चित्तौड़ पर गुजरात के पठानों ने हमला कर दिया। अभी कुछ समय पूर्व तक महाराजा संग्राम सिंह चित्तौड़ का राज्य सम्हाल रहे थे। तब तक किसी का भी साहस चित्तौड़ को देखने का न था। पर महाराज के स्वर्ग गमन के बाद उनका पुत्र गद्दी पर बैठा तो यह रोज की बात हो गयी। अक्सर कोई न कोई अधीनस्थ विरोध करता। फिर राज्य की सीमाएं कम होती गयीं।शक्तिशाली राज्य को कमजोर माना जाने लगा।
परिवर्तन संसार का नियम है। चंद वर्षों में इतना बदलाव हो गया कि कोई विश्वास भी न कर सके। वैसे महाराज ने अपना नाम विक्रमादित्य रख लिया था। पर नाम रखने मात्र से कोई विक्रमादित्य नहीं हो जाता। निर्धनों को अपना नाम धनवान रखते देखा गया है। राजा का साहस किसी को जबाब देने का न था। और जब पठान चित्तौड़ तक आ गये तो उसे भागने के अलावा कोई मार्ग न सूझा।
राजा के अभाव में सेना भी निरुपाय थी। स्त्रियों में खुद को बहादुर दिखाने की होड़ ऐसी लगी कि चित्तौड़ में एक विशाल चिता तैयार हो गयी। अलाउद्दीन खिलजी के काल में रानी पद्मावती ने जौहर किया था। राजपूत स्त्रियों के लिये जौहर करना सम्मान माना जाता था।
घोड़े की पीठ पर बैठ रानी जवाहरवाई वहीं आ गयी।
" अरे। यह क्या वीरता है। वीरता है या तो दुश्मन को मार देना या खुद मर जाना। मौत का इतना आसान तरीका तो कायर देखते हैं। साहसी वहीं हैं जो मृत्यु से लड़ जायें। अब अग्नि कुंड में जौहर नहीं होगा। रणभूमि में हमारा जौहर होगा।"
"पर महारानी। यह कैसे संभव है।हम स्त्रियां स्वभाव से ही कमजोर होती हैं। घर में अभ्यास करना अलग बात है। युद्ध करना एकदम अलग। "
स्त्रियों के प्रश्न पर जवाहरवाई क्रोधित हो गयी।
" ठीक है। मैं कर के दिखाती हूं। ।मन में विश्वास हो तो कुछ भी नामुमकिन नही है। स्त्री कमजोर नहीं होती। आज रण अग्नि में जौहर कैसे दिया जाता है, आप सभी को बताती हूं। "
जवाहरवाई ने घोड़े को ऐंड़ लगायी। थोड़ी ही देर में वह अकेले पठानों पर टूट पड़ी। रानी को अकेले शत्रु पर टूटते देख राजपूत वीरों में भी हिम्मत आ गयी । फिर उनके पीछे अनेकों राजपूत पठानों से लौहा लेने पहुंच गये।
एक राजा का दायित्व आगे बढकर उदाहरण प्रस्तुत करना होता है। पर उदाहरण प्रस्तुत किया रानी जवाहरवाई ने। जब युद्ध करते हुए रानी समर में खेत रही तब तक पठानों की हिम्मत जबाब दे चुकी थी। एक प्रचलित मान्यता कि स्त्री कमजोर होती है।
अक्सर लोग इमारत को निहारते हैं। इमारत की प्रशंसा करते हैं। पर इमारत के नींव के पत्थर गुमनाम रहते हैं। चुपचाप इमारत का भार अपनी पीठ पर ढोते हैं। चित्तौड़ के इतिहास रूपी इमारत में रानी जवाहरवाई वही गुमनाम नींव का पत्थर हैं जिसपर एक विशाल भवन तैयार हुआ। महाराणा प्रताप की बहादुरी को सुनते आये हम भारतीय शायद उनका नाम भी न जान पाते यदि रानी जवाहरवाई मेवाड़ के इतिहास का नींव का पत्थर न बनतीं।
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दिवा शंकर सारस्वत ' प्रशांत'
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