I'm a new writer...(Chota Writer)
न दिल से, न दिमाग से कुछ फैसले लिए जाते हैं, वक्त के हिसाब से।
निःशुल्क
हम एक ही कॉलोनी में रहते थे। चूंकि घर भी पास ही था, वह 10 मिनट में मेरे घर पहुॅंच गई। उसके चेहरे पर चिंता के भाव देखे जा सकते थे। यूँ अचानक रोते हुए फोन करना उसे भी अजीब लगा था। फटाफट जूते उतारकर मेरे
सुबह के लगभग 10 बज रहे थे। पापा ऑफिस जा चुके थे। मम्मी पापा का टिफिन बनाने के बाद अब खाने की तैयारी कर रहीं थीं। मेरे आने पर मम्मी बोलती है "क्या
'तुम्हीं ने मेरी जिंदगी खराब की हैं'...... 'तुम्हीं ने मेरी जिंदगी बिगाड़ दी हैं'...... कई दिनों से यही गुनगुना रही थी मैं।