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नारी धर्म

25 नवम्बर 2021

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नारी धर्म

  देवगिरि के महल में आज शहनाइयां बज रही थीं। राजा रामदेव की खुशी का पार न था। उनकी पालिता बेटी वीरमती की सगाई हो रही थी। देवगिरि के ही सेनापति और परम वीर कृष्ण राय के साथ वीरमती का विवाह उसी की रजामंदी से तय हुआ था।

   वीरमती कभी खुश होती और कभी दुखी हो जाती। दोनों के कारण थे। खुशी का कारण महाराज का प्रेम था। भला कौन दूसरे की बेटी को इतना प्रेम करता है। सच बात तो यह है कि बहुत से लोग खुद की बेटी को ही प्रेम नहीं करते। बेटों पर ही प्रेम लुटाते हैं। बेटियों की उपेक्षा करते हैं।

   दुख की बात थी कि उसे बार बार पिता याद आ जाते। जब सरदार कर्ण सिंह रणभूमि में शहीद हुए, उस समय वीरमती ज्यादा छोटी भी न थी। आज भी वीरमती को ध्यान है। बेटी के विवाह के समय पिता की उपस्थिति मन में अलग संतोष देती है। पर सत्य है कि महाराज ने वीरमती के पालन में कोई कमी नहीं रखी। वीरमती और खुद की बेटी गौरी को बराबर स्नेह दिया। 

  गौरी कक्ष में आयी और वीरमती के गले में हाथ डालकर बैठ गयी। वीरमती ने भी उसे प्यार से गले लगा लिया। कोई ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ये दोनों लड़कियां सगी बहनें न हों। 

  गौरी समझ नहीं पा रही थीं कि बहन की आंखों में आंसू क्यों हैं। उसकी नजर में तो शादी का मतलब ढोल, नगाड़े, नाचना व गाना था। फिर इसमें दुखी होने की क्या बात है। 

  " जीजी। तुम रो क्यों रही हो। आज तो इतना नाच, गाना हो रहा है। दाबत हो रही है। इतनी खुशी के मौके पर रोने की क्या बात है।" 

  ". तुम अभी नहीं समझोगी। अभी छोटी हो ना।" 

  गौरी को खुद को छोटा मानना स्वीकार न था। 

  " इतनी भी छोटी नहीं हूं।" 

  " अच्छा। शादी का मतलब जानती हो। "

  अब गोरी सचमुच शांत हो गयी। निश्चित ही जो दिखता है वह होता नहीं है। कोई तो बात है कि बहन रो रही है। 

" क्या मतलब है। " गौरी ने इतनी मासूमियत से कहा कि वीरमती के चेहरे पर भी हंसी आ गयी। 

  " और कोई बात नहीं। बस तुम सबकी याद आयेगी। आखिर बचपन से बेटी माता, पिता, भाई और बहन के साथ रहती हैं। फिर एक दिन चली जाती है। उसे घर की याद तो आती ही है ना।" 

  गौरी सोच रही थी कि शादी के बाद लड़कियां क्यों घर छोड़कर जाती हैं। आखिर लड़के क्यों नहीं जाते। इस तरह से तो एक दिन वह भी पिता का घर छोड़कर चली जायेगी। थोड़ी देर में कक्ष में स्थिति बदल गयी। अब गौरी रो रही थी और वीरमती उसे  चुप कर रही थी। 

". मैं तो घर छोड़कर नही जाऊंगी।" गोरी एकदम चिपट गयी। 

  " अच्छा। तुम मत जाना। पिता जी से बोल दूंगी। हमारी छोटी बहन को कभी खुद से दूर मत करना।" 

" तुम भी नहीं जाओंगी। " बालहठ और बढा। 

" देखो बहन। वास्तव में लड़कों में इतनी ताकत ही नहीं होती कि वह खुद को बदल सकें। फिर दुनिया को आगे बढाने के लिये लड़कियों को ही यह करना होता है। ईश्वर ने लड़कियों को ज्यादा ताकतवर बनाया है। तभी तो लड़कियां सब भूल जाती हैं। भूल जाना ताकत की निशानी होती है। चाहे दुख हो या बुराई, जो भूल जाये, वही तो ताकतबर है। "

  गौरी ने ताकत की नयी परिभाषा सुनी। अब वह खुद को भी ताकतबर महसूस करने लगी। 

" राजकुमारी जी। आपको तैयार होना है। " दासी कक्ष में आ गयी। वीरमती को सगाई के लिये तैयार करने लगी। एक तो वीरमती वैसे ही इतनी सुंदर थी। फिर इस समय तो रूप की खान लगने लगी। पूरे सगाई के समय गौरी  वीरमती के साथ रही। एक दिन उसकी भी सगाई होगी। उसकी भी शादी होगी। वह भी जीजी की तरह बहादुरी दिखाएगी। इसलिये जीजी के साथ होना ज्यादा जरूरी है। 

............... 

  चांदनी रात थी। महल की छत पर वीरमती इंतजार कर रही थी। अक्सर कृष्ण राय इसी समय उससे मिलने आता था। वैसे तो अब उनकी सगाई हो चुकी थी। पर दोनों पहले से प्रेम करते थे। जिसपर किसी को आपत्ति न थी। 

  कृष्ण राय सीढियों से चढकर ऊपर आया। आज वीरमती ने सफेद कपड़े पहने थे। बालों में लगाये चंपा के पुष्पों की गंध चारों तरफ फैल रही थी। वीरमती स्वर्ग से उतरी अप्सरा सी लग रही थी। 

"आज आपने बहुत प्रतीक्षा करायी।" 
"हाॅ आज थोड़ा देर हो गयी। इस चांदनी को देखिये राजकुमारी। खुद को चांद में किस तरह समेटे है।" 

  वीरमती देखने लगी। पर उसे कृष्ण राय की बात सही नहीं लगी। चांदनी खुद को चाँद में समेटकर भी चाँदनी चाँद से अलग भी है। समझा जाता है कि चाँदनी की उत्पत्ति चाँद से हो रही है। पर लगता अलग है। चाँद की चमक इस चाँदनी से ही है। 

  अक्सर वीरमती हर छोटी बातों में कृष्ण राय से अलग दृष्टिकोण प्रदर्शित करती। फिर खुद ही शांत हो जाती। जो वास्तव में उसकी कमजोरी नहीं अपितु उसकी ताकत थी। स्त्रियाँ छोटी छोटी बातों में हार स्वीकार कर लेती हैं। पर बड़ी बातों में अपना बर्चस्व कायम कर लेती हैं।

  उस चाँदनी रात में दो प्रेमी बहुत देर तक घूमते रहे। एक दूसरे से मन की बातें करते रहे। इसमें कुछ भी अलग न था। पर तभी वीरमती को कुछ अलग लक्षित हुआ। हालांकि उसने जल्द ही इसे अपना भ्रम मान भुला दिया। महबूब द्वारा उसके भावी जीवन की चिंता को खुद के लिये प्रेम समझने लगी। जीवन प्रेम से चलता है। क्या हुआ कि उसका महबूब कोई राजा या राजकुमार न होकर एक सेनानी है। वह खुद भी तो वास्तव में एक सेनानी की बेटी है। वह अपने महबूब के प्रेम में अपना जीवन न्योछावर कर देगी।

...........

  अभी वीरमती का विवाह हो भी नहीं पाया था कि देवगिरि पर एक आपदा आ गयी। दिल्ली के राजा अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि पर हमला कर दिया। उद्देश्य था, देवगिरि पर अधिकार। पर देवगिरि के रण बांकुरे इतनी आसानी से हार नहीं मान सकते थे।

   युद्ध के प्रथम दिन ही देवगिरि की सेना ने खिलजी की सेना को खदेड़ दिया। पर फिर बाद में अप्रत्याशित घटनाएं घटित होने लगीं। बाहरी आक्रमणकारियों को देवगिरि की भौगोलिक परिस्थितियों का पता नहीं था। पर आश्चर्य जनक तरीकों से खिलजी के सैनिक देवगिरि के सैनिकों को घेरने लगे। यह तो तभी संभव है, जबकि हमारी सेना में ही कोई गद्दार हो। कोई अपना ही धोखा दे रहा हो। कोई अपना ही हमारे रहस्य शत्रु को बता रहा हो। कोई अपना ही बिक गया हो। पर वह अपना कौन है, पता न चलता। 

  देवगिरि की सेना की आश्चर्यजनक परिस्थितियों में हो रही पराजय सभी के मध्य चर्चा का विषय थी। वीरमती अनायास ही चाॅदनी रात की बातों को याद करने लगी। आखिर कृष्ण राय की इस बात का क्या आशय था कि वह वीरमती को ऐसी खुशियां देना चाहता है जो देवगिरि की रानी को भी दुर्लभ है। तो क्या वह खुशियां मुझे देश से गद्दारी करके देना चाहता है। नहीं। यह झूठ है। 

  वीरमती का मन दुबिधा में था। एक तरफ प्रेमिका का मन ऐसी बातों को स्वीकार ही नहीं कर रही था। दूसरी तरफ एक देशभक्त कन्या का मन उससे बोलता। 
  "वीरमती। झूठी दिलासा मत दो। देश का गद्दार और कोई नहीं, तेरा महबूब है। वही आक्रमणकारियों के हाथों बिका हुआ है।" 

  "यदि ऐसा है। तो भी मैं क्या करूं।" प्रेमिका देशभक्त कन्या से हार मानने को तैयार न थी। 

  "यह तुम बोल रही हो। जानती हो तुम कौन हो।" 
  "हाॅ जानती हूं। मै वीरमती हूं। कृष्ण राय की मंगेतर। इसके अलावा मेरी क्या पहचान। चाॅदनी की पहचान तो चाॅद से ही होती है।" 

" गलत सोच रही है वीरमती। कृष्ण राय की मंगेतर के अलावा भी तुम्हारी पहचान है। तुम वीर पिता कर्ण सिंह की पुत्री हो। जिसने देवगिरि के लिये अपने प्राण भी त्याग दिये थे। आज कर्ण सिंह की बेटी अपने पिता का नाम डुबोने जा रही है। "

  वीरमती अपने पिता के खिलाफ कुछ न सुन पायी। सही बात है कि उसके पिता ने देवगिरि के लिये अपने प्राण भी त्याग दिये थे। हाथ में तलवार लेकर दरवार चल दी। महाराज युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। कोई समझ न पाया कि क्या होने बाला है। 

  " देवगिरि से गद्दारी करने बाले। तुझे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं।" वीरमती ने पूरी ताकत से तलवार कृष्ण राय के पेट में घुसा दी। कृष्ण राय तड़पने लगा। एक बार उसकी नजर वीरमती की तरफ गयी। अभी भी उसकी तरफ देखना आसान न था। 

  "अच्छा हुआ। मेरा भ्रम टूटा। तुम्हारे प्रेम में मैं कितना कर रहा था। तुम्हें इसी देवगिरि की रानी बनाने बाला था। मेने जो किया, अच्छा या बुरा। मेने सच्चे प्रेमी का धर्म निभाया। पर तुम वीरमती। क्या यही वह नारी धर्म है। क्या यही एक नारी का पति के लिये समर्पण है। "

  कृष्ण राय के स्वर में उलाहना ही अधिक था। थोड़ी देर वीरमती सुनती रही। फिर बोली।

" एक नारी के धर्म को अपनी आन भी पेसों के समक्ष रखने बाले क्या जानें। निश्चित ही आप मेरे महबूब हो और मैं आपकी माशूका। पर कोई भी धर्म देश से बढकर नहीं होता। जिस देश का अन्न खाकर हम बढे हुए हैं, उससे बढकर भला क्या धर्म है। मेने अपने देश के प्रति अपना धर्म निभा दिया। देवगिरि के गद्दार को समाप्त कर दिया। पर अभी एक माशूका का धर्म शेष है। आप भी देखिये। जब एक नारी धर्म निर्वाह करने आती है तो फिर कुछ भी कर सकती है। "

  वीरमती ने जो तलवार कृष्ण राय के पेट में मारी थी, वही खुद के पेट में घुसा दी। और कृष्ण राय के बगल में गिर गयी। राजा समेत सभी दरवारियों की आखों से आंसू बहने लगे। 

समाप्त 

दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'
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