बदलाव की आधारशिला
सिकंदर के साथ अधिकांश भारत विजय में उसका साथी रहा सेल्यूकस परिस्थितियाँ बदलते ही यवन देश का नरेश बन गया। वास्तव में यह तो विश्व के अधिकांश देशों की कहानी है। शक्तिशाली सत्ता पर अधिकार कर लेता है। शक्ति होने पर भी रक्षक की भूमिका अपनाने बाले देवव्रत भीष्म कितने होते हैं।
सेल्यूकस सिकंदर का विश्वास पात्र था। चाहिये था कि सिकंदर की असमय मृत्यु के बाद वह उसके पुत्र का संरक्षण करता। पर ऐसी सस्कृति की उनसे उम्मीद करना ही गलत है।
सेल्यूकस ने सिकंदर का वंश नष्ट नहीं किया, यही बड़ी बात थी। सिकंदर ने तो अपने सारे भाइयों का अंत कर राज्य प्राप्त किया था। फारस नरेश अपने ही ससुर को धोखे से मारकर अपनी शक्ति बढाई थी। शक्ति के उपासकों के लिये एक ही धर्म होता है, वह है शक्ति। त्याग जैसी उच्च बातों का उनके मन में कोई स्थान नहीं होता है।
सिकंदर ने भारत विजय अधूरी छोड़ दी थी। पूरे भारत को अपने अधिकार में करने की लालसा लिये सेल्यूकस ने भारत पर हमला कर दिया।
छह या सात साल का समय ज्यादा नहीं होता है। इतने कम समय में इतना बदलाव। सेल्यूकस खुद चकित था। सिकंदर के साथ जब वह आया था तो उसका सामना सिंध, पौरस तथा और भी अन्य राजाओं की सेनाओं से हुआ। जिन्हें वे आसानी से जीतते गये। पर भारत देश की अपनी सेना होगी, भारत देश का अपना एक राजा होगा, यह सोच पाना भी संभव न था। छोटे छोटे राजाओं को हराकर अपनी शक्ति का डंका बजाने बाले यवन सैनिकों के चारों तरफ मौत नजर आ रही थी। भारत की सेना ने उन्हें सभी तरफ से घेर लिया था। आत्मसमर्पण के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय न था।
वंदी बनाकर सेल्यूकस को भारत के राजा के पास भेज दिया गया। भारत की राजधानी पाटलिपुत्र तक पहुचते पहुंचते अनेकों दिन लग गये। सेल्यूकस आश्चर्य में था। इतनी दूर राजधानी होने पर भी कहीं कोई विरोध नहीं। पूरा देश एक सूत्र में बंधा हुआ था। एकता की भावना ने भारत को अजेय बना दिया था।
सेल्यूकस के विचारों ने पलटा खाया। इतने शक्तिशाली राजा से विरोध ठीक नहीं है। शक्ति बढाने के लिये केवल विरोध ही तरीका नहीं होता है। अपितु रिश्ते करके भी शक्ति बढाई जा सकती है। यदि किसी तरह से पुत्री हैलन का विवाह भारत के राजा से करा देने में सक्षम हुआ तो यही बड़ी उपलब्धि है।
महाराज चंद्रगुप्त मोर्य वीरों में वीर और उदारों में उदार थे। सेल्युकस के साथ उन्होंने अच्छा व्यवहार किया।
" यूनान नरेश। आप आजाद हैं। पर अब भारत को फिर कभी कम न आंकना। एकता के सूत्र में बंधे भारत का सामना अब कोई नहीं कर सकता है।"
" मुझे आपसे मिलकर खुशी हुई। इतने कम समय में आपने पूरे भारत को एक देश बना दिया।" सेल्युकस भी कम आश्चर्य में न था।
" नहीं यूनान नरेश। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं है। यह तो भारत के महामंत्री व मेरे गुरु चाणक्य की सोच थी। जिसे हमने पूर्ण किया। "
सेल्युकस भारत के महामंत्री चाणक्य से मिलने को लालायित था। उनका पता लेकर खुद ही वहाँ चल दिया।
सामने कुछ झोंपड़ियाॅ दिख रही थीं। एक ब्राह्मण को सेल्युकस ने रोका।
" महाशय। मैं भारत के महामंत्री चाणक्य से मिलने आया हूं। पर मार्ग भूल गया हूं। "
" नहीं नहीं महाशय। आप सही राह पर हैं।"
सेल्युकस हैरान। भारत का महामंत्री तो किसी महल में रहता होगा। शायद इन झोंपड़ियों के पीछे उनका महल हो।
" महाशय। आप मेरे साथ चल सकते हैं। मैं आपको उनके आवास तक पहुंचा दूंगा। "
सेल्युकस उनके साथ चलते रहे। एक झोंपड़ी का द्वार खोल वह उसमें घुस गये। सेल्युकस बाहर उनका इंतजार कर रहा था। मन में अनेकों विचार आ रहे थे।
" अजीब आदमी है। मुझे महामंत्री के आवास तक ले जा रहा था। और खुद भीतर बैठ गया है। "
" भीतर आ जाइये। महानुभाव। भारत के महामंत्री के आवास में आपका स्वागत है।"
सेल्युकस को वह आदमी कुछ विक्षिप्त लगने लगा। भीतर जाने का प्रश्न ही नहीं था। पर जब उसने कुछ राजकर्मचारियों को भीतर जाते देखा तो फिर से माथा ठनका। आखिर इस झोंपड़ी का क्या रहस्य है। जब कमर में तलबार है तो फिर डरने की क्या आवश्यकता।
वही ब्राह्मण जमीन पर बैठा हुआ था। सामने राजकार्य की अनेखों आलेख रखे थे। कुछ आलेखों को वह पढ रहा था। राजकर्मचारियों को उसी तरह निर्देश दे रहा था कि वही देश का मंत्री हो। सब कुछ उसी तरह। पर आवास और वेशभूषा बिलकुल सामान्य।
". प्रणाम यवन नरेश ।आसन गृहण करें। क्षमा चाहता हूं। अभी राजकार्य में व्यस्त हूं। थोड़ी देर में आपसे बात करूंगा ।"
महामंत्री के शव्दों में जादू था। सेल्युकस मंत्रमुग्ध सा बैठ गया। एक कर्तव्य निष्ठ की निष्ठा देखता रहा।
थोड़ी देर में अंधेरा होने लगा। थोड़ा कार्य अभी भी शेष था। एक राज्य कर्मचारी ने दीपक जला दिया। कार्य चलता रहा। जब तक कि आखरी आलेख को महामंत्री ने पढकर, संशोधित कर उसपर हस्ताक्षर न कर दिये। राज्यकर्मचारी नमस्कार कर विदा हो गये।
महामंत्री ने दीपक बुझा दिया। अब तो प्रकाश की आवश्यकता थी। पर यह क्या। एक दूसरा दीपक उन्होंने जला दिया। फिर भारत के महामंत्री यवन राज की तरफ मुड़े।
" बताइये यवन राज। हमारे देश में आपको कोई कष्ट तो नहीं हुआ।"
" कष्ट तो नहीं। पर अनेकों बातें समझ नहीं पा रहा। आपका इस तरह झोपड़ी में रहना। पहले से जल रहे दीपक को बुझाकर दूसरा दीपक जलाना।"
" यवन नरेश। यह त्याग की कहानियाॅ हैं। इतनी आसानी से आपको समझ नहीं आयेंगी। देश को एकसूत्र में पिरोने के लिये आवश्यक है बलिदान। मैं बलिदान दे रहा हूं। अपनी आवश्यकताओं की आहुति दे रहा हू। रही दीपक की बात। जब मैं राजकार्य कर रहा था तब शासकीय दीपक जला था। अब मैं खुद का कार्य कर रहा हूं। फिर शासकीय दीपक क्यों जलाऊं। यवन नरेश। बदलाव के लिये बहुत त्याग करना होता है। जिस दिन मैं अपने कार्य के लिये शासकीय तेल व शासकीय दीपक का प्रयोग करूंगा, उसी दिन यह देश फिर से बिखंडित हो जायेगा। महत्वपूर्ण मैं नहीं, अपितु भारत देश है।भारत देश में बदलाब की आधारशिला रखने के लिये यह त्याग आवश्यक है। "
चाणक्य की बात पूर्ण होने से पूर्व ही यवन नरेश सेल्युकस का मस्तक उनके चरणों में झुक गया।