कुलदीप सिंह सेंगर. ये नाम उस नेता का है, जो आज की तारीख यानी कि 8 और 9 अप्रैल के दरम्यान सबसे ज्यादा चर्चा में है. जाहिर है यूपी के 403 विधायकों में अगर एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, तो उसकी कोई वजह होगी. और वो भी बड़ी वजह होगी. तो चर्चा की वजह है और बहुत बड़ी है. 8 तारीख को चर्चा इसलिए हुई कि एक महिला ने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्महत्या की कोशिश की और आरोप लगाया कि बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उनके साथियों ने उसके साथ गैंगरेप किया है. फिर 9 तारीख की सुबह होते-होते खबर आई कि आरोप लगाने वाली लड़की के पिता की जेल में ही मौत हो गई है. विवाद स्वाभाविक था, सो शुरू हो गया और फिर सबकी जुबान पर जो एक नाम आया वो था कुलदीप सिंह सेंगर का.
तीन अलग-अलग क्षेत्रों से बने चार बार विधायक
कुलदीप सिंह सेंगर को जानने वाले लोग बताते हैं कि इलाके में उनकी छवि बाहुबली की है. चार बार से लगातार विधायक बन रहे कुलदीप सेंगर कभी चुनाव नहीं हारे हैं. कहा जाता है कि सियासत में कुलदीप चल रही हवा का रुख भांप लेते हैं. ऐसे में वो चार बार विधायक बने हैं, जिसमें तीन बार उनका क्षेत्र अलग-अलग रहा है.
कांग्रेस, बीएसपी, सपा और बीजेपी सबसे रही करीबी
कुलदीप सिंह सेंगर ने सियासत की शुरुआत तो कांग्रेस से की थी. उस वक्त उन्हें युवक कांग्रेस में शामिल किया गया था. लेकिन जब 2002 में विधानसभा के चुनाव आए, तो कुलदीप कांग्रेस का हाथ छोड़कर हाथी पर सवार हो गए. इसका फल भी उन्हें तुरंत ही मिल गया. 1996 के चुनावों में 10 हजार वोटों से हारी हुई उन्नाव सदर की सीट से मायावती ने कुलदीप को उम्मीदवार बना दिया. कुलदीप चुनावी मैदान में उतरे और कांग्रेस के प्रत्याशी शिव पाल को करीब चार हजार वोट से मात दे दी. उससे पहले 1996 के चुनाव में ये सीट सपा के दीपक कुमार के पास थी. इस चुनावी जीत के साथ ही कुलदीप की छवि बाहुबली की बननी शुरू हो गई थी.
मायावती ने पार्टी से निकाला, सपा ने अपना लिया
लेकिन इसी बनती हुई छवि ने मायावती को नाराज कर दिया. 2007 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने अपनी छवि इतनी बड़ी बना ली कि वो उन्नाव सदर सीट छोड़कर खुद ही पुरवा विधानसभा में चुनाव प्रचार करने लगे. मायावती को ये बात रास नहीं आई और उन्होंने कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अपना क्षेत्र वो पहले ही छोड़ चुके थे और फिर पार्टी से निकाले जाने के बाद समाजवादी पार्टी ने उनको अपना लिया. मुलायम सिंह कुलदीप को पार्टी में लेकर तो आए, लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने के लिए बांगरमऊ भेज दिया गया. कुलदीप मान गए. उन्नाव सदर और पुरवा की जमीन छोड़कर वो बांगरमऊ में चुनावी प्रचार में उतर गए. जब पूरी हवा समाजवादी पार्टी के खिलाफ थी, कुलदीप सिंह सेंगर ने बांगरमऊ से जीत दर्ज की. उन्होंने दो हजार वोटों से बीएसपी के राम शंकर पाल को मात दे दी. इसके बाद तो कुलदीप का सियासी रसूख और भी बढ़ गया. जब 2012 के चुनाव नज़दीक आए, कुलदीप सेंगर ने फिर से अपना चुनावी क्षेत्र बदलने का मन बनाया और फिर भगवंत नगर में सक्रिय हो गए. ये वो वक्त था, जब समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव की सक्रियता और लोकप्रियता दोनों ही चरम पर थी. अखिलेश ने जब रथ यात्रा निकाली, तो इसके रूट में भगवंतनगर सीट भी थी. सपा की उस लहर में कुलदीप ने फिर जीत हासिल की और सत्ता में आ गए. सत्ताधारी पार्टी के विधायक होने का रसूख इनके साथ था, जिसने इनको बाहुबली की छवि के तौर पर स्थापित कर लिया. इसके अलावा इस दौरान हुए जिला पंचायत के चुनाव में सपा ने इनकी पत्नी संगीता को टिकट नहीं दिया. इससे नाराज कुलदीप सेंगर ने अपनी पत्नी को चुनावी मैदान में उतार दिया. सपा को इनका सियासी रसूख पता था, लिहाजा सपा ने किसी को भी टिकट नहीं दिया. जब कुलदीप सेंगर की पत्नी संगीता चुनाव जीत गईं, तो सपा ने संगीता को अपना अधिकृत प्रत्याशी बता दिया.
हवा का रुख देख थामा था बीजेपी का दामन
लेकिन पार्टी के साथ ही क्षेत्र बदलने की इनकी फितरत से लोग वाकिफ थे. लिहाजा जब 2017 का चुनाव आया, तो कयास लगाए जाने लगे कि कुलदीप सेंगर कम से कम पार्टी नहीं तो क्षेत्र तो बदल ही देंगे. चुनाव में प्रचार के दौरान सपा बीएसपी और बीजेपी दोनों पर हमलावर रही, नोटबंदी से लेकर बीजेपी की नीतियों पर लगातार हमले किए, लेकिन इलाके में कुलदीप की खामोशी पर लोगों के बीच चर्चा होने लगी. और फिर कुलदीप ने जो किया, उसपर किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. जनवरी 2017 में कुलदीप ने पार्टी बदल ली और बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने भी इनाम दिया और उन्हें एक बार फिर से बांगरमऊ से टिकट दे दिया. जब चुनाव के नतीजे आए, तो कुलदीप सिंह सेंगर लगातार चौथी बार विधायक बन गए. इनकी पत्नी संगीता ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया.
हार के डर से बदली थी सीट!
हालांकि स्थानीय स्तर पर लोग दबी जुबान से सीट बदलने के बारे में कई दिलचस्प बातें करते हैं. वो बताते हैं कि 90 के दशक के आखिरी सालों में ज़िले में अजि सिंह नाम के एक ठाकुर राजनेता ने दबंगई के बल पर उन्नाव और लखनऊ में अलग मुकाम हासिल किया. पहचान इतनी कि सपा और बीजेपी दोनों ही दलों से विधान परिषद पहुंच गए. हिम्मती इतने कि शिवपाल यादव के गिरेबान पर भी हाथ डाल दिया था. लेकिन 2004 में अपनी ही जन्मदिन की पार्टी में गोली लगने से मौत हो गई. विरासत संभालने का जिम्मा आया उनके बेटे शशांक शेखर सिंह पर. विरासत संभालने के क्रम में शशांक शेखर बीएसपी में चले गए. 2017 के चुनाव में शशांक शेखर को बीएसपी ने भगवंतनगर सीट से मैदान में उतार दिया. इसकी वजह से कुलदीप सेंगर को परेशानी होने लगी और वो सीट बदलने के बारे में और भी ठीक से सोचने लगे. जब चुनाव नजदीक आए तो बीजेपी के टिकट पर वो बांगरमऊ सीट पर चले गए. सीट बदलने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ था, लेकिन इलाके में इस बात की चर्चा ठीक से हुऊ कि कुलदीप ने ये सीट शशांक के डर से बदली है, क्योंकि उन्हें इससे हार का डर है.
खुद की छवि बाहुबली वाली, भाई ने कई बार चलाईं गोलियां
नाम न छापने की शर्त पर स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि उन्नाव का कोई भी ठेका बिना कुलदीप सेंगर की मर्जी के किसी को नहीं मिल सकता है. साइकल के ठेके से लेकर अवैध होटल चलाने और ऑटो स्टैंड से लेकर गाड़ियों से अवैध वसूली तक के कारोबार में विधायक का परिवार शामिल है. ठेके कुलदीप सेंगर के भाई अतुल सेंगर उर्फ जगदीप चलाते हैं, जबकि होटल का कारोबार उनके भाई मनोज सेंगर के पास है. पत्रकार बताते हैं कि करीब 14 साल पहले उन्नाव में किसी बात को लेकर विधायक पक्ष से कहा-सुनी हो गई थी. इसे रोकने के लिए जब पुलिस पहुंची तो विधायक के भाई अतुल सेंगर ने पुलिस पर फायरिंग कर दी थी, जिसमें डिप्टी एसपी को पेट में गोली लग गई. हालांकि सियासी रसूख की वजह से अतुल सेंगर और पुलिस के बीच समझौता हो गया. वहीं एक बड़े अखबार के स्थानीय पत्रकार ने सपा की सरकार में विधायक के परिवार पर अवैध खनन का आरोप लगाते हुए खबरें लिखीं, तो उसकी भरे बाजार पिटाई भी की गई. हालांकि पत्रकार की ओर से भी अतुल सेंगर के साथ मारपीट की गई. इस मामले में भी दोनों में से किसी भी पक्ष ने तहरीर नहीं दी. इसके अलावा अतुल सेंगर ने 2014 में कानपुर में एक बड़े अखबार के पत्रकार के घर में घुसकर गोली चलाई थी. वो पत्रकार तो बच गया, लेकिन गोली उसके पिता को लग गई और उसकी मौत हो गई. इस मामले में अतुल सेंगर हिरासत में भी लिए गए थे. लेकिन उस वक्त के कानपुर एसएसपी रहे यशस्वी यादव की जांच में अतुल के खिलाफ सबूत नहीं मिले और उन्हें छोड़ दिया गया. कहा जाता है कि अतुल और पत्रकार के बीच समझौता हो गया था, जिसके बाद मुकदमा खारिज हो गया.
विधायक पर रेप का, विधायक के भाई पर मारपीट का है आरोप
हाल में विधायक कुलदीप सेंगर के भाई अतुल का नाम उस केस में आया, जिसमें कुलदीप पर रेप का आरोप लगा है. कुलदीप खुद माखी गांव के रहने वाले हैं. माखी थाने में उनकी हिस्ट्रीशीट भी है. इसी गांव की एक लड़की ने आरोप लगाया है कि 4 जून 2017 को विधायक और उनके गुर्गों ने उसके साथ रेप किया था. जब लड़की ने केस दर्ज करवाया था, तो तीन लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस मुकदमे पर नज़र रखने वाले स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि उस वक्त सियासी रसूख के दवाब में पुलिस ने तहरीर ही बदल दी थी. तहरीर में उन लोगों के नाम डाल दिए गए थे, जो विधायक के विरोधी थे. इन सभी को गिरफ्तार भी किया गया था, जिसके बाद उन्हें जमानत मिल गई थी. हालिया विवाद तब शुरू हुआ, जब 3 अप्रैल की रात रेप का आरोप लगाने वाली लड़की के पिता को पुलिस ने आर्म्स ऐक्ट और मारपीट के केस में गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले में भी स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि विधायक के भाई अतुल सिंह और उनके गुर्गों ने पीड़ित लड़की और उसके परिवार पर मुकदमा वापस लेने का दवाब बनाया. जब लड़की और उसके घरवालों ने मुकदमा वापस लेने से इन्कार कर दिया तो लड़की के पिता से मारपीट की गई. किसी ने पुलिस को सूचना दी, पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन विधायक के भाई पीड़ित लड़की के पिता को पीटते रहे. लेकिन जब केस दर्ज करने की बारी आई तो सोनू सिंह शैलू, बउवा और विनीत के खिलाफ बलवा, मारपीट और गालीगलौज की धाराओं में नामजद मुकदमा दर्ज कर लिया गया. वहीं पुलिस ने पीड़ित युवती के पिता को भी आर्म्स ऐक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया. उसे गंभीर चोटें आई थीं, जिसे देखते हुए पुलिस उसे जिला अस्पताल ले गई.
ये सब पीड़ित युवती को सहन नहीं हुआ. वो अपनी दो बहनों, मां और दादी के साथ मुख्यमंत्री आवास पहुंची और वहां आत्मदाह की कोशिश की. वहां मौजूद पुलिस ने उसे रोक लिया और सभी को हिरासत में लेकर लखनऊ के गौतमपल्ली थाने ले गई. मुख्यमंत्री के पास जब ये खबर पहुंची, तो उन्होंने एडीजी लखनऊ को मामले की जांच सौंप दी. अभी इस जांच का कोई नतीजा निकलता, उससे पहले ही पीड़ित युवती के पिता की 8 अप्रैल की रात संदिग्ध हालात में जेल में मौत हो गई. इसके बाद इस मामले ने और भी बड़ा रूप ले लिया और अब बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है.
कहीं मुद्दा सियासी तो नहीं!
2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. कुलदीप सिंह सेंगर का पार्टी बदलने का इतिहास रहा है. ऐसे में स्थानीय लोग इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि कुलदीप 2019 में लोकसभा की पूरी तैयारी कर रहे हैं. स्थानीय पत्रकारों का दावा है कि समाजवादी पार्टी 2019 में उन्हें अपना उम्मीदवार बना सकती है. ऐसे में वो खुद ही बीजेपी से थोड़ी दूरी बनाने लगे थे. लोग कह रहे हैं कि आलाकमान ने भी इस बात को बखूबी भांप लिया था, इसलिए वो कुलदीप सेंगर को ढील देने के मूड में नहीं है. कार्रवाई में देर सिर्फ इसलिए की जा रही है ताकि कुलदीप सेंगर या फिर पार्टी का कार्यकर्ता ये आरोप न लगा सके कि आलाकमान अपने ही नेताओं पर ऐक्शन ले रहा है.
ये भी पढ़ें:
यूपी में BJP विधायक पर रेप का आरोप लगाने वाली महिला के पिता की जेल में मौत
10 अप्रैल को होने वाले भारत बंद को पीएम मोदी ने ठेंगा दिखा दिया!
बीजेपी मंत्री गुलाब चंद कटारिया महिलाओं का वोट क्यों नहीं चाहते हैं?
2019 लोकसभा चुनाव से पहले आई ये आफत मोदी-योगी को सबसे ज्यादा सता रही होगी
एनकाउंटर को फर्जी बताने वाले परिवारों पर गैंगरेप के केस ठोक रही है योगी सरकार!
जमीन कब्जे की शिकायत लेकर गए थे, योगी आदित्यनाथ ने धक्का देकर भगा दिया!
30 हजार गैरदलितों ने BJP की दलित विधायक, कांग्रेस के पूर्व दलित मंत्री का घर फूंका
चंदौली में नेता जी के फ़ार्म हाउस पर मिले इस अजीब से दिख रहे जीव की सच्चाई क्या है?