------ -----गनपत----- (--कहानी अंतिम क़िश्त)
( वाली जगह पर काम करने की ज़िम्मे गैस चेम्बर में डालकर उनको मौत का तोहफ़ा देते थे )-- आगे--
गारी के रुकते ही दो कर्मचारी गण नीचे उतरे । उनमें से एक कर्मचारी को झुमरू ने काट काटकर लहू लुहान कर दिया । और दूसरे कर्मचारी को पिन्टू और गनपत ने रोक कर कहा कि आपने हमारे पालतू श्वान को पकड़ लिया है, उसे हमारे हवाले करो । लेकिन वह कर्मचारी नहीं माना और सरकारी रौब दिखाने लगा । बात बनते नहीं दिखी तो गनपत ने अपना एक पुराना नुश्खा अपनाने क मन बना लिया । उसने अपनी ज़ेब में कागज़ की पुड़िया में रखी मिर्च पाऊडर को मुठ्ठी में लिया और उस कर्मचारी की आंखों की ओर ज़ोर से फ़ेंक दिया । इसके बाद तो वह कर्मचारी चीखते हुए अपनी आंखों को साफ़ करते हुए ज़मीन पर बैठ गया । अब उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था । पिन्टू ने गाड़ी से किशोरी को उतार लाया फिर वे तेज़ी से अपने घर की ओर रवाना हो गये । किशोरी को गनपत मोटर साइकिल में लेकर बैठे रहा वहीं झुमरू उनके पीछे दौड़ते हुए धरावी की ओर रवाना हुआ ।
गणपत ने पिन्टू से घर पहुंचने के बाद कहा कि अब मेरा, झुमरू और किशोरी का धारावी में रहना खतरे से खाली नहीं । पालिका वाले हमारे विरुद्ध भी कोई न कोई कार्यवाही करने की सोच रहें होंगे । मेरे अनुसार अब मेरा गांव सबसे सुरक्षित स्थान होगा । कम से कम झुमरू और किशोरी के लिए । बस क्या था गनपत ने एक टेक्सी किराये में लिया और रात को 9 बजे वह किशोरी और झुमरू को लेकर अपने गांव की ओर रवाना हो गया । तड़के वे गनपत के गांव पहुंच गये । वहां गनपत न झुमरू और किशोरी के लिए उचित व्यवस्था करके अगले दिन वापस मुंबई आ गया ।
धीरे धीरे चार पांच महीने गुज़र गये । गनपत व उसकी पत्नी को झुमरू और किशोरी की याद सताने लगी । वे सोचने लगे कि आखिर वे दोनों गांव में बिना मालिक कैसे रहते होंगे। हालाकि गनपत ने अपने एक दूर के रिश्तेदार को उनकी ज़िम्मेदारी सौंपी थी । यही हाल उधर पिन्टू का भी था । वह भी सोचता था कि झुमरू और किशोरी से मुलाकात की जाये और उन्हें वापस लाया जाय ।
कुछ दिन और गुज़रे तो गनपत को अपने गांव के दूर के रिश्तेदार का पत्र मिला । पत्र में लिखा था कि विगत रात किशोरी ने पांच बच्चों को जन्म दिया । जिनमें से चार बच्चे तो कुछ घंटों के अंदर ही भगवान को प्यारे हो गये । साथ ही अत्याधिक रक्त स्त्राव के कारण किशोरी भी स्वर्ग सिधार गई । किशोरी की मृत काया को गांव के बाहर स्थित राम जानकी मंदिर के पास बाइज़्ज़त रीति रिवाज़ का पालन करते हुए दफ़ना दिया गया है । उसका एक बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ्य है । किशोरी के जाने के बाद झुमरू दिन भर बेचैन रहता है । कभी मन हुआ तो कुछ खा लेता है तो कभी दो दिनों तक कुछ भी नहीं खाता । कभी वह घंटों शान्त रहता तो कभी वह लगातार घंटों भूंकते रहता है और हर दस मिन्टों के बाद उस एक बच्चे को देखता कि वह ठीक है या नहीं । उस बच्चे के पास हमें झुमरू जाने नहीं देता। हम लोग उससे नज़र बचाकर या उसे किसी कमरे में कुछ देर बंद करके उस बच्चे को दूध पिलाकर ज़िन्दा रखे हुए हैं । पर झुमरू कब बिफ़र जाये हमें डर लगता है । अगर झुमरू आगे बच्चे से ज़रा भी दूर नहीं जायेगा तो बच्चे को दूध पिलाना कठिन हो जायेगा । ऐसे में बच्चा भी मर सकता है । कोई रस्ता बताओ या हो सके तो यहां आइये । झुमरू आप लोगों को देखेगा तो उसकी बेचैनी कुछ कम होगी ।
गनपत और पिन्टू ने आपस में सलाह किया और रात को ही गनपत के गांव की ओर रवाना हो गये । वे सुबह गांव पहुंच गये । झुमरू ने पिन्टू और गनपत को देखा तो उसकी आंखों में आंसू आ गये। पता नहीं ये ख़ुशी के आंसू थे या दुख के ये तो झुमरू ही जानता था । वह गनपत और पिन्टू के पैरों पर लोटने लगा फिर उन दोनों को किशोरी के बच्चे के पास ले गया । पिन्टू को लगा कि बच्चे की शक्ल पूरी तरह से झुमरू के चेहरे से मिलता जुलता है । वह बच्चे को अपनी गोद में उठाकर उसे दुलारने लगा । फिर दूध का बोतल तैयार करवाकर उसे दूध पिलाने लगा । अब झुमरू के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे । पिन्टू ने झुमरू को अपने पास बुलाकर इशारों से उसका हाल चाल पूछा तो झुमरू रोने लगा मानो कहना चाह रहा हो कि मेरी जीवन संगनी मुझे छोड़ चली गई । अब मेरी ज़िन्दगी में क्या रखा है ? धीरे धीरे झुमरू और किशोरी का बच्चा बड़ा होने लगा । इस बीच गनपत ने न जाने क्यूं यह फ़ैसला कर लिया कि मुंबई की नौकरी का त्याग करके गांव में ही रहा जाय । उसके पास गांव में दस एकड़ पैत्रिक खेती की ज़मीन थी जिससे उनका गुज़ारा अच्छे से हो सकता था । इसके अलावा उसे अपने विभाग से भी अच्छा खासा पैसा मिलने वाला था । उधर पिन्टू का मन भी मुंबई छोड़ने का हो रहा था । उसने गनपत से बात किया तो गनपत ने बड़े ही उत्साह से कहा मैं तो दिल से चाहता हूं कि तुम भी यहीं आकर हमारे साथ रहो । दोनों मिलकर खेती करेंगे और ख़ुशी ख़ुशी जीवन गुज़ारेंगे । इस तरह पिन्टू भी नौकरी का त्याग कर गनपत जी के गांव सपत्नीक आ गया और झुमरू तथा उसके बच्चे को भी उन सबका गांव आना बहुत ही अच्छा लगा । वे भी बड़े ही ख़ुश नज़र आ रहे थे ।
दिसंबर का सर्द महीना आ गया था । झुमरू दो दिनों से लापता था । अत: पिन्टू और गनपत उसे ढूंढने निकले तो उन्होंने पाया कि झुमरू की मृत काया उसी जगह तसल्ली से आंखें मूदी पड़ी थी , जहां पर किशोरी की काया को दफ़न किया गया था । दोनों के आंखों से आंसू टपकने लगे । उनका एक पुराना साथी उन्हें छोड़कर बिना कुछ कहे चला गया । उन दोनों ने मिलकर झुमरू की काया को किशोरी को दफ़नाये जगह के ठीक बाजू में बड़े आदर सम्मान से पूजा पाठ करके दफ़ना दिये । और दफ़न वाली जगह पर शेरू को लाकर उसकी हाथों से फूलमाला भी चढवा दिया ।
जिस दिन से गनपत और पिन्टू को पता चला कि झुमरू इस दुनिया को छोड़ कर जा चुका है उस दिन ही उन दोनों की पत्नियों ने उन्हें बताया कि वे गर्भवति हैं ।
समय बीतता चला अब शेरू जवान हो चुका था और गनपत व पिन्टू ने बच्चों की उम्र 5 साल की हो गई थी । शेरू को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो चुका था । वह दिन भर तो घर में रहता पर शाम ढलते ही वह गनपत जी की खेतों की रखवाली के लिए चला जाता । उसके रहते हुए मजाल था कि कोई चिड़िया भी खेतों में ठहर कर दाना चुगने लगे । शेरू पूरी रात वहां रहने के बाद घर तभी आता जब सुबह गनपत या पिन्टू खेत में आते । शेरू घर आकर दोनों बच्चों के साथ खेलता भी था और उनकी देखभाल भी करता था । उसे दोनों बच्चों के साथ खेलने में बहुत ही अच्छा लगता था । समय बीतता ही चला अब गनपत और पिन्टू के प्रयासों से उस गांव में कुत्तों का मेला लगने लगा था । जिसमें भागीदारी करने देश के कोने कोने से कुत्ते मालिक गण अपने अपने कुत्तों को लेकर आते थे । उस मेले की खासियत थी कि वहां कद काठी से कुत्तों को नंबर नहीं मिलता था । नंबर और ईनाम उन्हीं कुत्तों को हासिल होता था जिन्होंने अपने मालिक के प्रति अपनी वफ़ादारी सबसे ज्यादा दिखाते हैं ।
गनपत के गांव में यह मेला दिसंबर महीने में लगता था । और कुछ वर्षों में ही इस मेले की चर्चा सारी दुनिया में होने लगी । यह मेला उसी स्थान पर लगता था , जहां किशोरी और झुमरू को दफ़नाया गया था । गनपत और पिन्टू ने वहां पर झुमरू की एक प्रतिमा भी स्थापित करवा दी थी । उस प्रतिमा के ठीक नीचे लिखा गया था , “ झुमरू द ग्रेट …।
( समाप्त )