आप कई बार एक झटके के कारण नींद से उठते हैं. पिछले 15 दिनों से मेरी जिंदगी एक सस्पेंस स्टोरी की तरह हो गई है. मुझे बस इतना पता है कि रेयर स्टोरीज को खोजते हुए मुझे एक रेयर बीमारी हो गई. मैंने कभी हार नहीं मानी और हमेशा अपनी पसंद के लिए फाइट की. मेरा परिवार और दोस्त मेरे साथ हैं और हम इससे निकलने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. कृपया किसी तरह के कयास न लगाएं. क्योंकि एक सप्ताह या 10 दिनों के अंदर जब जांच किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी, मैं खुद अपनी कहानी आपको सुनाऊंगा. तब तक प्लीज मेरे लिए प्रार्थना कीजिए.
ये था इरफ़ान का पांच मार्च को किया गया ट्वीट.
तुरंत कयासों का बाज़ार गर्म हो गया. कोई कहने लगा कि उनको पीलिया है और वो विदेश इलाज के लिए जाने वाले हैं. कई फ़िल्मी सेलिब्रिटीज़ ने उनके अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना भी की –
लेकिन उसके बाद आज सुबह दैनिक भास्कर ने लिखा कि इरफ़ान खान को ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफोर्मे (जीबीएम) ग्रेड-4 की बीमारी हो गई है.
चूंकि अभी किसी और माध्यम से इस खबर की पुष्टि नहीं हुई है इसलिए हम दुआ कर रहे हैं कि इरफ़ान खान को ये रोग न हो. होने को ट्रेड एनालिस्ट कोमल नहाटा ने भी ट्वीट करते हुए ये कहा है कि जो खबरें मीडिया में फैल रही हैं वो निराधार हैं.
इरफ़ान खान की बीमारी को ‘डेथ ऑन डायग्नोसिस’ के मेटाफर दिया जा रहा है. ‘डेथ ऑन डायग्नॉसिस’ मतलब, इस रोग का पता चलते ही ये बात निश्चित हो जाती है कि रोगी की मृत्यु निश्चित है. इन ढेर सारी दुआओं के साथ कि इरफ़ान के बारे सारी बुरी ख़बरें झूठ निकलें आइए हम जानते हैं कि जीबीएम ग्रेड-4 क्या है और क्या ये एक घातक बीमारी है?
# ब्रेन ट्यूमर
हमने इस रोग का नाम बहुत सुना है. लेकिन ब्रेन ट्यूमर दरअसल कोई रोग नहीं एक ‘अम्ब्रेला टर्म’ है, जिसके अंदर दिमाग से संबंधित वो सारी बीमारियां आ जाती हैं जिनमें दिमाग में गांठ बन जाए.
और गांठ कैसे बन जाती है? गांठ बनती है कोशिकाओं में अनियमित वृद्धि से.
अब हमने कहा कि ये एक अम्ब्रेला टर्म है या अपेक्षाकृत ज़्यादा जैनेरिक टर्म है तो और स्पेसिफिक होकर बात करें तो ब्रेन ट्यूमर तीन तरह के होते हैं –
# बिनाइन ट्यूमर (Benign Tumor)
यदि सर की कोई गांठ कैंसर नहीं है तो उसे बिनाइन ट्यूमर कहा जाता है.
# कैंसरस ट्यूमर या मेलिगनेट ट्यूमर (Malignant Tumor)
बिनाइन ट्यूमर के जस्ट अपोज़िट यदि सर में पहले कोइ गांठ डायग्नॉस हुई है और वो गांठ दरअसल एक कैंसर है तो इस गांठ को मेलिगनेट ट्यूमर कहा जाता है.
यानी ब्रेन का हर कैंसर ट्यूमर होता है लेकिन हर ट्यूमर कैंसर हो ये ज़रूरी नहीं.
# मेटास्टेटिस कैंसर (Metastatic Cancer)
यदि अतीत में शरीर के किसी भाग में कैंसर रहा हो और उसका उपचार चल रहा हो, या वो सही हो चुका हो, लेकिन वही कैंसर फैल कर शरीर के दूसरे हिस्से में पहुंच जाए तो उसे मेटास्टेटिस कैंसर कहते हैं.
# कारण
मानव के शरीर में कैंसर पैदा करने वाले वाह्य कारकों या पदार्थों को कार्सिनोजेनिक पदार्थ कहा जाता है, इनमें प्लास्टिक और प्लास्टिक के बाय-प्रोडक्ट, शीशा, पारा जैसे ढेरों पदार्थ शामिल हैं. कार्सिनोजेनिक पदार्थों के अलावा पर्यावरण प्रदूषण भी कैंसर और ट्यूमर का एक और बड़ा कारण है. होने को पहला और दूसरा कारण बहुत अलग नहीं है. फिर भी…
जींस, यानी जैनेटिक्स भी कैंसर का कारण हो सकती है. मतलब यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी को ये रोग हुआ है तो उस व्यक्ति को भी ये रोग होने की संभावना बन/बढ़ जाती है. टेक्निकली इसे हम हिंदी में वंशानुगत रोग भी कह सकते हैं.
खान-पान, कॉस्मेटिक्स, सिगरेट-बीड़ी, शराब और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करना भी कैंसर, ट्यूमर, ब्रेन ट्यूमर वगैरह का कारण हो सकता है.
होने को ऐसा किसी ‘ऑफिसियल’ स्टडी में प्रूफ नहीं हुआ है, लेकिन मोबाइल का ज़्यादा उपयोग भी विभिन्न तरीके के कैंसर्स का कारण बन सकता है.
# लक्षण
जब हमें कारणों की बात की तो ट्यूमर या ब्रेन ट्यूमर की बात नहीं की बल्कि कैंसर की बात की फिर वो चाहे शरीर के किसी भी अंग का हो. अब लक्षण की बात करते वक्त हम केवल ब्रेन ट्यूमर की बात करेंगे. तो इसका सबसे कॉमन लक्षण तो सर दर्द ही है.
लेकिन ट्यूमर का सर-दर्द बाकी सर-दर्द की तुलना में कम समय तक रहता है. साथ ही सुबह उठते वक्त यदि सर-दर्द हो रहा हो तो सचेत होना ज़रुरी है. विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि सर-दर्द के दौरान उल्टी करने की इच्छा हो रही हो और उल्टी कर चुकने के बाद आराम आए तो इसे भी ट्यूमर के संकेत के रूप में लेना चाहिए.
डॉक्टर्स ये भी कहते हैं कि सर-दर्द के दौरान चीज़ें धुंधली दिखना भी ट्यूमर की ओर इशारा करता है. और साथ ही यदि आपका और आपके परिवार का मिर्गी का कोई इतिहास न रहा हो लेकिन आपको अचानक से मिर्गी के दौरे आना शुरू हो चुके हैं तो भी डॉक्टर, न्यूरोलॉजिस्ट को दिखवा लेना चाहिए.
अचानक बिहेवियरल चेंज और हाथ पांव में कमज़ोरी महसूस होना भी ट्यूमर के कुछ लक्षणों में से एक है.
प्लीज़ ध्यान दें कि ये सारे लक्षण बड़े ‘जेनेरिक’ हैं. मतलब कि ये सारे किसी अन्य बीमारी के चलते भी संभव हैं. पूरी जानकारी तो डायग्नॉसिस के बाद ही मिल पाती है.
# इलाज
एमआरआई से एक्यूरेटली पता चल जाता है कि दिमाग के किस हिस्से में ट्यूमर है और उसकी वर्तमान स्थिति क्या है. ब्रेन मैपिंग से ये पता लग जाता है कि दिमाग के कितने हिस्से को ट्यूमर प्रभावित कर रहा है, और इसका इलाज करने के दौरान क्या क्या अन्य परेशानियां संभव हैं. इसके अलावा सीटी स्कैन, एंजियोग्राम, स्पाइनल टैब, बायोप्सी द्वारा भी ब्रेन ट्यूमर की पहचान और स्पेसिफिकेशन का पता चलता है.
ये तो थी डायग्नॉसिस की बात, अब अगर इलाज की बात करें तो, यदि ट्यूमर 2 सेंटीमीटर से छोटा हुआ तो गामा रेज़ या लेज़र वगैरह से ही इसका इलाज संभव है और ऑपेरट करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती.
अन्यथा सर्जरी, रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी या इनके कॉम्बिनेशन्स का सहारा लेना पड़ता है.
मरीज़ को इलाज के लिए न्यूरोसर्जन, न्यूरो ऑन्कोलोजिस्ट, मेडिकल ऑन्कोलोजिस्ट, रेडियेशन ऑन्कोलोजिस्ट या न्यूरो रेडियोलोजिस्ट के पास या इनमें से एकाधिक विशेषज्ञों के पास जाना पड़ सकता है.
डॉक्टर कहते हैं कि कोई भी दो ट्यूमर समान नहीं होते, इसलिए उनके इलाज़ में भी ज़मीन आसमान का फर्क है. जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं कि ट्यूमर कोई रोग नहीं रोगों के लिए एक ‘अम्ब्रेला टर्म’ है.
मरीज़ की उम्र, उसके लिंग, उसके स्वास्थ के साथ साथ ब्रेन ट्यूमर का इलाज, ट्यूमर के ग्रेड पर भी सबसे ज़्यादा निर्भर करता है. ग्रेड चार होते हैं. ग्रेड वन सबसे कम जानलेवा और बढ़ते बढ़ते ग्रेड फोर सबसे ज़्यादा जानलेवा ट्यूमर होता है.
# ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफोर्मे (जीबीएम) ग्रेड-4
अब बात करते हैं उस ट्यूमर की जो इन दिनों बहुत कुख्यात हुआ पड़ा है – ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफोर्मे (जीबीएम) ग्रेड-4.
इस बीमारी की कुछ बेसिक जानकरी तो हमें ऊपर तक के लेख और बीमारी के नाम से ही पता चल जाती है. जैसे इसके नाम में ग्रेड-4 जुड़ा है. यानी ये सबसे घातक ट्यूमर है. अब दूसरी जानकारी आपको बता दें कि ये मेलिगनेट ट्यूमर है.
यानी ऊपर के लेख से पता ही चल गया होगा कि कैंसर वाला ट्यूमर.
इसके बारे में सबसे दुखद बात ये है कि उपचार न हो पाने की स्थिति में रोगी केवल तीन महीने तक बच पाता है. और यदि उपचार हुआ भी तो अधिकतम सवा साल. सौ में से चार लोग ही इस बीमारी के बावज़ूद पांच वर्ष तक जीवित रह पाते हैं.
ग्रेड-4 के ट्यूमर का इलाज सर्जरी से ही संभव है, और चूंकि यह भी ग्रेड-4 ट्यूमर है इसलिए इसमें सर्जरी ही एकमात्र रास्ता बचता है. होने को यह ट्यूमर इतना उलझ जाता है कि सर्जरी के माध्यम से भी इसका पूरी तरह से इलाज संभव नहीं हो पाता.
यानी ये बात मोटा-मोटी तौर पर सही कही जा सकती है कि यदि किसी रोगी को जीबीएम ग्रेड-4 नाम की बीमारी हुई है तो मिरेकल हो जाने की दशा में भी वह पांच वर्ष से अधिक समय तक नहीं बचाया जा सकता.
इंडिया या वैश्विक स्तर पर तो आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन यूएस में एक लाख लोगों में से दो से तीन लोगों में ये बीमारी पाई जाती है.
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