मेरे मन के करीब रहने वाली मेरी डायरी मेरा सुख,देखो ना, धीरे धीरे यह साल भी खिसक रहा है। उंगली पर गिनों तो सिर्फ चार दिन बचें है।365 दिन,बारह महीने, कितने घंटे, कितना मिनट और कितने सेकेंड दुख सुख के साथ गुजर जाता है।बचती है तो सिर्फ यादें यादें और यादें।।
चारों तरफ शोर है सुख कि नववर्ष आ रहा है।नया साल में नया क्या होता है सुख। धरती वहीं आकाश वहीं और सूरज चांद सितारे और इंसान भी वही तो बदलता क्या है।हमारी आवश्यकताएं रोटी कपड़ा और मकान बदल जाता है या रोटी की भूख की खातिर कर्मभूमि बदल जाता है।अमीर गरीब का भेद मिट जाता है या गरीब के झोंपड़े में खिलखिलाती सुबह अमीरों वाली पांव पसारता है। धर्म,जाति और राजनीति परिवर्तित हो जाता है। कुछ नहीं बदलता सिर्फ सुख मन की खुशी के लिए हम नववर्ष मनाते हैं। बदलता है तो सिर्फ वक्त, तारीख और सन्।।
आने वाला कल किसने देखा है।
जाने वाला पल हमने जिया है।।
बसुंधरा और आकाश नहीं बदलता।
सूरज चांद सितारे भी नहीं बदलता।।
धर्म-कर्म,जाति, राजनीति कुछ नहीं बदलता।
इंसान का कोई कर्म नहीं बदलता।।
वक्त तारीख का बदलना नववर्ष नहीं होता।
नसीब सबका हो बराबर तब नववर्ष होगा।।
इंसानियत सर्वोपरि धर्म हों तब नववर्ष होगा।।