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घर से दूर एक घर (भाग - 1)

10 जून 2022

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'तुम्हीं ने मेरी जिंदगी खराब की हैं'......

'तुम्हीं ने मेरी जिंदगी बिगाड़ दी हैं'......

                      कई दिनों से यही गुनगुना रही थी मैं।

नहीं जाना, 

नहीं जाना,

नहीं जाना, 

अरे जाना ही क्यों है? 

भेजना ही क्यों है अपने से दूर मुझे? 

मैं नहीं रह पाऊंगी आपके बिना। वैसे तो कहीं भी जाते हो तो एक दिन के लिए भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते हो और अभी मैं इतनी बड़ी भी नहीं हुई हूं कि आप से दूर रहकर सब मैनेज कर सकूं। आपको याद है जब एक बार बहुत अर्जेंट में आपको बाहर जाना पड़ा था। तब भी आपने पड़ोस की आंटी को मेरे साथ रुकने का बोला था और रात में भी वह मेरे पास ही सोई थी और आप...... आपने तो ना जाने कितने काॅल किए दिन भर में.....

क्या कर रही हो?

खाना खा लिया?

नहा लिया?

गेट लगा है?

कोई आया तो नहीं.... वगैरह वगैरह।

और हां काॅल से याद आया वहां तो मोबाइल भी नहीं होगा मेरे पास जो जब मन किया कॉल कर लिया।

                        किताब में सिर गढ़ाए यही सब सोचते-सोचते नींद आ गई और मैं सो गई।

                                सुबह‌‌ जब उठी तो देखा 8 बज चुके थे। 'अरे इतनी देर हो गई और आज तो मम्मी ने झकझोर कर उठाया भी नहीं मुझे और लो ऑनलाइन क्लास का टाइम भी हो गया.....'। मैं जल्दी-जल्दी बिस्तर से उठी, फटाफट मुंह धोकर, ब्रश करके तैयार हुई। किचन में पानी लेने गई तो देखा,.

                       अहा!! कड़ी.....

आज तो मजा आ गया। अच्छा तो आज रिश्वत में कड़ी पेश की जाएगी। "वाह! मम्मी क्या बात है। कल इडली, आज कड़ी, बहुत बढ़िया खूब खिलाओ-पिलाओ अच्छा-अच्छा मेरी पसंद का, लेकिन एक बात सुन लीजिए मुझे नहीं जाना और मैं नहीं जाऊंगी"।

                    "बाद में बात करेंगे" मम्मी ने बेपरवाह होकर कहा। 

              "अरे ऐसा थोड़ी ना होता है।आप मेरी बात सुनती ही नहीं हो। मेरी फीलिंग तो कोई समझता ही नहीं है।" पैर पटकती हुई मैं अपने कमरे में आ गई। थोड़ी देर में ऑनलाइन क्लास शुरू होने वाली थी, सो अपनी कॉपी किताब लिए बैठ गई मैं अपनी स्टडी टेबल के सामने और मोबाइल हाथ में थाम लिया। क्लास का इंतजार करते-करते कब अपने ख्यालों में गुम हो गई पता ही नहीं चला। 

                         यह पेरेंट्स हम बच्चों की बात क्यों नहीं समझते हैं। और मम्मी वैसे तो कहतीं हैं जो करना है करो मेरी तरफ से कोई रोक-टोक नहीं। हां चलो माना फैसला मुझसे पूछा जरूर जाता है। लेकिन होता वही है जो वह चाहतीं हैं। अब मार्केट में ही देख लो मैं मेरे लिए कपड़े लेने जाती हूं तो बेशक पसंद मैं ही करती हूं। लेकिन खरीदे वही जाते हैं जो उनको भी पसंद आए। अगर कोई ड्रेस मुझे कितना भी पसंद आ जाए। लेकिन अगर उन्हें पसंद ना हो तो उसमें कोई ना कोई खराबी गिना ही दी जाती है।

इसका कलर ऐसा है।......

थोड़ी र्शोट है।......

गला सही नहीं है...... वगैरह वगैरह।

अरे,,,, और लड़कियां भी तो सब तरह के कपड़े पहनती हैं। लेकिन कपड़ों के मामले में तो अब मुझे भी आदत सी हो गई है। इसलिए अब तो थोड़ी ढीली, छोटे गले की अक्सर बॉयज टी शर्ट पसंद आती है मुझे, और वैसे भी कपड़ो का क्या है, 

कुछ दिन पहनना है और फिर....

लेकिन इतना बड़ा फैसला.....

                             नहीं नहीं मुझे नहीं जाना.....

ऐसे ही विचारों की उधेड़बुन में समय निकल रहा था। अभी तो लॉक डाउन है तो ऑनलाइन क्लास से पढ़ाई होती है। लेकिन बहुत से स्कूल खुल गए हैं तो यह भी खुल जाएगा।

                             देखा मैंने ऑनलाइन क्लास में जो टीचर पढ़ाते हैं। वह कितने स्ट्रिक्ट दिखते हैं। और बायो सर.... वह तो एक बार बोर्ड की तरफ मुड़े तो फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखते चाहे हम बच्चे ऑन कैमरे में ही डांस क्यों न करने लगे। वहीं एक हमारा स्कूल और वहां के टीचर्स

                                          अरे यार,,,, अगर मैं चली गई तो मेरा स्कूल छूट जाएगा, मेरे फ्रेंड छूट जाएंगे, पढ़ाई में भी हमेशा टाॅपर थी तो सारे टीचर्स की नजरों में भी एक सिन्सियर स्टूडेंट रही। बहुतों की तो फेवरेट भी थीं। मेरी एक छवि थी वहां,,,, सब कुछ छूट जाएगा।

स्कूल में फंक्शन की तैयारी करना, फ्रेंड्स के साथ मस्ती करना, हर कॉम्पिटीशन में बढ़-चढ़कर पार्ट लेना, कई बार ग्रुप परफॉर्मेंस खुद लीड करना, और फिर ढेरों मेडल और सर्टिफिकेट लाना.....

                                       यार सब कुछ कितना अच्छा तो था। वहां भी क्या दिक्कत है,,,,कितना सब छूट जाएगा। बस अब और नहीं।आज तो मम्मी से साफ साफ कहना है। मुझे कहीं नहीं जाना और मैं क्लास बंद करके मम्मी के सामने बैठ गई।



~आखिर ऐसा कौनसा फैसला था जिसके कारण इतना विचलित हो रही थी मैं?
~आखिर क्यों मेरी मम्मी मेरे इतना कहने पर भी अपने फैसले पर अडिग थी?
~क्या वाकई ये फैसला मेरी खुशियां छीन लेगा?
~क्या मेरी दलीलें और कोशिशें काम आ पाएंगी?

जानने के लिए अगला भाग जरूर पढ़े।


सभी आदरणीय पाठकों को नमस्ते!!
उम्मीद हैं की मेरा यह पहला प्रयास आप सभी को पसंद आएगा।
कृपया इस रचना को आगे तक पढ़े और अपनी समीक्षा अथवा सुझाव अवश्य दे।


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घर से दूर एक घर
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न दिल से, न दिमाग से कुछ फैसले लिए जाते हैं, वक्त के हिसाब से।

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