंदर कपङों में आलिया बहुत सुंदर लग रही थी। फिर जब भी आलिया मायके आती तो दीया से जरूर मिलती। पर बाद में दीया को उसके पापा ने शहर भेज दिया। शहर के स्कूल में दीया पढने लगी। गांव से आना जाना संभव न था तो दीया, हास्टल में रहकर पढती। नये दोस्त मिले तो पुरानी दोस्ती मन से दूर होती गयी। फिर तो पापा ने शहर में ही मकान बनबा लिया। अब गांव तो वह कभी कभी घूमने जाती। दस साल गुजर गये। ग्यारह साल की लङकी दिया अब इक्कीस साल की खूबसूरत युवती थी। डाक्टरी की पढाई पूरी कर एक अस्पताल में डाक्टरी का प्रशिक्षण ले रही थी।
आज अस्पताल में एक अलग सा केस आया। एक बाईस साल की लङकी को उसके आदमी ने बेरहमी से मारा। पहले से तीन लङकियों की माॅ पर लङका पैदा करने का दवाव था। पर यह कौन सा लङकी के हाथ की बात है। लङकी जब पिट कुट कर बदहाल हो गयी तो आदमी को चेत आया। यों औरत को मारने का इरादा न था। पर लङके की ख्वाहिश में आदमी से जानवर बन गया। अब होश आया तो अपनी औरत को अस्पताल में दिखाता फिरने लगा।
"डाक्टर साहब। मेरी घरबाली को बचा लो। नहीं तो मुझे जेल हो जायेगी। मेरी बच्चियां अनाथ हो जायेंगी।" सचमुच पश्चाताप की एक बजह जेल जाने का डर भी था। इंसान जल्दबाजी में कुछ भी करके जिंदगी भर पछताता है।
दीया को लङकी से न जाने क्यों हमदर्दी हो रही थी। वरिष्ठ डाक्टरों से इलाज शुरू किया। पर दीया पूरी तन्मयता से उसकी देखभाल करती। बीच में भी समय निकाल कर लङकी को देख जाती। उसके आदमी को भी फटकारने में कोई कसर नहीं छोङती।
"जाने कैसे नालायक आदमी हों। तुम्हें तो जेल जाना ही चाहिये। लङका और लङकी में क्या अंतर है।"
"मैडम जी। अब पाॅय पङता हूं । आगे से कोई भी गलती हो जाये तो जो सजा दोंगी, कबूल होगी। बस एक बार मेरी घर बाली को बचा दो।"
"मैडम जी। अब गलती मान रहे हैं। मेने तो मांफ कर दिया। पर सोच लेना कि आगे से कोई मारपीट की तो मैं फिर मैडम से शिकायत करने आ जाऊंगी। फिर तुम्हें कोई बचा नहीं पायेगा। "लङकी आदमी को बचाने के साथ साथ उसे डराने का खेल साथ साथ खेल रही थी।
आखिर वह मरीज ठीक हुई। अस्पताल से छुट्टी हुई। आखरी बार भी दीया उससे मिलने आयी।
" आज छुट्टी हो रही है तुम्हारी। पर अब आदमी से डरने की कोई जरूरत नहीं है। अगर कभी तुम्हें परेशान करे तो मुझे जरूर बताना।"
" ठीक है मैडम जी। मैडम जी, एक बात बोलना चाह रही थी कई दिनों से। पर हिम्मत नहीं हो रही थी। तुम्हें देख मुझे अपनी बचपन की सहेली याद आती है। बहुत भोली थी। खुद के खेत से शकरकंद खुदवाती। मैं भूनती। दोनों खाते। इतनी कम आयु में इतनी समझदार थी कि जो बात आज मेरी समझ में आ रही है, वह तभी मुझे बताती। बोलती कि आलिया, पढ लिखकर तभी शादी व्याह की सोचनी चाहिये। पता नहीं अब दीया कहाॅ होगी। पर जरूर पढ लिखकर माॅ बाप का नाम रोशन कर रही होगी। "
अब बोलने की बारी दीया की थी।
" मैं भी बहुत दिनों से एक बात बोलना चाहती थी। कहीं यह मेरी बचपन की सहेली आलिया तो नहीं। कुछ धुंधली सी शक्ल मेरे सामने आती तो लगता कि आज आलिया ऐसी ही दिखेगी। "
बचपन की दो सहेलियाँ गले लगकर कितनी देर रोती रहीं कह नहीं सकते। पर अस्पताल में इस भरत मिलाप को देखने बालों की भीड़ लग गयी।
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" देख आलिया। तुझे यह परीक्षा देनी होगी। "
" तू भी दीया। न जाने क्या लेकर बैठ गयी। "
" तुझे यह परीक्षा देनी होगी। अब तुझे मेरी बात माननी होगी। "
"पर अब पढाई कैसे करूंगी।"
"खुद करेगी। और मैं पढाऊंगी तुझे। अब इतने साल बाद मिली है। तुझे अपने पैरों पर खङा न किया तो मेरी दोस्ती बेकार।"
यह दीया का भरोसा था कि आलिया ने हाईस्कूल की परीक्षा दी और अच्छे अंकों से पास हुई। इंटरमीडिएट में भी आलिया ने पहली जैसी सफलता दुहराई। हालांकि आलिया, दीया की तरह डाक्टर तो नहीं बन पायी पर नर्स बनकर अपने पैरों पर जरूर खङी हो गयी। दोनों बचपन की सहेलियों की दोस्ती अस्पताल में चर्चा का विषय रहती।
आलिया के पति में भी बहुत सुधार आया। हालांकि वह ज्यादा पढ नहीं पाया पर फिर भी अच्छी तरह कमाने खाने लगा। आलिया अपनी बच्चियों की शादी पढा लिखा कर ही करेगी। आलिया की बङी लङकी ने हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर उम्मीद जगा दी है कि वह भी भविष्य में अपनी दीया मौसी की तरह डाक्टर बनेगी।
पूर्ण काल्पनिक व स्वरचित कहानी :यदि इस कहानी का किसी घटना से संबंध पाया जाये तो उसे महज एक संयोग समझना चाहिये।