मधु से लिपटी हुई एक मुस्कान,
जो शर्मिंदा कर रही सुमन को।
रस बह रहा है सुंदरता का,
सितम ढा रहा है तन बदन को।
वो कोई नही, सिर्फ हम और तुम।
नशीले नयन नशा से मदहोश कर रहें,
तेरे ये जलवे हमें बेहोश कर रहे।
चांद की चांदनी है शर्मिंदा,
तेरे रूप के रंग निखर रहे।
तेरी मिट्टी है किस जगह की,
कहां बसे तेरे बनाने वाले।
मैं तुम पर कुर्बान हो गया,
कर दिया तेरे हवाले।
रचना बनी है तेरी खूबसूरत,
मात दे रही स्वर्ग की परियों को।
खिलखिलाती तेरे चेहरे की हंसी,
फेल कर रही है उर्वशियों को।
लटें बिखरी हुई चेहरे पर,
लता सी लहरा रही है।
मंद-मंद बदन की खुशबू,
बेसुध करती जा रही है।
मेरा सर्वस्व समर्पण जी और जान से,
आंख ना टिक रही तेरे तन पर।
तुझ पर सब कुछ लुटा दूं,
अब नियंत्रण रहा ना मेरे मन पर।