दिल की अलमारी को खोल कर देखा तो घबराया था,
एक के बाद एक हादसे निकले, देखा तो चकराया था.
गहरे राजों का अलग इलाका था, लगा वहां नाका था,
सरपट वहां से भागा था, अंदर जाना वहां पे डाका था.
एक कोने में वफ़ा भी पड़ी थी,दर्दनाक सी वो घड़ी थी,
ज़ख्मी वह बड़ी थी,अपनी आंखों से लग गई झड़ी थी.
बीच वाले खाने में तो यादों की परत पर परत जमी थी,
सारी तड़प रही थीं, न जाने यहां पर किसकी कमी थी.
सबसे नीचे प्यार था,ऊपर जिस के दुनिया का भार था,
अपनी धुन पर सवार था, प्यार न माने, वो तो प्यार था.
एक कोना खाली था,वातावरण भी वहां पे सवाली था,
जबाव परमात्मा का वास, जो तप के बिना ख्याली था.
अजब सा ये मंज़र था,सीने में चुभ गया जैसे खंजर था,
मैं सुखी कहता खुद को पर दिल तो अभी भी बंजर था.