जेल के भीतर ..... कहीं दुबका, सुशासन रो रहा है..... बाहर एक मवाली गुंडा , मदमस्त हो रहा है...... शर्मसार है मानवता, अँधा कानून सो रहा है..... अट्टहास करता आज एक शैतान, भगवान हो रहा है...... आक्थू ! ऐसी व्यवस्था पर , कि समाज श्मशान हो रहा है......
12 सितम्बर 2016
जेल के भीतर ..... कहीं दुबका, सुशासन रो रहा है..... बाहर एक मवाली गुंडा , मदमस्त हो रहा है...... शर्मसार है मानवता, अँधा कानून सो रहा है..... अट्टहास करता आज एक शैतान, भगवान हो रहा है...... आक्थू ! ऐसी व्यवस्था पर , कि समाज श्मशान हो रहा है......
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मित्रों , मेरी रूचि उपन्यास कविता आदि लिखने में है..... इस मंच के माध्यम से मैं अपनी लेखनी को एक नया आयाम दूंगा .,मित्रों , मेरी रूचि उपन्यास कविता आदि लिखने में है..... इस मंच के माध्यम से मैं अपनी लेखनी को एक नया आयाम दूंगा .D