मनु भाकर एक खिलाड़ी, एक सेंसेशन. कल से भारत में हर कोई उन्हें पूछ रहा है.
गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में शूटिंग में भारत का पहला स्वर्ण पदक 16 वर्षीय मनु भाकर से आया था. इस दौरान ही उन्होंने महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल शूटिंग राष्ट्रमंडल खेल ों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था. उन्होंने 240.9 अंकों के साथ गोल्ड पर कब्जा जमाया जो राष्ट्रमंडल खेलों का आज तक का हाईएस्ट है.
और हां इसके साथ-साथ एक और रिकॉर्ड बना – कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड क्या कोई भी पदक जीतने वाली वो सबसे कम उम्र की इंडियन हैं.
बहरहाल ये न तो मनु भाकर की पहली और न ही एकमात्र सफलता है. इनफैक्ट पिछले दो महीने में यह उनका सातवां गोल्ड मेडल है. भाकर ने दो साल पहले ही शूटिंग को अपनाया था. उससे पहले वो मुक्केबाज़ी करती थीं. मुक्केबाज़ी में जब एक बार उनकी आंख में चोट लगी तो उनकी मां ने उन्हें मुक्केबाज़ी करने से मना कर दिया.
मगर झज्जर जिले के गोरिया गांव की मनु भाकर मुक्केबाज़ी ही नहीं हर तीसरे दिन दूसरा खेल खेलने और उसमें अपनी छाप छोड़ने के लिए जानी जाती हैं. कभी स्वीमिंग, कभी टेनिस, कभी कराटे तो कभी स्केटिंग और अब शूटिंग. और मार्शल आर्ट और बॉक्सिंग में तो वो मेडल भी जीत चुकीं हैं. टांता में लगातार तीन बार नेशनल चैंपियन रही हैं, स्केटिंग में स्टेट मेडल जीत चुकी हैं.
मास्टर्स ऑफ़ ऑल ट्रेड क्या होता है इसका मनु जीता जागता उदाहरण हैं – पिछले साल टेंथ के बोर्ड में वो अपने स्कूल में फर्स्ट आईं थीं.
हर खेल और खेल के हर उस वर्ज़न जिसमें भाकर ने हिस्सा लिया, वो कभी खाली हाथ नहीं लौटीं. उनके पिता, जो पास्ट में मर्चेंट नेवी में इंजीनियर थे, को भी इस बात का पता था. इसलिए ही तो अबकी बार गोल्ड जीतने पर वो खुश तो बहुत थे मगर आश्चर्यचकित नहीं. वो तो जानते थे कि उनकी बेटी कभी किसी स्पर्धा से खाली हाथ नहीं लौटी.
वैसे उनके पिता रामकिशन भाकर को मनु भाकर की सक्सेस स्क्रिप्ट का सीक्रेट सुपरस्टार कहा जा सकता है.
1,50,000 के निवेश के साथ रामकिशन ने मनु के लिए प्रतिस्पर्धी शूटिंग शुरू करने का फैसला लिया. मनु बालिग तो थीं नहीं इसलिए पिस्तौल अपने साथ लेकर नहीं चल सकती थीं, गाड़ी नहीं चला सकती थीं. तो पिता को नौकरी छोड़नी पड़ी ताकि अपनी बेटी के सपनों को पंख दे सकें.
जैसा कि आपको बताया अभी मनु को पिस्तौल पकड़े जुम्मा-जुम्मा दो साल हुए हैं, लेकिन पिस्तौल से धमाल करना तो उन्होंने काफी पहले शुरू कर दिया था. और इसमें उनका साथ दिया उनकी उम्र ने. जी हां. ‘मनु भाकर’ नाम की ये सक्सेस जर्नी भारतीय जूनियर सर्किट से शुरू हुई. लेकिन फिर आई 61वीं नेशनल चैंपियनशिप, जिसमें में ये तूफान अपने साथ 15 मेडल उड़ा ले गया. और इस तूफान में रिकॉर्ड्स भी तिनके की तरह उड़ गए. 100 मीटर के एयर पिस्टल इवेंट में उन्होंने हिना सिंधु का नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा.
फिर हुए खेलो इंडिया गेम्स, जहां फिर से उन्होंने 2 रिकॉर्ड तोड़े.
और उसके बाद आया इंटरनेशनल इवेंट – इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन वर्ल्ड कप. जहां वो 10 मीटर की एयर पिस्टल प्रतियोगिता में गोल्ड पाने वालीं सबसे कम उम्र की भारतीय बनीं. इसके साथ ही ‘मिक्स्ड इवेंट’ में भी दो गोल्ड अपने नाम किए.
कुछ दिनों बाद जूनियर इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन वर्ल्ड कप में मनु ने फिर दो गोल्ड जीते. एक 10 मीटर की एयर पिस्टल प्रतियोगिता में इंडिविजुअल गोल्ड और दूसरा मिक्स्ड में.
एक दौर ऐसा भी आया जब उनकी मेहनत और पापा का सेक्रेफाईज़ खटाई में पड़ता दिख रहा था. क्यूंकि झज्जर जिला प्रशासन ने उनके पिस्टल-लाइसेंस के आवेदन को रद्द कर दिया था. इस लाइसेंस बिना विदेश से पिस्टल आयत करना और उसे यूज़ करना गैरकानूनी हो जाता. लेकिन मीडिया में इस खबर के फैलने और ऊपर से आदेश आ चुकने के बाद फाइल पर फिर से कार्यवाही शुरू हुई और इस तरह उन्हें लाइसेंस मिल सका.
शूटिंग में ध्यान कैसे गया, इसके पीछे भी एक रोचक स्टोरी है. मनु के स्कूल में शूटिंग रेंज है जहां पर बच्चे प्रैक्टिस करते हैं. एक दिन जब वो अपने पिता के साथ घूम रही थीं तो उन्होंने मज़ाक-मज़ाक में पिस्टल हाथ में उठाई और पहला ही निशाना ‘बुल्स आई’ पर जाकर लगा. एंड रेस्ट इज़ दी हिस्ट्री…
बहरहाल अब उनकी प्रसिद्धि का आलम ये है कि उनके स्कूल को भी नॉन-ऑफिशियली ‘मनु भाकर स्कूल’ कहा जाने लगा है.
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