------ -----गनपत----- -( कहानी प्रथम क़िश्त)
गनपत को मुंबई आये जुम्मा जुमा दो दिन ही हुए थे । वह वर्धा ज़िले के एक छोटे से गांव आमगांव से से पहली बार मुंबई आया था । वो भी अकेले । उसे यहां शिक्षा विभाग में चपरासी की नौकरी मिल गई थी । वह मुंबई शहर की भीड़ भाड़ व दौड़ भाग से बेहद परेशान हो गया । उसे यहां स्थायी रुप से रहने की जगह तलाशनी थी । पहले सप्ताह तो उसने आफ़िस के एक कमरे में गुज़ार लिया । इसके बाद उसके बड़े साहब ने कहा कि अधिक से अधिक तुम्हें एक महीने तक आफ़िस में रहने दे सकते हैं । उसके बाद तुम्हें अपना ठौर बदलना पड़ेगा । इस बीच तुम अपने रहने का प्रबंध कर लो । वह अब रोज़ शाम को आसपास की झुग्गियों में किराये की झोपड़ी की तलाश में निकल जाता ।
दस दिनों बाद उसकी मेहनत रंग लाई और धारावी में एक झोपड़ी किराये पर मिल गई । झोपड़ी में सिर्फ़ 15 / 15 फ़ीट की जगह थी । उतने में ही सोना ,खाना , लिखना पढना , टीवी देखना सब कुछ करना था । झोपड़ी के ठीक बाहर चार बाइ चार फ़ीट का शौचालय था । गनपत अगले दिन ही वहां शिफ़्ट हो गया । सामान के नाम से उसके पास सिर्फ़ कुछ कपड़े और कुछ बर्तन ही थे । दो दिनों में ही वह वहां व्यवस्थित हो गया।
उसे अपने गांव की बहुत याद आती थी । उसे वहां बेहद अकेला पन महसूस होता था । गांव में वह अपनी पत्नी राधा को छोड़कर आया था, क्यूंकि वहां उसकी बूढी और बीमार मां भी उनके साथ रहती थी । पड़ोस में कौन रहता था और क्या करता है, न ही उसे मालूम था न ही पड़ोसियों को गनपत के बारे में कुछ भी मालूम था ।
ग्यारवें दिन गनपत सोकर उठा तो उसे चक्कर आने लगे , 3 उल्टियां भी हो गईं । अत: वह फिर बिस्तर पर सो गया । 9 बजे फिर उसकी नींद खुली तो उसे एहसास हुआ कि उसका शरीर भट्टी की तरह तप रहा है । वह दस मिनटों तक वह यूं ही आंखें मूंदे बिस्तर पर पड़ा रहा । दस मिनट बाद वह जब शौचालय जाने के लिए उठा तो लड़खड़ा कर गिर गया । वह घबरा कर ज़मीन पर यूं ही पड़ा रहा । अब उसे डर सताने लगा कि इस समस्या से छुटकारा कैसे पाया जाये । मुंबई में उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था । ज़मीन पर वह पड़े पड़े कुछ देर सोचता रहा । सोचते सोचते उसे कब नींद आ गई पता भी नहीं चला । दोपहर 3 बजे उसकी नींद फिर खुली तो उसे लगा कि शरीरा का ताप कुछ कम हुआ है । उसे भूख लगी तो चार बिस्किट खा लिया और अपनी पेटी से चार क्रोसिन की गोलियां निकाल कर एक गोली खा लिया । पलंग पर बैठे बैठे ही उसे कब नींद आ गई पता भी नहीं चला । अगली सुबह वह उठा तो बुखार फिर तेज़ था । अब उसे डाक्टर को भी दिखाने की चिंता सताने लगी । कोई रास्ता नहीं सूझा तो वह बड़ी ही कठिनाई से घर के दरवाज़े के बाहर आकर बैठ गया । उसकी सोच थी कि अड़ोस पड़ोस के लोग दिखें तो उनसे मदद मांगू । पर घंटे भर बाहर बैठे रहने के बावजूद पड़ोसियों से उसका सामना नहीं हुआ । हार कर वह घर के अंदर जैसे ही घुसा तो उसे झोपड़ी के दूसरे किनारे पर कदमों की आहट सुनाई दी व साथ ही एक कुत्ते की भोंकने की आवाज भी आने लगी । गनपत ने आवाज दी कि कौन है तो उत्तर आया कि मैं पिन्टू हूं और मेरे साथ झुमरू है । गनपत ने कहा कि ज़रा अंदर आओ । दो मिन्टों बाद गनपत के दरवाज़े पर एक दस साल का गोरा चिट्टा लड़का खड़ा था । उसके बगल में एक कुत्ता भी था । लड़के ने कहा कहिए अंकल क्या पूछना है ।
गनपत – तुम कौन हो और कहां रहते हो ?
लरका – मेरा नाम पिन्टू है और यह झुमरू है । हम पास में ही रहते हैं।
गनपत – तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं ?
लड़का—अंकल इस दुनिया में झुमरू के सिवाय मेरा कोई नहीं है । हम दोनो पास के ही फ़ुटपाथ पे रहते हैं । मैं गली गली घूम कर कबाड़ के सामान और प्लास्टिक की थैलियां उठाता हूं । शाम को उसे बेचने से कुछ पैसा मिल जाता है । जिससे मेरा और झुमरू का पेट भर जाता है ।
ये सुनकर गनपत ने उन्हें घर के अंदर बुलाया और उन दोनों को खाने के लिए कुछ बिस्किट दिए । पिन्टू और झुमरू आराम से गनपत के सामने बैठकर के बिस्किट खाने लगे । गनपत ने पिन्टू को कहा कि मैं मुंबई में नया नया आया हूं । यहां बिल्कुल अकेला रहता हूं । चर्च गेट पर स्थित एक आफ़िस में नौकरी करता हूं । दो दिनों से मैं बुखार से पीड़ित हूं । इतनी ज्यादा कमज़ोरी महसूस हो रही है कि दो कदम चलना भी मुश्क़िल हो गया है । तुम बताओ कि आसापास इस मुहल्ले में कोई छोटा मोटा डाक्टर है ? और क्या तुम उन्हें मेरे घर ला सकते हो ? उनकी जो भी फ़ीस होगी मैं दूंगा । जवाब में पिन्टू ने कहा पास ही चौक पर डाक्टर रहमान रहते हैं । मैं उन्हें लेकर आता हूं । उनही फ़ीस भी ज्यादा नहीं है और वे होम-विसिट भी ख़ुशी ख़ुशी करते हैं । उसके बाद पिन्टू ने झूमरू को इशारों में समझाया कि तुम यहीं अंकल के साथ बैठो मैं दस मिन्टों में आता हूं । कहे अनुसार दस मिन्टों में ही पिन्टू ने एक दाड़ी वाले व्यक्ति को लेकर आ गया । वही डाक्टर रहमान थे । डाक्टर रहमान ने गनपत की नाड़ी जांच करके कहा कि आपको मलेरिया हो गया है । मैं अभी 2 दवाएं दे रहा हूं और दो दवाएं लिखकर दे रहा हूं जिसे मेडिकल स्टोर्स से मंगा लेना । दो दिनों में ही तुम आफ़िस जाने हेतु फ़िट हो जाओगे । पिन्टू ने हंसते हंसते हुए पर्चा लिया और दस मिन्टों बाद वहा दवाएं लेकर आ गया ।
गनपत ने पिन्टू और झुमरू के सिर के उपर हाथ फ़ेरा और कहा तुम दोनों के कारण मुझे इस विपत्ति में हौसला मिला । फिर उसने पिन्टू से कहा कि तुम लोग फ़ुटपाथ छोड़ कर मेरे घर में आकर रहो । हम तीनों मिल जुल कर रहेंगे । मुझे भी सहारा मिल जायेगा और तुम दोनों की ज़िम्मेदारी उठाने में भी मुझे ख़ुशी मिलेगी । जवाब में पिन्टू ने कहा कि अभी तो यह सब ठीक है पर कल तुम्हारा कहीं और ट्रान्सफ़र हो जाये तो हम दोनों तो कहीं के न रहेंगे । हमें घर का शौक लग जायेगा तो हम दुबारा फुटपाथ पर संतुलन नहीं बना पायेंगे। तब गनपत ने कहा कि चिंता न करो कम से कम पांच साल मेरा यहां से ट्रान्सफ़र नहीं होने वाला । और मैं जब भी यहां से जाऊंगा तुम दोनों को अपने साथ लेकर जाऊंगा या फ़िर यहां तुम लोगों की व्यवस्था करके जाऊंगा । पिन्टू को गनपत जी की बात जम गई । फिर वह फुटपाथ से अपनी पेटी लेकर आ गया और अब वह और झुमरू गनपत के ही साथ उसके ही घर में रहने के लिए तैयार थे । दो दिनों तक गनपत ने उनके खाने की व्यवस्था बाहर से खाना मंगाकर किया । तीसरे दिन गनपत बुखार से मुक्त हो गया और वह तैयार होकर आफ़िस जाने की तैयारी करने लगा । उसने पिन्टू से पूछा क्या तुम्हें खाना बनाने आता है ? जवाब मिला कि थोड़ा बहुत तो बना लेता हूं । और आप सिखायेंगे तो बहुत जल्द ही पूरी तरह से सीख जाऊंगा । बस क्या था । गनपत ने पिन्टू को साथ ले जाकर पास के दुकान से राशन का सारा सामान ले आया । दो प्रकार की सिगड़ीघर में थी ही । पिन्टू को खाना बनाने की ज़िम्मेदारी देकर गनपत आफ़िस चला गया । शाम को वह आफ़िस से लौटा तो उसे अपना घर पहले से ज्यादा व्यवस्थित लगा । पिन्टू खाना बनाने में व्यस्त था और झुमरू दरवाज़े के पास बैठ कर घर की चौकीदारी कर रहा था । 9 बजे वे तीनों खाना खाकर टीवी देखने में मशगूल हो गये । टीवी देखते देखते गनपत ने पिन्टू से पूछा कि तुम्हारी उम्र अभी 10 साल ही है । क्या तुम स्कूल जाकर पढाई करना चाहोगे ? जवाब में पिन्टू खामोश बैठा रहा । अगले कुछ दिनों में गनपत ने पिन्टू को पास के ही सरकारी स्कूल में भरती करवा दिया । पिन्टू सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक स्कूल जाने लगा । झुमरू उसे सुबह स्कूल छोड़ने जाता और शाम पांच बजे उसे स्कूल से घर लेने भी जाता । बाक़ी समय वह घर की देखभाल करता ।
समय गुजरते गया,पिन्टू अपनी पढाई भी अच्छे से करते रहा। उम्र के कारण तीसरी के बाद उसे सीधे 8वीं कक्षा में भर्ती मिल गई । 8 वीं में पास होने के बाद पिन्टू को 12वीं में एडमिशन मिल ग्या । और वह बारवीं भी सेकन्ड डिविसन से उत्तीर्ण हो गया । इसके बाद उसे किर्लोसकर कंपनी के परेल आफ़िस में आफ़िस ब्वाय की नौकरी मिल गई । पगार भी ठीक ठाक थी । वह अपना काम बहुत मन लगाकर करने लगा । उन तीनों की अपनी ही दुनिया थी । अब पिन्टू ने एक प्राइवेट छात्र के रूप में बीकाम में एड्मिशन ले लिया । और तीन साल के समाप्त होते होते वह प्रथम डिविशन से बीकाम पास हो गया । जिसके बाद उसका अपने आफ़िस में प्रमोशन हो गया।
एक दिन पिन्टु के आफ़िस में एक नई लड़की सुनिधी ने बतौर क्लर्क ज्वाइन किया । उसे पिन्टू के ठीक बगल वाली जगह पर काम करने की ज़िम्मेदारी प्राप्त हुई । चूंकि वह इस आफ़िस में और इस काम में नई थी अत: उसे बार बार पिन्टू से कुछ न कुछ मदद लेनी पड़ती थी । दो महीनों में पिन्टू को लगने लगा कि जिस दिन सुनिधी आफ़िस नहीं आती उस दिन उसे अच्छा नहीं लगता था । लगभग यही स्थिति सुनिधी की भी थी उसे भी आफ़िस में पिन्टू की अनुपस्थिति अच्छी नहीं लगती थी । एक दिन पिन्टू ने सुनिधी से कहा कि आज चलिए किसी होटल में डिनर करते हैं । आज मेरा जन्म दिन है और मैं इस दिवस को तुम्हारे साथ सेलिब्रेट करना चाहता हूं । पिन्टू के निमंत्रण को सुनिधी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया । कुछ महीनों में ही उन दोनों ने खुलकर एक दूजे के प्रति प्यार का इज़हार कर डाला । और उन दोनों ने एक दूजे का जीवन साथी बनने का फ़ैसला भी कर लिया ।
उधर जब गनपत को पता चला कि पिन्टू विवाह करने जा रहा है , तो उसे बेहद ख़ुशी हुई । लेकिन उसे इस बात का भी मलाल हो रहा था कि अब पिन्टू अपनी पत्नी के साथ अलग रहेगा । उधर झुमरू की स्थिति दयनीय हो गई । उसे समझ नहीं आ रहा था कि इतने लंबे समय तक साथ रहने वाले दो श्ख़्स एकदम से अलग रहने का फ़ैसला कैसे कर सकते हैं ? उसे दोनों से ही बेहद लगाव हो चुका था । पिन्टू के साथ तो वह बचपन से रह रहा था और गनपत के साथ वह कुछ वर्षों से रह रहा था । झुमरू धारावी को अपना गांव समझने लगा था । अब वह 15 दिन पिन्टू के साथ और 15 दिन धारावी में रहता था ।
इस बीच गनपत के गांव से खबर आई कि उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया है ।गनपत आनन फ़ानन में अपने गांव चला गया ।
( क्रमशः)