हो आँखों में भले आँसू, लबों को मुस्कुराना है,
यहाँ सदियों से जीवन का,यही बेरंग फ़साना है,
है मन में सिसकियाँ गहरी,दिलों में दर्द का आलम,
मगर हालात के मारे को महफ़िल भी सजाना है,
नहीं मंजिल है नजरों में, बहुत ही दूर जाना है,
थके क़दमों को साहस को,हर इक पल ही मनाना है,
खुद ही गिरना-सम्भलना है,खुद ही को कोसना अक्सर,
खुद ही को हौसला दे कर, हर इक पग को बढ़ाना है,
तेरी नफरत से भी उल्फत न जाने कर क्यूँ बैठे हम,
तेरी चाहत को भी हमको तो इस दिल से मिटाना है,
अजब ये बेबसी मेरी, हूँ मैं मजबूर भी कितना,
भुला जिसको नहीं सकता,उसी को बस भुलाना है,
अभी उम्मीद कायम है,है जब तक जिंदगी बाकी,
किया खुद से जो वादा है,वो वादा तो निभाना है,
अभी गर्दिश का आलम है, मैं हूँ टूटा हुआ तारा ,
सहर के साथ बन सूरज, मुझे भी जगमगाना है ...