हिंदी भाषा व सरकारी नियम
हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है। वैसे पहले एक बार मेने ऐसा ही लेख लिखा। तो किसी सज्जन ने बहुत खराब समीक्षा दीं। उनके अनुसार ऐसा कोई लिखित उल्लेख नहीं है कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है। हिंदी सिर्फ भारत की विभिन्न भाषाओं में एक है।
इस सभी बातों से मुझे वे हिंदी भाषा के विरोधी लगे। हालांकि उन्होंने पूरी समीक्षा हिंदी में ही की थी। पर मैं हर समीक्षा से कुछ न सीखता हूं। एक बङी सीख कि हम अपनी राष्ट्र भाषा का कितना सम्मान करते हैं। यदि उन महाशय की बात कि ऐसा कहीं लिखित उल्लेख नहीं है, सत्य है तो और भी ज्यादा चिंता की बात है। हम तो बचपन से यही पढते आ रहे हैं।
भारत संचार निगम लिमिटेड में नौकरी के दौरान इनसर्विस ट्रैनिंग में मुझे हिंदी भाषा के बारे में कुछ ऐसी जानकारी मिलीं जो आजतक मेने किसी भी साहित्यिक पुस्तक में नहीं पढी है। प्रश्न हो सकता है कि ट्रैनिंग में तकनीकी जानकारी मिलनी चाहिये फिर ऐसी कौन सी जानकारी मिली जो हिंदी साहित्य की पुस्तकों में नहीं है।
वास्तव में चाहे दिखावे के लिये ही सही, कुछ सरकारी आदेशों को मानना होता है। इसीलिये ऐसी जानकारी प्रदान की गयी जिसकी सत्यता में किसी को संदेह नहीं होना चाहिये। भले ही मुझे पता नहीं कि हिंदी राष्ट्रभाषा होने का कोई लिखित उल्लेख है या नहीं पर सरकारी ऐसे आदेश जो हिंदी भाषा को अन्य भाषाओं से अलग करते हैं, पढाये गये।
सर्वप्रथम पूरे भारत देश को हिंदी भाषा के प्रयोग के लिहाज से तीन भागों में बांटा गया है। जिन्हें क, ख, ग अथवा A, B, C,भाग कहते हैं। क या A वह भाग है जहाॅ माना गया है कि शत प्रतिशत लोग हिंदी भाषी हैं या हिंदी भाषा के किसी रूप का व्यवहार में प्रयोग करते हैं । लगभग पुरा उत्तर भारत उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब, छत्तीसगढ़ आदि सभी क या A भाग में हैं ।क या A भाग के लिये दिशानिर्देश है कि सभी सरकारी कार्य हिंदी भाषा में होने आवश्यक हैं। आवश्यकता होने पर उसका अंग्रेजी अनुवाद भी साथ में लिखा जा सकता है। इसी तरह अन्य भागों के लिये अलग अलग आदेश हैं। इस नियम का नाम हिंदी राजभाषा अधिनियम 1976 है। नियम के नाम से भी उक्त सज्जन की बात सही होने की संभावना है क्योंकि नियम का नाम हिंदी राष्ट्रभाषा अधिनियम होना चाहिये।
फिर भी एक सत्य यह भी है कि हम इस नियम को भी सम्मान नहीं देते हैं। हमारे विभाग में तो बहुत सारे काम अंग्रेजी भाषा में होता है। यहाॅ तक कि कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस भी कई बार अंग्रेजी में दे दिये जाते हैं। उसके प्रतिउत्तर में कर्मचारी लिख देते हैं कि उनकी समझ में नहीं आया है तथा कृपया हिंदी में बतायें।
निश्चित ही यह गलत आदतों का परिणाम है। अभी तक हिंदी भाषा को हम गंभीरता से नहीं लेते। हिंदी भाषा के प्रयोग को कमतर मानते हैं। एक अस्पष्ट गुलामी की आदत अभी हमारे मन में है।
उत्तर प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों से मेरा लगातार संबंध रहता है। वहाॅ इस विषय में स्थित बहुत अच्छी है। कई उत्तर प्रदेश सरकार के विभागों से मुझे विभिन्न पत्र मिलते हैं जो हिंदी भाषा में लिखे होते हैं। यहाँ तक कि जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय से आये सभी पत्र हिंदी भाषा में होते हैं। अधिकारियों के चैंबर के बाहर उनके नाम हिंदी भाषा में ही लिखे होते हैं। इन विभागों में कंप्यूटर आपरेटर की नौकरी के लिये हिंदी टाइपिंग की जानकारी अनिवार्य है। सचमुच इस विषय में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों की जितनी तारीफ की जाये, कम है। पर केंद्र सरकार के अधीन या पब्लिक सैक्टर के विभागों में अभी स्थिति ठीक नहीं है।
मेरी समझ में हिंदी भारत की राजभाषा है। इसका अधिक से अधिक प्रयोग होना चाहिये। सरकारी कार्यों में तो खासतौर पर इसका प्रयोग होना चाहिये।
पर अंत में मेरे मन में एक ही प्रश्न रह जाता है कि जिन विभागों में हिंदी राजभाषा अधिनियम का पालन नहीं हो रहा है, उनके लिये किस तरह की कार्यवाही का नियम है। निश्चित ही शायद हमारा कानून इस विषय में बहुत लचीला है। तभी तो हम अपनी हिंदी भाषा का सम्मान नहीं करते हैं।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'