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रजनी के अन्धकार में, फैला चहुँ-दिश घोर तम का साया, चन्द्र किरण की आस में, खद्योत प्रकाश भी है बिसराया । किस मार्ग पर करूँ प्रयाण, क्षण एक ठहर सोचता हूँ, मैं आज स्वयं को खोजता हूँ