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अपना-सा वो लगे मुझको

25 जुलाई 2018

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"उसको जाने हुए हैं बस कुछ दिन,

फिर भी अपना-सा वो लगे मुझको,


वैसे बेशक ही वो हकीकत है,

जाने सपना-सा क्यों लगे मुझको,


उसकी बातों में बात कुछ तो है,

उसकी हर बात भा गई मुझको,


उसमे मासूमियत है कुछ ऐसी,

पल में ही रास आ गई मुझको... "


हरिओम कुमार की अन्य किताबें

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एक बहाना तो हो

14 जून 2017
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"तेरे क़दमों में चाँद-तारों को बिछाऊँ मैं, तेरी तारीफ़ में कोई नगमा गुनगुनाऊँ मैं, बिन तुझे देखे दिल को चैन अब नही मिलता, कोई तरकीब बता दूरियाँ मिटाऊँ मैं, यूँ हैं जीवन की भागदौड़ में मशरूफ़ बहुत, साथ तेरा मिले तो जिंदगी भुलाऊँ मैं, कोई महफ़िल, कोई त्यौहार या कोई रश्म-ए-वफ़ा, इक बहाना तो हो की तुझसे म

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जिदंगी खूबसूरत है

2 अगस्त 2017
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जिदंगी जैसी है यारो; खूबसूरत है,है ख़ुशी की भी ग़मों की भी जरुरत है,ना चला है जोड़ जीवन में किसी भी वीर का,वक़्त के साम्राज्य में किसकी हुकूमत है ?बचपना, क्या बुढ़ापन,कैसी जवानी है,तेरी-मेरी, यार सबकी इक कहानी है,मुस्कुराहट खिल रही थी जिन लबों पे कल तलक ,आज उन आँखों में भी खामोश पानी है,था कही जिन आँखों

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झूठी-सी आश

2 अगस्त 2017
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तेरी चाहत के तोहफे हैं,जो इन आँखों से बहते हैं,नहीं तू संग फ़क्त इनको तो मेरे पास रहने दे,महज़ आंसू बता इनको न तू अपमान कर इनका,मेरी उल्फत के मोती हैं, तू इनको ख़ास रहने दे,ज़माना, वक़्त और मजबूरियां मैं सब समझता हूँ,तू जा बेशक, तू मेरे संग तेरा एहसास रहने देन मुझसे छीन ये उम्मीद तू मेरा नहीं होगा,भले झू

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अपना हमें बना लेना

2 अगस्त 2017
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हमको ख्वाबों में ख्यालों में तुम बसा लेना,अपने होठो पे हमको गीतों-सा सजा लेना,हम क़यामत तलक न साथ तेरा छोड़ेंगे,हम हैं हाज़िर, हमें जब चाहे आजमा लेना,कोई महफ़िल हो या तन्हाई का आलम कोई,बड़ी मशरूफ़ रहो या रहो खोयी-खोयी ,हर घड़ी साथ निभाने का तुमसे वादा है,जी में जब आये, हमें बेझिझक बुला लेना,साथ कोई दे न दे

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सच्चे प्रेमियों को समर्पित

2 अगस्त 2017
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तुम जिसे ठुकरा गयी, वो अब जग को रास आ रहा है,जो सुना तुमने नहीं वो धून ज़माना गा रहा है,तुमने बोला था न बरसेगी जहाँ एक बूँद भी कल,उस जमीं के नभ पे इक्छित काला बादल छा रहा है,रात के डर से अकेला तुमने छोड़ा था जिसे कल ,उसकी खातिर आज सजकर, सूर्य का रथ आ रहा है,काँच का टुकड़ा समझकर फेंक आई तुम जिसे थी,पैसो

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कविता

3 अगस्त 2017
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मिला बेशक वो मुझसे हाँ मगर मिला ही नहीं,बहार आयी पर देखो प्रशून खिला ही नहीं ,दुवायें नाम उसके हमने कर दी यूँ अपनी,शिकायत यूँ तो है लेकिन कोई गिला भी नहीं।।।

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मैं जिंदगी से मिलूं

3 अगस्त 2017
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हर घड़ी गम से गुफ़्तगू में निकल जाती है,गम अगर छोड़े कभी तो कहीं ख़ुशी से मिलूं,आँखों में अश्क़ की नदियां-सी उभर आती है,आँखों के अश्क़ रुके तो कहीं हँसी से मिलूं,राह कोई भी चलूँ जख्म हैं स्वागत में खड़े,दर्द फुर्सत दे अगर तो कहीं राहत से मिलूं,रोजमर्रा की जरूरतों से जंग जारी है,प्यास-पानी से बढे बात तो चाह

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मुझे भी जगमगाना है

4 अगस्त 2017
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हो आँखों में भले आँसू, लबों को मुस्कुराना है,यहाँ सदियों से जीवन का,यही बेरंग फ़साना है,है मन में सिसकियाँ गहरी,दिलों में दर्द का आलम,मगर हालात के मारे को महफ़िल भी सजाना है,नहीं मंजिल है नजरों में, बहुत ही दूर जाना है,थके क़दमों को साहस को,हर इक पल ही मनाना है,खुद ही गिरना-सम्भलना है,खुद ही को कोसना अ

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जहर पीना पड़ा

7 दिसम्बर 2017
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खुश रहे वो ,इसलिए ये दर्द भी सहना पड़ा,मन न था ,फिर भी मुझे ,उसे अलविदा कहना पड़ा,थी नहीं हसरत कभी जीना पड़े उसके बिना,उसके लिए हर वक़्त ही मरते हुए जीना पड़ा, एक उसके बिन अकेला इस कदर मैं हो गया,हर जख्म तनहा अकेले खुद मुझे सीना पड़ा,उसकी ख्वाहिस थी की मैं जिन्दा रहू,मेरा नाम हो,बस इसलिए ही जिन्दगी का ये

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मैं जिंदगी से मिलूं

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हर घड़ी गम से गुफ़्तगू में निकल जाती है,गम अगर छोड़े कभी तो कहीं ख़ुशी से मिलूं, आँखों में अश्क़ की नदियां-सी उभर आती है,आँखों के अश्क़ रुके तो कहीं हँसी से मिलूं, राह कोई भी चलूँ जख्म हैं स्वागत में खड़े,दर्द फुर्सत दे अगर तो कहीं राहत से मिलूं, रोजमर्रा की जरूरतों से जंग जारी है,प्यास-पानी से बढे बात तो

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साथ

12 फरवरी 2018
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साथ तुम दो जो अगर जिंदगी बदल जाये ,मुश्किलों के सभी हल आज ही निकल जाये, आये दिन लड़खड़ाते रहते हैं ये मेरे कदम,हाथ तुम थाम लो सारे कदम संभल जाये, इक तुम्हारी कमी से रब से गिले-शिक़वे हैं,तुम जो मिल जाओ शिकायत की शाम ढल जाये, यूँ मेरी राह को काँटों ने सजाया है मगर,साथ तुम जो चलो कलियाँ हजार खिल जाये, जि

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क्या तुझे याद मैं भी आता हुं ?

24 जून 2018
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हो जो फुर्सत तो आ के मिल ले कभी, हर घड़ी तुझको ही बुलाता हुं,सोचता हूँ तुझे ही मैं अक्सर, गीत तेरे ही गुनगुनाता हुं,तु तो मशरूफ़ दूर बैठी है, तेरी यादों से दिल लगाता हुं,तेरी चाहत में जो भी लिखता हुं, तेरी तस्वीर को सुनाता हुं,यादें देती हैं तेरी जब दस्तक, खुद को भी मैं तो भूल जाता हुं,बेख़बर अजनबी मे

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मोहब्बत का फ़साना क्या है ?

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हमने पूछा कि मोहब्बत का फ़साना क्या है,उसने बोला यूँ ही कुछ पल का याराना-सा है,दिल के बदले में जहाँ दर्द-ए-दिल हैं लेते लोग,मन को बहलाने का बेकार बहाना-सा है,बस किताबो में,कहानी में सिमट बैठा है जो,लोगों की याद में इक गुजरा जमाना-सा है,सच की धरती पे सिसक तोड़ चुकी दम कब की,ख्वाब में आज भी उल्फ़त वो सुह

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छोड़ के राहें प्यारी चाहत की,जाने किस रास्ते पे चल निकले,तु गलत, मैं गलत, इन्ही सब में है खबर कितने अपने कल निकले ?लम्हें अनमोल कितने खो बैठें,किमती कितने अपने पल निकले ?इतनी सिद्धत से पाले हैं नफरत,कैसे उल्फ़त का कोई फल निकले,एक मौका दे एक -दूजे को,सब शिकायत की बर्फ गल निकले,ख्वाहिशे तो फन्ना हुई; रो

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अपना-सा वो लगे मुझको

25 जुलाई 2018
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"उसको जाने हुए हैं बस कुछ दिन, फिर भी अपना-सा वो लगे मुझको,वैसे बेशक ही वो हकीकत है, जाने सपना-सा क्यों लगे मुझको, उसकी बातों में बात कुछ तो है, उसकी हर बात भा गई मुझको, उसमे मासूमियत है कुछ ऐसी, पल में ही रास आ गई मुझको... "

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