आत्मसम्मान
गढमंडल राज्य के महल में दो योद्धा तलवारबाजी का अभ्यास कर रहे थे। कोई भी कम नहीं पड़ रहा था। घंटों तलबारबाजी चलती रही।
संदेशवाहक संदेश लेकर आया पर समझ न सका कि किस तरह कहे। बात आवश्यक थी। तो बतानी तो थी ही। पर यदि अचानक बीच में टोक दिया तो शायद अनर्थ हो जायेगा। किसी की भी असावधानी उसकी जान ले लेगी।
अचानक योद्धाओं से संदेश वाहक को देख लिया। तुरंत अभ्यास बंद किया तथा संदेश वाहक की तरफ बढ लिये।
". महारानी की जय हो। कुमार की जय हो।"
" आओ जयदेव। देखा अब तो आपका भतीजा मुझसे तलवारबाजी में कम नहीं पड़ता है।"
" सब महारानी की मेहनत का परिणाम है।"
" मेहनत करनी होती है। आखिर राज्य का भावी नरेश तैयार करना है। महाराज को अंतिम समय पर वचन दिया था कि उनके पुत्र को उनकी कमी महसूस नहीं होने दूंगी। उसे भी महाराज के समान योद्धा बनाऊंगी। आज मैं कह सकती हूं कि मेने वह कर दिखाया। आज नारायण का अठारहवां जन्म दिन है। नारायण अब सभी तरह से दक्ष है। विचार रही हूं कि अब नारायण का राजतिलक करवा दूं। आपकी क्या राय है। "
गढमंडल की महारानी दुर्गावती द्वारा खुद को इतना आदर देता देख जयदेव की आंखें भर आयीं। बहुत साल हो गये। महाराज दलपतशाह ने अपने प्राण त्यागे थे। युवराज तो अबोध बच्चे थे। तभी रानी दुर्गावती ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया। खुद राज्य की बागडोर सम्हाली। पुत्र को आत्मनिर्भरता का पाठ पढाने के साथ साथ प्रजा के दुख देखती। नारायण को भविष्य का नरेश बनाने की तैयारी चलती रही। आज जब नारायण अठारह वर्ष का हुआ तो रानी ने सुबह से ही उसका इम्तहान लेना आरंभ कर दिया। नारायण अब सचमुच दक्ष हो चुका था। अपनी माॅ के वारों का उत्तर देता रहा।
पर जयदेव के चेहरे पर अलग चिंता की रेखाएं थीं। वह समझ नहीं पा रहा था कि किस तरह अपनी बात कहे। रंग में भंग कैसे डाले। अभी दो माॅ और बेटों का जो प्रेमपूर्ण संवाद चल रहा है, उसमें कैसे विघ्न बने। पर करना तो होगा। महारानी भी यही कहती आयीं हैं कि राज्य पर सब कुछ कुर्बान है।
" आप कुछ चिंतित हैं, जयदेव जी।"
" हाॅ महारानी। चिंता की बात तो है।" जयदेव ने संक्षिप्त सा उत्तर दिशा।
" वह क्या?"
" महारानी। गुप्तचरों से सूचना मिली है कि आसफ खाॅ गढमंडल की तरफ बढ रहा है। वैसे पक्की तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता कि वह किस राज्य पर चढाई करना चाहता है। पर लक्षण कुछ ठीक नहीं हैं। "
रानी दुर्गावती सकते में आ गयी।
" यह कौन आसफ खाॅ। इसे हमारे गढमंडल से क्या मतलब। "
" महारानी। आसफ खाॅ मुगल वादशाह अकबर का सेनापति है। वह अकबर के कहने पर गढमंडल पर आक्रमण कर रहा है। "
उस समय तक न तो अकबर पूरे भारत का वादशाह था और न उसका नाम ज्यादा प्रसिद्ध था। हाॅ मुगल वादशाह हुमायूं से लोग परिचित थे। वादशाह हुमायूं शेरशाह सूरी से हार कर भाग गया। अब हुमांयू व शेरशाह दोनों की मृत्यु के बाद अकबर ने अपनी सत्ता की शुरुआत ही की थी।
रानी दुर्गावती को समझ में नहीं आ रहा था कि अकबर की नजर गढमंडल पर क्यों है। एक तो गढमंडल दक्षिण का राज्य है। अभी उत्तर के ही बहुत से राज्य मुगलों के प्रभाव से अछूते हैं। फिर गढमंडल कोई बड़ा राज्य भी नहीं है। जो उसपर अधिकार जमाकर अकबर को अपने राज्य विस्तार की जमीन मिल जायेगी।
पर हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। उत्तर के राज्यों को छोड़कर आरंभ में ही दक्षिण के इस छोटे से राज्य पर आक्रमण करना अकबर की सोची समझी चाल थी। अपने इसी बेहिसाब दिमाग व चालाकी के बलबूते वह भविष्य में पूरे हिंदुस्तान में अधिकार करना चाहता था।
रानी दुर्गावती की दक्षता से छोटा सा राज्य गढमंडल धन दौलत से भरा हुआ था। अभी अभी वादशाह हुमांयू जन्नत कूच किये थे। अकबर के पास धन की बेतहाशा कमी थी। वह विजय का आरंभ ऐसे राज्य से करना चाहता था, जिसमें धन संपत्ति की बहुलता हो। तथा जो शक्तिहीन हो। वहां अधिकार करने में ज्यादा परेशानी न हो। अकबर ने गढमंडल के विषय में जो अनुमान लगाया था, वह आधा ही सत्य था। गढमंडल के पास इतनी धन दौलत थी जो किसी भी राजा का भी भाग्य बदल सकती थी। पर गढमंडल को केवल इसलिये शक्तिहीन समझना कि वहाँ एक स्त्री का शासन है, अकबर की बड़ी भूल थी।
................
रानी दुर्गावती ने आपात बैठक बुलाई। राज्य के सभी जिम्मेदार लोग उसमें सम्मिलित थे।
" साथियों। मुगल वादशाह अकबर का सेनापति आसफ खाॅ हमपर हमला करने आ रहा है। गुप्तचरों से यही सूचना मिली है।"
" महारानी की जय हो। हम महारानी के कहने से अपने प्राण भी दाव पर लगा देंगें।"
दरबार से अनेकों आवाजें आ रही थी।
" सचमुच हम किसी भी स्थिति में अपने आत्मसम्मान से समझोता नहीं करेंगे। जीवन और मृत्यु तो माता भवानी के हाथ में है। जय भवानी। "
दरवार में जय भवानी की अनेकों आवाजें उठीं। हर कोई राज्य पर प्राण देने को तैयार था।
................
आसफ खाॅ ने नगर को घेर लिया। वैसे उसे कोई उम्मीद नहीं थी कि दूसरी तरफ से प्रतिवाद होगा। कुछ दिनों नगर का घिराव करने से ही रानी हार मान आत्मसमर्पण कर देगी। स्त्रियों में इतना बूता कहाॅ होता है।
पर यह क्या हुआ। नगर का द्वार खुला। सेना की टुकड़ी युद्ध के लिये तैयार होकर बाहर आयी। सबसे आगे घोड़े पर खुद रानी सवार थी। वीर वेष में अपने सैनिकों का उत्साह बढा रही थी।
हमला रानी दुर्गावती ने किया। रानी खुद काल की साक्षात मूर्ति लग रही थी। नारायण भी उसका साथ दे रहा था। मुगलों ने भागने में ही भलाई समझी। रानी के जयघोष से आसमान गूंजने लगा।
.................
निश्चित ही अकबर वह सौभाग्यशाली मुस्लिम शासक था जिसे अनेकों स्वामिभक्त मिले। अन्यथा युद्ध करने में उसकी कमजोरी जग जाहिर थी। अक्सर इतिहास में तलवार चलाने बाले ही सत्ता सम्हालते आये हैं। अकबर से पहले भी और बाद में भी मुगल परिवार में सत्ता के लिये खूनी संघर्ष हुआ तथा हमेशा विजेता ही सत्ता पर काबिज हुआ। अनेकों शक्तिहीन नरेशो को तो उनके सेवकों ने ही राज्य च्युत कर दिया। निश्चित ही अकबर इतिहास का पहला शासक है जिसने तलवार के स्थान पर दिमाग से ज्यादा युद्ध किये। जिस तरह से भी किसी का प्रयोग किया जा सकता था, वह किया।
अकबर अपने कक्ष में आराम कर रहा था। गढमंडल पर विजय के दिवा स्वप्न देख रहा था। आसफ खान का खास दूत आ पहुंचा।
" आइये खान साहब। हमें आसफ खाॅ पर पूरा विश्वास है। उन जैसा वीर व नीतिकार आसानी से नहीं मिलता। तुम मुझे गढमंडल विजय की सूचना दो, उससे पूर्व यह तोहफा कबूल करो।"
बादशाह ने अपनी एक अंगूठी दूत की तरफ बढा दी। पर दूत शांत रहा। अब अकबर का मन खटका।
". क्या बात है खान साहब। "
" बादशाह सलामत की जय हो। सेनापति का संदेश लेकर आया हू। "
दूत ने आसफ खाॅ का लिखा पत्र बादशाह की तरफ बढा दिया। अकबर उसे पढने लगा।
" बादशाह सलामत। हमसे किसी तरह की भूल नहीं हुई है। पर वास्तव में एक छोटी भूल हुई है। रानी को हमने कमजोर समझ लिया। पर वह तो शक्ति का अवतार है। जब घोड़े पर चढकर हमला करने आयी तो समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके कितने हाथ हैं। भला इतनी तेजी से कौन तलवार चलाता है। बादशाह सलामत। हम तो धर्म संकट में फंसे हुए हैं। एक स्त्री से हारकर वापस आना आपके सम्मान में गुस्ताखी होगी। फिर इसके बाद दूसरे लोग भी हमें कमजोर समझेंगें। पर काफी कोशिश के बाद भी उस स्त्री से जीता नहीं जा सकता। यह उतना ही सत्य है जितना कि खुदा का अस्तित्व। "
आसफ खाॅ अकबर का खास विश्वासपात्र इस तरह गलत तो नहीं लिख सकता। रानी को तलवार से नहीं हराया जा सकता है। पर रानी को हराया जा सकता है। किस तरह। अकबर के चालाक दिमाग में एक योजना आयी। हालांकि अकबर रानी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था। पर उसे भी इतना अनुभव न था कि ऐसी स्थिति में भी रानी कमजोर नहीं पड़ेगी।
............
आसफ खाॅ अकबर के संदेश का अर्थ समझ गया। रानी के विश्वासपात्रों में केवल एक कमजोर को निशाना बनाना है। कमजोरी केवल शारीरिक नहीं होती। अपितु मानसिक भी होती है। आखिर तलाशने के बाद एक कमजोर मिल ही गया।
मुगलों के शिविर में कुछ अंधेरा था। एक तो आसफ खाॅ और एक अन्य रानी दुर्गावती की सेना का कमजोर व्यक्ति वहाॅ थे।
°क्या चाहते हैं आप खाॅ साहब। "
" एक बार हमें किले में घुसा दो। रानी को आत्मसमर्पण पर मजबूर कर लेने दो। हम तुम्हें इतना इनाम देंगें कि तुमने स्वप्न में भी नहीं देखा होगा। "
आत्मबल से कमजोर रानी का एक विश्वासपात्र मुगलों के हाथ बिक चुका था। उसी रात महल का गुप्त दरबाजा खुला। और मुगल सेना किले में आ गयी। भीषण युद्ध शुरू हो गया।
रानी दुर्गावती आत्मसम्मान की रक्षा हेतु युद्ध में उतर चुकी थी। आसफ खाॅ को अनुमान ही न था कि ऐसी स्थिति में भी रानी तबाही ला देगी। महल से सभी को भागने पर मजबूर कर देगी।
सुबह का युद्ध निर्णायक युद्ध था। कल रात युद्ध में ही रानी घायल हो चुकी थी। युद्ध में जाने की स्थिति न थी। पर यदि रानी युद्ध में न गयी तो सेना का मनोबल गिर जायेगा।
भयानक युद्ध चल रहा था। कल रात के षड्यंत्र में गढमंडल के अनेकों वीर मारे गये। फिर भी घायल रानी व राजकुमार युद्ध करते रहे। अचानक नारायण घोड़े से गिरा। विरोधी की तलवार उसके वक्ष स्थल में घुसी थी।
किसी माॅ के सामने ऐसा दृश्य आये कि उसका पुत्र उसके सामने ही काल के ग्रास में समा जाये तो वह पागल हो जाती है। दुर्गावती भी अधीर हो उठी। पर तत्क्षण सम्हल गयी।
" जयदेव। नारायण को अभी यहाँ से ले जाओ। अभी शोक मनाने का समय नहीं है।"
भले ही रानी खुद का मनोबल गिरने नहीं दे रही थी। पर कुछ तो बदल गया था। रानी के हाथों में वह तेजी नदारद थी जिससे डरकर आसफ खाॅ ने अकबर को खत लिखा था।
तभी एक तीर रानी की आंख में लगा। बुझती हुई लौ एक बार तेजी से जली। एक आंख में तीर लगे ही रानी दुर्गावती अनेकों सैनिकों को मार खुद शहीद हो गयी। भले ही मुगलों ने गढमंडल को जीत लिया हो, पर आत्मसम्मान की लड़ाई में जीत रानी दुर्गावती की हुई।
अकबर जीवन भर अपने शासन की वह आरंभिक युद्ध को नहीं भूल पाया जिसने उसके मन की अनेकों धारणाओं का अंत किया। स्त्री को कमजोर समझाना वास्तव में अकबर की बड़ी भूल थी। अकबर जीवन भर रानी दुर्गावती की वीरता व आत्मसम्मान को भुला नहीं पाया।
समाप्त
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'