मेरी नन्द मनीषा रामरक्खा फिजी यूनिवर्सिटीमें हिंदी की प्रोफेसर हैं उन्होंने फिजी में हिंदी साहित्य के उत्थान के लिए बहुतकाम किया .मुझे उनपर गर्व हैं . उनकी होली उत्सव पर लिखी कविता मुझे बहुत पसंदआयीं मैने पाठकों के लिए शेयर की है . होली सो होली मनी
आओ ना बैठो ना कुछ पल ही सही साथ बिताओ ना । आप हो हम हों,बातों की महफिल हो और ठहाके हो।यादों के फूल खिले हो, और सुगंध से मन प्रफुल्लित हो ।और साथ-साथ गरमागरम चाय हो,आलू के गुटके हो।गुड़ की डली के साथ चाय की चुस्की हो,और संग हो।अपनों की संगति,
हिन्दी की सामर्थ्यएक भाषा है जो मुझसे, बात करती है मैं कहीं भी जाऊँ, मुलाक़ात करती है , चाँदनी में दिखती, तारों में छिप जाती, जुगनुओं की तरह मेरेसाथ चलती है,हमने अपने बेटे से कहा,हिन्दी मे पहाड़ेसुनाओ,बोला पापा हमें खामखां मत गड़बड़ाओ,मेडम कहती है, नौकरी तभी मिलेगी जब अँग्रेजी पढ़ोगे,नहीं तो ज़िंदगी भरह