कबाड़
बेकार नहीं है कबाड़
घरों के,कोने में ढेर हुआ कबाड़
धूल में लथपथ
बुरी तरह अटा हुआ कबाड़
जिसके नीचे समाई हुई है
ढेर की ढेर चीजें
कुछ साबुत कुछ टूटी फूटी
कुछ ऐंटीक पीस भी हो सकते हैं
इस कचरा दिखते ढेर में
कई घरों के चूल्हे जलते हैं इसी कबाड़ के सहारे
कई बार तो लाखों के वारे न्यारे भी होते हैं इससे
कमरे के किसी अंधेरे कोने में ढेर हुआ हुआ
कोई बुजुर्ग हो सकता है कबाड़ में
जिसको वृध्द आश्रम में कोई कोना दिया जा सकता है
या कोई अनचाही जन्मी बच्ची जिसे फालतू पड़े भंगार की मानिंद
यहां बड़ा होते ही सुपात्र खोजने की जगह कोशिश होती है
कबाड़ की तरह जल्द से जल्द हटाने की
पर एक कबाड़ हटते ही
फिर कबाड़ आ जाता है अस्तित्व में
पहले कबाड़ की जगह
नयी धूल नयी जंग के साथ
अपनी नयी कथा के साथ