विनाशकारी बीज बो रहा मानव इस दुनिया में।
प्रकृति से छेड़छाड़ कर जीवन को रहा दुनिया में।
प्रकृति का रूप भयंकर सह नहीं पायेगा मानव।
प्रकृति का प्रेमी था तू अब क्यों बन रहा दानव।
बढ़ रही आपदा दुनिया में प्रकृति का असंतुलन है।
प्रकृति बचाओ लक्ष्य बनाओ तभी बचेगा जीवन है।
नहीं जागा मानव समय से धरती बच नही पायेगी।
प्रकृति के गृहगर्भ में यह समाकर मिट जायेगी।
भव भयंकर रण में हारेगा, प्रकृति से जीत नहीं पायेगा।
अनंत में फैला ब्रह्माण्ड कभी शून्य हो जायेगा।
फैलेगी महामारी,बीमारी उपचार प्रकृति छीनेगी।
समय है समझ जाओ अब भी, प्रकृति कहर नहीं ढायेगी।
अभी जो देख रहे इस धरा पर,सब शून्य हो जायेगा।
मानव अस्तित्व मिट जायेगा,ईश फिर ब्रह्माण्ड रचायेगा।
करो नियंत्रण स्व लालसाएं,जो बढ़ती जा रही है हर दिन।
समय सुधार अब मांग रहा है,बचे शेष अभी कुछ दिन।