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" मासूम ग़ज़ल " (01) दो पल को आये वो सदियाँ ले गये घटा दी सावन की, दरिया ले गये मुहब्बत का कैसा सौदा कर गये देकर दर्दे-दिल, खुशियाँ ले
मैं हँस के कहता हूँ मैं इश्क़ करता हूँ मैं दर्द सहता हूँ मैं इश्क़ करता हूँ ।। मदहोश बेख़ुद कहीं गुम सा रहता हूँ मैं नशा नहीं करता मैं इश्क़ करता हूँ।। ज़ालिम सितमगर के दीदार पे मरता हूँ ख़्याल