देवी चौधराइन
अठारहवीं शदी का मध्य , भारतीय इतिहास में इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी काल में व्यापार करने आये अंग्रेजों ने भारतीय राजनीति में दखल देना शुरू किया तथा धीरे धीरे पूरे भारत वर्ष में अपनी सत्ता स्थापित कर ली। वैसे छोटे मोटे कुछ राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले से आधीन थे। पर अंग्रेजों की भारत विजय की शुरुआत उनके बंगाल विजय से मानी जाती है। जब बंगाल का शासक बनने की चाह में शिराजुद्दोला ने खुद ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल बुलाया। अपने विरोधियों को अंग्रेजों की सहायता से नष्ट कर शिराजुद्दोला बंगाल में एक कठपुतली शासक बन गया।
शिराजुद्दोला खुद विलासी था। उसे प्रजा के सुख दुख की क्या चिंता। अंग्रेजों का तो उद्देश्य ही धन कमाना था। बंगाल में पहली बार दुहरे कर लग रहे थे। एक से शिराजुद्दोला की विलासिता पूर्ण हो रही थी और दूसरे से ईस्ट इंडिया कंपनी का खजाना भर रहा था। अनेकों रईसों और जमींदारों को भी ऐसे समय में अंग्रेजों की गुलामी कर अपना खजाना भरने का पूरा मौका था। दुखी थी तो बस बंगाल की गरीब प्रजा। न तो कोई उसके दुख को सुनने बाला था और न कोई उनका साथ देने बाला।
ईस्ट इंडिया कंपनी का खजाना समुद्र के रास्ते लंदन भेजने की तैयारी हो रही थी। खजाने की सुरक्षा में हजारों सैनिक तैनात थे। कुछ डाकुओं ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर दिया। इतनी बड़ी सुरक्षा पर हमला करना ही बहुत बड़े साहस की बात थी।
डाकुओं के दल का नैत्रत्व एक स्त्री कर रही थी।
" साथियों। जीवन अनिश्चित है। पर जब तक जीयेंगें, शान से जीयेंगें। यह खजाना हमारी बंगाल की गरीब जनता की खून पसीने की कमाई है। इसे किसी भी हाल में लंदन नहीं जाने देना है।"
" आप निश्चित रहें देवी। अपने प्राण देकर भी आपके आदेश को पूर्ण करेंगें।देवी चौधराइन की जय हो। "
सभी डाकुओं ने उच्च स्वर में देवी चौधराइन की जयकार की। और विशाल सेना पर टूट पड़े। खुद देवी चौधराइन अपने घोड़े की लगाम मुंह से पकड़कर दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं। इतनी फुर्ती कि थोड़ी ही देर में सैकड़ों सैनिक ढेर हो गये। शेष सैनिकों का साहस उन्हें रोकने का न था। हथियार छोड़ अपने हाथ ऊपर उठाकर वे अभय मांगने लगे।
" यह हमारे बंगाल का धन हैं। बता देना अपने स्वामियों को कि अब बंगाल में चौधराइन आ गयी है। जल्द बंगाल छोड़ दो बर्ना चोधराइन उन्हें छोड़ेगी नहीं।"
एक बार फिर डाकुओं ने देवी चौधराइन के नारे लगाये और ईस्ट इंडिया कंपनी का जो खजाना लंदन जा रहा था, उसे लूटकर चल दिये।
घटना अप्रत्याशित थी। यकीन करने का कोई आधार नहीं था कि कुछ डकैतों ने हजारों सैनिकों को हराकर खजाना लूट लिया। अंग्रेजों ने किसी भी दोषी सैनिक और अधिकारी को नहीं बख्शा। सब को कैद कर लिया गया। और भी अनेकों संदिग्ध तलाशे गये। पर देवी चौधराइन न मिली।
देवी तभी मिलती थी, जब वह चाहे। वह कौन है और कहाॅ रहती है। सब अज्ञात था। लूटा हुआ खजाना निर्धनों में लुटाकर देवी फिर लुप्त हो गयी।
" वह कोई स्त्री नहीं है। सचमुच की देवी है। हमारे दुखों से द्रवित होकर धरा पर आयीं हैं।"
ऐसी कितनी ही बातें बंगाल की जनता में प्रचलित थीं। अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी करने बाले रईस और जमींदार भी देवी चौधराइन से घबराने लगे। अंग्रेजों की सहायता करने के लिये कोई भी तैयार न था। लगान और कर बसूलने बाले कर्मचारी और सैनिक देवी चौधराइन से फटकार खाकर खाली हाथ वापस आ गये।
प्रायः स्त्री के पर्यायवाची में एक शव्द अबला पढाया जाता है। स्त्री को पुरुष से कमजोर माना जाता है। पर बंगाल के इतिहास में एक स्त्री के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी की उच्च स्तरीय मीटिंग हुई। क्या कोई ऐसा नहीं है जो उस स्त्री को पकड़ सके। कोई भी जमींदार देवी चौधराइन के डर से साथ नहीं दे रहा है। यदि देवी चौधराइन को पकड़ा नहीं गया तो जल्द बंगाल से अंग्रेज छावनियां हटानी होंगीं।
" आप भी क्या बात कर रहे हैं, हुजूर। एक स्त्री के भय से हम अपना राज्य छोड़ देंगें। इस तरह तो फिर पूरे भारत में कोई न कोई हमारा विरोध करेगा। विरोध से डरना समाधान नहीं है। बल्कि समाधान है, विरोधियों का ऐसा हस्र करना कि फिर कोई सर न उठा सके।"
लार्ड हैंगिस के स्वर में ज्यादा उत्साह था। आखिर बंगाल में पूर्व स्थिति बहाल करने का वचन देकर हैंगिस बंगाल पहुंचा।
पूर्व के सेनापतियों के विपरीत हैंगिस ज्यादा चतुर था। देवी चौधराइन को तभी पकड़ा जा सकता है जब वह खुद सामने आये। जब निर्बलों का उत्पीड़न किया जायेगा तो देवी चौधराइन खुद सामने आयेगी। योजना पर अमल हुआ और वह ऐतिहासिक क्षण नजदीक था कि अंग्रेजी सेना देवी चौधराइन को गिरफ्तार कर लेगी। सैकड़ों अंग्रेज़ी सैनिकों के मध्य देवी चौधराइन अकेली थी।
देवी चौधराइन का अश्व धीरे धीरे हैंगिस की तरफ बढ रहा था। अचानक देवी चौधराइन ने अपने घोड़े को ऐड़ दी। सभी के देखते देखते देनी चौधराइन का अश्व हैंगिस के सर के ऊपर से कूद निकला। फिर कोई देवी चोधराइन को पकड़ न पाया। अलबत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैंगिस को बहुत दूर भेज दिया। बंगाल से अपनी छावनियां हटा लीं। बंगाल की जनता को अत्याचारों से मुक्ति मिली।
बंगाल में एक स्त्री जोश और आजादी का पाठ पढाकर लुप्त हो गयी। यही माना गया कि देवी चौधराइन साक्षात देवी थीं। जो अपना काम पूर्ण कर अपने दिव्य लोक चली गयीं। हर वर्ष नवरात्रि के अवसर पर देवी चोधराइन की पूजा देवी की भांति होती रही।
देवी चौधराइन कोई स्त्री थीं या साक्षात देवी, इस विषय में कोई निर्णय देना मेरा प्रयोजन नहीं है। मेरा प्रयोजन तो बस उस स्त्री को श्रद्धा सुमन अर्पित करना है जिसने बिना किसी सहारे अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया। बंगाल की जनता को उनके अत्याचार से मुक्त किया। भारत की एक गुमनाम नायिका का चरित्र आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करना ही मेरा उद्देश्य है।
समाप्त....
दिवा शंकर सारस्वत ' प्रशांत'
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