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अजनबी हमसफर

Kusum

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" अरे तुम सब लड़के यहां से चले जाओ यहां लड़कियां बैठेंगी और फेरों में लड़कों का क्या काम है ? " विजय जी वहां बैठे नलिन के दोस्तों से कहा । नलिन जिसकी शादी हो रही है उसका एक दोस्त श्लोक खड़ा हुआ और बोला " अंकल जी हम क्या लड़कियों को खा थोड़ी जाएंगे साइड में जगह वह भी वहीं बैठ जाएंगी । " तभी नलिन ने उसे घूर कर देखा और कहा " मेरे चाचा जी हैं । " तभी वहां अपने पापा के इंसल्ट होते देख श्रद्धा बोली " बातों से तो तुम नॉन वेजिटेरियन लगते हो कोई भरोसा नहीं है । " वैसे श्रद्धा कम बोलती थी । श्लोक बोला " अच्छा ऐसी बात है । " श्रद्धा बोली " नहीं वैसी ही बात है ।" (श्रद्धा को पता नहीं था कि वह नन्ही का दोस्त है और सुबह ही वहां पहुंचा है। ) इतना बोलने पर सब लड़के नलिन के इशारे पर बाहर चले गए । तभी अविनाश जी जो कि नलिन के पिता , विजय जी के बड़े भाई और श्रद्धा के ताऊ हैं अंदर आते हुए बोले " अरे भई फेरों को लेट हो रहा है जल्दी से फेरे शुरू करवाइए । " इतना बोलने के बाद शादी की सभी रस्में करवाई गई और विदा करवा कर दुल्हन को घर ले आए शादी के बाद की सभी रस्में पूर्ण करने के बाद सभी रिश्तेदार अपने घर चले गए और विजय जी भी अपने पूरे परिवार के साथ अपने अलग घर में आ गए शादी के बाद कुछ दिन ऐसे ही व्यतीत हो गए साधारणतया नलिन और श्लोक ने पार्क में मिलने का प्रोग्राम बनाया उन्हें मिले हुए कई दिन हो गए थे शाम को दोनों पार्क में मिलने आ पहुंचे दोनों दोस्त अपने ही बातों में मशगूल थे तभी उनके कॉलेज का एक लड़का उनसे मिलने आ पहुंचा वह भी अपने दोस्त के साथ घूमने के लिए आया हुआ था और दोनों में बात बात में उससे लड़ाई कर ली श्लोक को गुस्सा आया और उसने मुक्का मार कर उसका जबड़ा तोड़ दिया पहले तो वह दोनों खून को देखकर डर गए फिर उसके साथ जो लड़का आया था वह बाहर खड़ा था उसे संभालने को बोलकर दोनों घर की तरफ भाग आए नलिन के घर जाकर उन्होंने नलिन के पापा को सारी बात बताई दोनों को डांटने के बाद अविनाश जी ने उन्हें विजय जी के घर भेज दिया साथ ही विजय जी को फोन करके पूरी बात बताई दोनों विजय जी के घर पहुंचे तभी श्लोक के पास उसके घर से फोन आ गया और वह बात करने लगा नलिन में डोरबेल बजाई तभी श्रद्धा ने गेट खोला श्रद्धा को बात पता नहीं थी तो वह हैरान सी बोली " भैया आप इस समय यहां ? " नलिन बोला " चाचा जी ने कुछ काम से बुलाया था तो चला आया। " इतना बोल कर अंदर आ गया जैसे ही श्रद्धा ने गेट बंद करने हाथ बढ़ाया तभी श्लोक ने झटके से दरवाजा खोल दिया तो श्रद्धा डर से सहम कर एकदम पीछे हट गई और आंखें बड़ी करके कहा " यह क्या तरीका है ? " " मेरा तो यही स्टाइल है । " इतना बोलकर श्लोक अंदर चला आया श्रद्धा मन में गुस्सा करते हुए " यह आज क्यों आया है इतनी रात में यहां " और यह बोलते हुए अंदर आ गई नलिन श्लोक लिविंग रूम में बैठे विजय जी के साथ बात कर रहे थे । विजय जी ने कहा " निहार अभी बाहर है तुम उसके रूम में ठहर जाओ और सुबह तक देखते हैं कंडीशन कैसे हैं उसी के हिसाब से आगे की कार्यवाही करेंगे । " श्रद्धा सबके लिए पानी लेकर आई उसमें श्लोक को एक नजर भी नहीं देखा वह पानी रख कर चली गई श्लोक और नलिन को लेकर विजय जी ऊपर निहार के कमरे में छोड़ आए ।उस कमरे में नलिन और श्लोक ही थे । बेड पर बैठते हुए श्लोक बोला " मेरी वजह से यार तुम मुसीबत में फंस गया शमुझसे गुस्सा कंट्रोल नहीं हुआ और यह सब कांड हो गया । " नलिन ने श्लोक के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा " क्या कोई बात नहीं यार कभी-कभी हो जाता है । " श्लोक ने बात बदलते हुए कहा " यार नलिन आज तेरे चाचा जी गब्बर सिंह के रूप में नहीं है । " नलिन हंसते हुए बोला " हमेशा थोड़ी होते हैं वह तो उस दिन में उन्हें काम के प्रेसर में गुस्सा आ गया था लेकिन चाचा जी बहुत ही सरल और सिंपल है । " " और यह तुम्हारी छोटी बहन है क्या ? " श्लोक बोला नलिन " कोई शक है । " श्लोक बोला " ऐसी कोई बात नहीं है । " आगे नलिन बोला "वह बहुत कम बोलती है हर किसी से बात नहीं करती बिल्कुल सीधी और सिंपल है । " इसी तरह दोनों निहार के बारे में भी बातें करते हुए सो गए । अगली सुबह उठे तो उन्हें पता चला उन पर एफ आई आर दर्ज हुई है पुलिस उन्हें ढूंढ रही है और नलिन का नाम लिया गया जबकि वह श्लोक का नाम भूल गया है विजय जी ने यह सब नलिन को बताया और कहा " तुम नहा धोकर तैयार होकर हमारे साथ चलो और तुम्हारे दोस्त को बोलो प्लीज यहीं रुके दिनभर शाम तक कोई बात बने तो मैं इसे घर छोड़ आऊंगा । " इतना बोल कर नलिन और विजय तैयार हो और नाश्ता करके चले गए पीछे श्लोक अकेला रह गया इस अनजान जगह पर उसका मन भी नहीं लग रहा था वैसे तो वह किसी से नहीं डरता था फिर भी इज्जत और दोस्ती की परवाह थी वह उठ कर फ्रेश होने चला गया ब्रश वगैरह करके आया तो देखा श्रद्धा चाय और नाश्ता टेबल पर रख रही है । श्लोक बोला " किसके लिए है ? " इस पर श्रद्धा चिढ़कर कहा " और कोई दिख रहा है यहां अब तुम हो तो वह तुम्हारे लिए ही होगा ना " श्लोक " हाय आई एम पांडुरंग गोडबोले " श्रद्धा ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया परंतु मन ही मन " ऐसा नाम कोई आज के टाइम में रखता है क्या " वह जाने लगी तो श्लोक ने उससे कहा " तुम सीधा क्यों नहीं बोलती और हां यह नाम मेरे आई बाबा ने रखा है । " श्रद्धा ने कहा " टेढ़े सवालों के जवाब कभी सीधे होते हैं क्या ?" इतना बोल कर वह चली गई परंतु मन ही मन " इसको कैसे पता चला कि मैं यही सोच रही थी । "सुबह के समय में श्लोक कॉफी लेता था चाय की आदत नहीं थी अनजान जगह पर वह बोलता भी क्या मुंह बना कर चाय पी ली और पूरा दिन कमरे में ही बैठा रहा उधर विजय जी अंगना जी और ललित पुलिस स्टेशन पहुंचे और पुलिस ने नलिन पर जुर्माना लगाया तथा लड़के के इलाज का खर्चे का सभी रुपया उसी को देने के लिए कहा किसी तरह के केस रफा-दफा हुआ श्लोक का हर काम श्रद्धा ने किया लेकिन उसने उससे बात तक नहीं की इस पर श्लोक को उसका भी एक अजीब सा लगा श्रद्धा दोपहर में खाना देने आई तो श्लोक ने उसको पूछा " आज मौनी अमावस्या है क्या जो मौन धारण किए हो बात नहीं करती । " इस पर श्रद्धा ने जवाब दिया " मैं अजनबियों से बात नहीं करती।" इतना बोल कर वह चली गई श्लोक मन ही मन कुछ सोचता रह गया इसी तरह पूरा दिन बीत जाने के बाद अविनाश श्लोक को घर छोड़ आए ऐसे ही कुछ महीने बीत गए 1 दिन अविनाश जी ने विजय से श्रद्धा के लिए श्लोक के रिश्ते की बात कही इस पर विजय जी ने घर पर बात करने की कह कर टाल दी विजय जी ने घर आकर अपनी पत्नी शालिनी से कहा कि " भैया ने श्रद्धा के लिए श्लोक के रिश्ते की बात कही है । " शालिनी बोली " यह वही लड़का है जो शादी में आपके सामने बोल रहा था । " इस पर शालिनी ने रिश्ते के लिए मना कर दिया विजय जी ने अविनाश जी को पूरी बात बताई और श्रद्धा के लिए श्लोक के रिश्ते को मना कर दिया अब कई दिन हो गए बात आई गई हो गई फिर एक बार किसी तीसरे व्यक्ति ने आकर श्लोक के लिए श्रद्धा के रिश्ते की बात विजय जी से कहीं तक अविनाशी भी वहीं बैठे थे इस पर अविनाश जी ने कहा " यह रिश्ता तो मैंने बताया था लेकिन विजय को यह पसंद नहीं है । " तभी उस व्यक्ति ने कहा " विजय जी आप एक घर जाकर देखें तो सही , परिवार अच्छा है दो लड़के हैं कोई कमी नहीं है श्रद्धा बिटिया बहुत खुश रहेगी वहां । " इस पर विजय जी ने घर पर बात करने के लिए कहा , शालिनी जी ने कहा " आप सब अच्छे से देख कर करना । " शालिनी जी के मन में एक तरह का वह भी था कहीं उनकी बिटिया को कोई दुख ना पहुंचे । अविनाश जी ने कहा " कभी कभी जिंदगी में कुछ ऐसी बातें हो जाती हैं जिन्हें पकड़कर नहीं बैठा जाता उन का छोटा सा सुखी परिवार है मेरी जानकारी के तहत यह रिश्ता श्रद्धा के लिए अच्छा रहेगा । " श्रद्धा ने विजय जी से इस बारे में बात की तो श्रद्धा ने दो टूक जवाब दे दिया कि " पापा आप जो भी करेंगे मेरे लिए अच्छा ही करेंगे आपकी हर बात में मेरी सहमति है । " श्रद्धा ने प्यार के नाम पर छलावा अपनी सहेली के माध्यम से देखा था इसलिए उसका प्यार से भरोसा उठ गया था । उधर से श्लोक के परिवार में श्लोक से पूछा गया । श्लोक ने कहा " मां भैया के लिए भाभी को आपने ही चुना है तो मेरे लिए भी जो कर करेंगी वह बेस्ट ही करेंगे । " इस प्रकार दोनों परिवारों के बीच में रिश्ते को लेकर बातचीत का दौर शुरू हुआ शादी और सगाई की तारीख भी तय होगी सगाई के दसवें दिन है शादी की तारीख में भी तय हो गई। दोनों घरों में शादी की तैयारियां शुरू हुई सगाई का तय दिन आया तो दोनों आमने सामने खड़े थे लेकिन श्रद्धा ने एक नजर भी उठाकर श्लोक को नहीं देखा श्लोक श्रद्धा को देख कर एक बार तो आवाक् रह गया और फिर मन ही मन मुस्कुरा उठा दोनों परिवार के सदस्य एक दूसरे के गले मिल रहे थे और मिठाइयां खिलाकर बधाइयां दे रहे थे। विजय जी ,अविनाश जी अपने संबंधियों की सेवा में लगे हुए थे शाम होते होते इस तरह सगाई का प्रोग्राम भी पूरा हुआ। परिवार के सभी सदस्यों के कहने के बाद भी श्रद्धा ने श्लोक की फोटो नहीं देखी मन ही मन सोच लिया जो भी होगा सब अच्छा होगा मां और पापा ने जो किया है मेरे लिए अच्छा ही किया होगा श्रद्धा के घर में आई हुई उसकी कजिन श्लोक के नाम से उसे छेड़ रही थी लेकिन श्रद्धा ने सब की खुशियों में शामिल होते हुए उसकी चुहलबाजियों का आनंद लिया इसी तरह दिन बीत गए और शादी का दिन भी आ गया श्रद्धा अपने अजीब से एहसास को अंदर ही अंदर समेटे हुए बड़ों के कहे अनुसार सब विधि विधान किए जा रही थी आखिरकार विदा होकर श्रद्धा अपने ससुराल पहुंची और ससुराल में जेठानी - ननंद ने हंसी मजाक के साथ सभी रस्मों को निभाया गया श्लोक की आवाज सुनकर एक बार महसूस हुआ कि उसने आवाज पहले भी सुनी है लेकिन उसने इग्नोर कर दिया और पूरा दिन ऐसे ही बीत गया । रात में श्रद्धा अपने कमरे में बैठी थी तभी श्लोक की आवाज उसके कानों में पड़ी । श्लोक ने पूछा " कैसा लगा मेरा घर " यह सुनते ही श्रद्धा उसे मुड़कर देखती हुई बोली " पांडुरंग गोडबोले इस पर श्लोक हंस दिया । श्रद्धा सहमी सी बोली " तुम यहां क्या कर रहे हो ? " श्लोक उसकी ओर आते हुए बोला " इस कमरे में नहीं आ सकता।" श्रद्धा ने कहा " क्या तुम मेरे पति के रिश्तेदार हो । " उसकी मासूमियत पर श्लोक जोर से हंसने लगा ।श्लोक को ऐसे हंसते देखकर श्रद्धा चिढ़ गई और अपना मुंह फेर कर खड़ी हो गई। तभी उसके दिमाग की घंटी बजी और उसकी आंखें बड़ी हो गई बड़बड़ा कर बोली " हे भगवान यह अकडू ही मिला था । " तभी श्लोक बोला " अब तो हम अजनबी नहीं है मुझसे बात करोगी। " श्रद्धा बस वैसे ही खड़ी रही अपने हाथों को मसलने लगी उस की धड़कनें बढ़ी हुई थी और अंदर ही अंदर बोली "अभी बोलने का एक मौका नहीं छोड़ेगा । " तभी श्लोक बोला " दीवार से बात हो जाए तो बता देना । " श्रद्धा वैसे ही खड़ी रही । तभी श्लोक उसके पास आया और उसे कंधे से पकड़ कर बेड पर बैठाकर कहा " दीवारों के साथ गेट टुगेदर हो गया हो तो मुझसे भी बात कर लो । " श्रद्धा ने धीरे से कहा " क्या ?" श्लोक बोला " तुमने बताया नहीं अब हम अजनबी नहीं है मुझसे बात करोगी । " श्रद्धा ने सिर्फ" हां "में सिर हिलाया । श्लोक " अरे यार आज भी मौनी अमावस्या है क्या ?" इस पर श्रद्धा हंस दी और ना में गर्दन हिलाई । श्लोक ने श्रद्धा से पूछा " तुमने बिना देखे बिना बात किए शादी के लिए हां कैसे कर दी । " श्रद्धा बोली " हमें अपने मां पापा पर पूरा भरोसा है । " इस श्लोक ने श्रद्धा का हाथ पकड़कर उसे आश्वस्त करते हुए कहा " यह भरोसा मैं कभी टूटने नहीं दूंगा एक और बात उनसे पूछनी थी। " श्रद्धा " हूं , बोलो " श्लोक ने श्रद्धा को गले लगाते हुए कहा " तुम मुझे पहली नजर में अच्छी लगी थी और मैं लकी हूं जो आज तुम मुझको मिल गई ।" मिल कर भी जो अजनबी थे । आज एक दूसरे के हमसफर बन गए । अनजाने थी जिनकी राहें । वो मिलकर हमकदम बन गए ।। 

ajnabi hamsafar

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