------ -----गनपत----- ( कहानी
(इस बीच गनपत के गांव से खबर आई कि उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया है । गनपत आनन फ़ानन में अपने गांव चला गया ) इससे आगे।
वो धारावी वाले घर को झुमरू के भरोसे छोड़ गया । अपनी माता की अंतिम क्रिया पूरा करके वह लगभग 15 दिनों बाद मुंबई वापस आया । इस बार उसके साथ उसकी पत्नी भी थी क्यूंकि अब पत्नी को गांव में छोड़ने की कोई वजह नहीं बची थी । गनपत के साथ उसकी पत्नी को देख झुमरू अचकचा गया , थोड़ा शर्मा भी गया । उसे गुंजन के साथ उस घर में रहने से कुछ अजीब लगने लगा । पर वह मन मार के ही वहीं रहने लगा । आखिर वह जाता भी तो जाता कहां । ज्यादा से ज्यादा उसके पास एक मुकाम और था वह मुकाम था पिन्टू का घर । पर पिन्टू की पत्नी के आ जाने से उसे वहां भी अटपटा लगता था ।
झुमरू को यह याद था जब वह बीमार था तब पिन्टू और गनपत ही उसकी देखभाल करते थे । झुमरू को यह भी याद था जब पिन्टू को एक दिन तीन लड़के मारने आये थे । जिनके हाथों में हथियार भी थे । उस समय अकेले झुमरू ने अपने दम पिन्टू को बचाया था ।
गनपत की पत्नी के मुंबई आने के कुछ दिनों बाद 15 दिनों तक झुमरू घर से गायब हो गया था । उसका कुछ पता नहीं चला न वह पिन्टू के घर गया न ही वह गनपत के घर में था । जब पिन्टू और गनपत को यह अहसास हुआ कि झुमरू कहीं गायब है तो वे दोनों कुछ दिनों तक आफ़िस नहीं गये और परेल तथा धारावी की वि्भिन्न गलियों में उसे ढूंढते रहे । लेकिन अब तक झुमरू का कहीं पता नहीं चला । थक हार कर वे सोचने लगे कि ज़रूर झुमरू के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई ।
लेकिन उनकी आशंका निर्मूल निकली 16वें दिन झुमरू पिन्टू के घर पहुंच गया । वह पहले से ज्यादा चुस्त दुरुस्त और ख़ुश नज़र आ रहा था । उसे देखते ही पिन्टू ने उसे गले से लगा लिया और कहा कि इतने दिनों तक तुम बिना बताए कहां थे ? क्या हमारे प्रति तुम्हारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है ? इतना सुनना था कि झुमरू की आंखों में आंसू आ गये और वह पिन्ट के पैरों पर इस तरह लोट्ने लगा , मानो वह माफ़ी मांग रहा हो । इसके बाद वह पिन्टू को खीचकर बाहर ले गया । बाहर झुमरू ने एक विशेष तरह की आवज़ निकाली तो जवाब में कुछ दूर स्थित झाड़ियों से भी वैसी आवाज़ आयी साथ एक लेडी स्वान सामने आई । झुमरू ने पिन्टू को इशारों से बताने की कोशीश की कि यह मेरी पत्नी किशोरी है । अब हम दोनों साथ साथ रहेंगे । बस इसी चक्कर में मैं पिछले 15 दिनों से आप लोगों से दूर था । किशोरी को देखकर पहले तो पिन्टू उलझन में पड़ गया फिर उसने किशोरी के सिर पर हाथ फ़ेरा और बड़े ही प्यार से उन दोनों को घर के अंदर ले गया । उसने सारी बातें अपनी पत्नी सुनिधी को बताई । पहले तो सुनिधी भी अचकचाई फिर उसने भी उन दोनों के स्वागत में अपना किचन खोल दिया । उधर जब गनपत को सारी बातें पता चली तो उसे तसल्ली हुई कि चलो अपना झुमरू तो सही सलामत है । साथ ही उसे उत्सुक्ता हुई कि झुमरू की पत्नी को जल्द से जल्द देखा जाय ।
अब तीनों परिवार मुंबई में अच्छे से सेट हो गये थे ।
एक दिन गनपत नें अखबार में पढा कि मुंबई नगर पालिका जल्द ही आवारा कुत्तों को पकड़ने का अभियान चलाने वाली है । ऐसे कुत्तों को पकड़कर या तो जंगल में छोड़ा जायेगा या फिर ज़हर देकर मार दिया जायेगा । गनपत इस समाचार को पढकर घबरा गया और पिन्टू को इस बात को बताया तो पिन्टू ने कहा जल्द से जल्द झुमरू और किशोरी के गले में पट्टे डाल दो साथ ही महानगर पालिका की गाड़ियों पर नज़र रखो ।
कुछ दिनों बाद नगरपालिका की गाड़ियां हर तरफ़ घूमने लगी और गलियों के आवारा कुत्तों को पकड़कर ले जाने लगी । उधर गनपत , झुमरू और किशोरि को घर के अंदर छिपा कर रखने लगा । लेकिन उन दोनों को सुबह और शाम कम से कम एक बार नित्यकर्म केलिए बाहर जाना ही पड़ता था ।
दस दिन तो ठीक ठाक से गुज़र गये । पर 11 वें दिन जब झुमरू और किशोरी सुबह के वक़्त घर से बाहर निकले , उतने में ही नगर पालिका की गाड़ी उस इलाके में आ गई । फिर पालिका के कर्मचारी उन दोनों को पकड़ने का प्रयास करने लगे । झुमरू तो धारावी के चप्पे चप्पे को जानता था अत: वह छोटी छोटी गलियों में घुसकर ख़ुद को बचाते रहा और उसे पकड़ा न जा सका । लेकिन किशोरी धारावी के लिए नई थी , साथ ही वह गर्भवति भी थी अत: वह पालिका के कर्मचारियों की पकड़ में आ गई । झुमरू ने् दूर से देख लिया कि किशोरी पकड़ा गई है तो वह पालिका की गाड़ी के पास पहुंच कर भूंकने लगा और अपने गुस्से का इज़हार करने लगा । उसके गुस्से को देखकर एक बारगी पालिका के कर्मचारी गण भी घबरा गये और वे ज़हर मिली मिठाई झुमरू की तरफ़ फ़ेकने लगे । लेकिन झुमरू ने उन मिठाई की ओर देखा भी नहीं और लगातार भूंकते हुए उस गाड़ी के पीछे भागते रहा ।
कुछ देर बाद जब गनपत और पिन्टू को पता चला कि पालिका वाले किशोरी को पकड़ कर कही ले जा रहे हैं और झुमरू अपना विरोध प्रगट करते हुए उस गाड़ी के पीछे दौड़ते हुए जा रहा है । तो वे दोनों एक मोटर साइकिल में बैठकर पालिका की गाड़ी की ओर तेज़ी से रवाना हुए । वे दस मिनटों में ही उस गाड़ी के पीछे पहुंच गए । उन्हें देखकर झुमरू और उत्साह में आकर ज़ोर ज़ोर से भूंकने लगा । पालिका की गाड़ी कुछ कि.मी. जाकर एक नाले के किनारे रुकी । वहीं बाजू में पालिका का कत्ल गाह था । जहां वे आवारा कुत्तों को गैस चेम्बर में डालकर उनको मौत का तोहफ़ा देते थे ।
( क्रमशः)