लौह पुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल
स्वतंत्रता आंदोलन के पश्चात असंख्य क्रांतिवीरों के बलिदान स्वरूप प्राप्त स्वतंत्रता के बाद भी कुछ महानुभावों का विशिष्ट योगदान आज के भारत को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण है ।
भारत को राष्ट्रीय एकता सूत्र में बांधने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल ने आजादी से पूर्व और आजादी के बाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल को पूरा देश शत शत नमन करता है । सरदार बल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस इकत्तीस अक्टूबर को देश राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में सरदार बल्लभ भाई पटेल के योगदान को पीढ़ियां भूल नहीं सकती ।
सरदार बल्लभ भाई पटेल ने 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलय करके भारतीय एकता का भव्य निर्माण किया ,विश्व में कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई देता जिसने विभिन्न रियासतों को एक करके साझा किया हो ।
भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया परंतु बल्लभ भाई पटेल के प्रयास से जूनागढ़ भारत का ही हिस्सा रहा।
ऐसे यशस्वी और मनुष्य लोह पुरुष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ पिता झवेरभाई और मां लाडवा पटेल की चौथी संतान के रूप में अपने परिवार के गौरव को बढ़ाया ।
सबसे महत्वपूर्ण बिंदु जो सरदार पटेल को विशिष्ट स्थान प्रदान करता है वह यह है सरदार पटेल कभी भी अन्याय सहन नहीं कर पाते थे ,स्कूली दिनों में ही उन्होंने अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़नी शुरू कर दी ,नडियाद के अपने स्कूल के अध्यापकों द्वारा पुस्तकों के व्यापारी करण को अमान्य करार देते हुए स्कूल के इस व्यवस्था का विरोध किया ।
स्कूल के अध्यापकों का कहना था कि विद्यार्थी स्कूल से ही पुस्तके खरीदें वल्लभ भाई पटेल ने विरोध करते हुए छात्रों से कहा कि वह अध्यापकों से पुस्तके ना खरीदें ,परिणाम स्वरूप विरोध के कारण इस उनका स्कूल पाच छह दिन बंद भी रहा ,छात्रों के विरोध के कारण शिक्षकों द्वारा पुस्तके बेचने का काम बंद कर दिया गया ।
कुछ कठिनाइयों के कारण वल्लभ भाई पटेल की स्कूली शिक्षा पूरी होने में काफी लंबा समय लगा ,दसवीं की परीक्षा वल्लभ भाई पटेल ने 22 साल की उम्र में पूरी की। सरदार पटेल का सपना था वह एक वकील बने अपने सपने को पूरा करने के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे परंतु घर की आर्थिक स्थिति के कारण वह देश में रहकर ही कानून की किताब किताबें खरीद कर पढ़ने के लिए असमर्थ थे ।
अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने किसी परिचित वकील से किताबें उधार लेकर व्यक्तिगत रूप से वकालत की पढ़ाई की ।
बारडोली सत्याग्रह की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वल्लभ भाई पटेल को वहां की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की ।देश की बिकी हुई रियासतों को एकजुट करने के लिए वल्लभ भाई पटेल ने बहुत संघर्षों के साथ ,विरोध का भी सामना किया। इसीलिए सरदार बल्लभ भाई पटेल को लोह पुरुष की और भारत का बिस्मार्क की उपाधि से भारतीयों में पहचान मिली। सरदार पटेल वर्ण व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे ।
1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में पड़े सूखे के कारण किसानों ने ब्रिटिश सरकार से करों में राहत की मांग की पर ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार ना हुई उस समय वल्लभ भाई पटेल ने किसानों के संघर्ष रूपी आंदोलन का शिक्षा से नेतृत्व किया
जया शर्मा प्रियंवदा
फरीदाबाद (हरियाणा )